Tuesday, November 24, 2015

संवेदना 10- नवम्बर यानि दीवाली

1 नवंबर 2015

    बुज़ुर्गों में भी फुलझड़ी, अनार देखकर जागा बचपना......


 
 दीवाली का नाम सुनते ही ज़ेहन में आती है ढेर सारी खुशियां....अपनों के साथ हंसी-मज़ाक....दादी-नानियों के किचन से आती पकवानों की खुशबू.... आंगन सजाती रंगोली.....चौखट पर नया तोरण....दियों की लंबी कतारें.... आतिशबाज़ी, लक्ष्मी मैया की पूजा....और ढेर सारे उपहार.....                             
हमने इस बार सोच लिया कि नवम्बर महीने का पहला रविवार दीवाली का त्योहार कल्याण कुंज आश्रम में बुजुर्गों के साथ मनायेंगे। खुशियां बांटने से बढ़ती हैं...तो अपनी खुशियां बांटने हम पहुंच गये अपनों के बीच...

कुछ दिन पहले जब हमारे कुछ साथी आश्रम गये थे बाबा-दादियों से मिलने, तो उन्हें पता चला था कि कुछ बाबा-दादियों की तबियत सही नहीं है...तो हमने सोचा कि क्यों न इस बार दीवाली के उपहार स्वरूप हम उन्हें दें अच्छी सेहत का तोहफा। इस उपहार को साकार करने के लिये हम मिले डाॅ.अंशुमन जैन से .....आप होम्योपैथी डाॅक्टर हैं....जब हमने उनसे बात की और अपना इरादा बताया तो वे झट से तैयार हो गये और अपना सामान लेकर खड़े हो गये.....कहा....'चलो'..... 

उन्हें लेकर हम पहुंचे आश्रम....डाॅक्टर साहब को देखते ही सभी के चेहरे खिल उठे और लंबी लाइन लगाकर खड़े हो गये अपनी बारी का इंतजार करते. डाॅक्टर साहब भी लग गये उनके मर्ज़ को पकड़ने और उन्हें दवाइयां देने में....

           



इसी बीच हमारे बाकी साथी भी आ पहुंचे अलग अलग सामान लेकर..... रंगोली.....पकवान बनाने के लिये आटा, मैदा......फूलों की माला.....   दीया-बाती-तेल.....पटाखे......मिक्श्चर.....अचार.....चकला-बेलन..

और इन सबके आने के बाद तो जैसे आश्रम का माहौल ही बदल गया। इस बार हम हर बार की तरह एक जगह नहीं बल्कि अलग अलग ग्रुप में बंट कर काम कर रहे थे।



नज़ारा ऐसा था कि...लड़कियों का एक ग्रुप दादियों के साथ रंगोली सजा रहा था.....अगल बगल बैठे दादाजी लोग ठहाके लगा रहे थे....बच्चों ने मोर्चा संभाला आश्रम को सजाने का...जगह जगह अपनी कलाकारी कर रहे थे.....अंदर एक कमरे में डाॅक्टर साहब बाबा-दादियों की सेहत ठीक कर रहे थे.....तो हमारे लड़के पूजा घर सजा रहे थे......अंदर बड़े हाॅल में भाभियों और दीदियों ने दादियों के साथ मिलकर कमान संभाली पकवान बनाने की....और देखते ही देखते पूरा आश्रम महक उठा स्वादिष्ट पकवानों की खुशबू से.....
इतने में एक दादाजी ने अपना जादुई पिटारा खोला और उसमें से निकला ढोलक और मंजीरा....बस फिर क्या था....एक के बाद देवी भजन....शिरडी वाले साईं बाबा, दमादम मस्त कलंदर, भर दो झेाली मेरी या मोहम्मद, चलो बुलावा आया है....ऐसे गीतों से पूरा आश्रम गूंजने लगा....

देखते ही देखते ६.३० बज गये, समय हो गया था पूजा का...आरती की थाल सज चुकी थी....प्रसाद, दिये सब चीजें तैयार थीं....ओम् जय जगदीश हरे....वहां खड़े हर बाबा-दादी, बच्चे और हम पूरी श्रद्धा से गाने लगे....परम आनंद की प्राप्ति हो रही थी.....


पूजा के बाद समय था दिये जलाने का...हमारे साथियों ने पूरे आश्रम को दियों से सजा दिया....पूरा आश्रम दियों की जगमगाहट से चमकने लगा....उधर पकवान भी तैयार थे....सबने भर पेट गरम गरम खस्ते, भजिये, रसगुल्ले और नमकीन खाया....


 
               

अब बारी थी पटाखों की....सभी आ गये आंगन में....और सिलसिला शुरू हुआ आतिशबाजी का....हर बाबा दादी मगन थे अपनी अपनी फुलझड़ी जलाने में.....कोई कागज जलाकर कहता....इससे अनार जलाते हैं....तो कोई फुलझड़ी खत्म होने से पहले अपनी चकरी जलाने की जद्दोजहद में लगा था....कोई दादी फुलझड़ी जलाकर दीवाली की बधाइयां दे रही थीं....तो कोई बाबाजी दूसरे बाबाजी को संभल कर पटाखे जलाने की हिदायत दे रहे थे....
पूरा आश्रम हंसी और ठहाकों से मुस्कुरा रहा था.....और सोच रहा था....'ये पल यहीं थम जाये'....'ऐसा उत्सव और माहौल आश्रम में आज तक नहीं हुआ'‘एक बाबाजी के ये लफ्ज़ थे....ढेर सारा प्यार, आशीर्वाद और खुशियां लेकर हम वहां से विदा हुए.....
 


आलेख: रचिता टंडन

1 comment:

  1. अति सराहनीय कार्य I आप सभी का योगदान बहुत प्रशंसनीय है I

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