Friday, October 30, 2015

संवेदना 8 - जिज्ञासा, अचम्भे और उत्साह से लबरेज़ बाबा-दादियों के साथ बीते पल

6 सिंतबर 2015
बुजुर्गों की मॉल और पीवीआर यात्रा 
सिंतबर का महीना शुरू हो चुका था....किसी को इंतजार था बारिश  का, तो किसी को गरम गरम भुट्टों का, कहीं शिक्षक दिवस और गणेशोत्सव की तैयारी चल रही थी तो कहीं आने वाली परीक्षाओं की, पर हमें तो बस इंतजार था पहले रविवार का। यूँ तो हर बार रहता है पर इस बार कुछ ज्यादा ही था क्योंकि इस बार हमारा प्रोग्राम भी तो बहुत खास था। इस बार हम सारे बाबा-दादियों को पिक्चर दिखाने जो ले जा रहे थे। शो का समय था 10 से 1 बजे का और हमारे बाबा दादी लोग इतने उत्साहित थे  की वे सुबह 7 बजे से ही नहा धो कर, नये कपड़े पहनकर हमारा इंतजार कर रहे थे। हम अपनी आदत से मजबूर फिर थोड़ी देर से पहुंचे, पर इस बार हमें डांट भी पड़ी.....लेकिन इस डांट में अपनेपन की गंध थी.....हमने उन्हें थोड़ा बहलाया, फिर फुसलाया, फिर मनाया और फिर उन्हें लेकर हमारी तकरीबन 12 गाडि़यों का काफिला निकल पड़ा मैग्नेटो माॅल की तरफ।

अविनाश और उसके दोस्तों ने समय से सबको माॅल पहुंचा दिया। वहां माॅल के कर्मचारियों के साथ हमारे ग्रुप के बहुत सारे मेम्बर्स दादा-दादियों के स्वागत के लिये पहले से पहुंचे हुए थे। सभी ने एक एक दादा-दादी का हाथ थामा और ले चले उनको पीवीआर की तरफ। माहौल कुछ ऐसा था कि दादा-दादी अचंभित इतनी बड़ी बिल्डिंग देखकर...कई सवाल उनके जेहन में....और उनके जवाब हमारी ज़बानों पर...पूरा माॅल घूमते हुए जब हम उन्हें लेकर पीवीआर  पहुंचे तो फिल्म शुरू होने में कुछ ही समय बचा था....पहुंच गये हाॅल के अंदर....सारे दादा दादी अपनी पसंद और सुविधानुसार जगह पर बैठ गये....पिक्चर थी ‘‘मांझी’’


शुरू में मेरे बगल में बैठी एक दादी बोलती हैं ‘हाय राम इतना बड़ा टीवी‘ तो दूसरी दादी बोलती हैं मुझे पूरे 35 साल हो गये हॉल में पिक्चर देखे हुए। जैसे जैसे पिक्चर बढ़ती गई, सभी के हाव-भाव बदलते रहे। कुछ हंसे, कुछ रोये, कुछ गुस्साये तो कुछ सिर्फ मुस्कुराये। इंटरवेल हुआ...तो याद आई पाॅपकाॅर्न की...हम भी गये भागते हुए उनकी इच्छा पूरी करने...‘वाह! मज़ा आ गया‘...बस यही तो सुनना था हमें...और यकीन मानिये उस दिन सभी ने यही कहा। पिक्चर फिर शुरू हुई और हमारे बाबा दादी फिर खो गए उसमें। अब आप सोच रहे होंगे पिक्चर खत्म...किस्सा खत्म....पर पिक्चर अभी बाकी है मेरे दोस्त...यकीनन पिक्चर ज़रूर खत्म हुई पर किस्सा नहीं।
 

रामा मैग्नेटो वालों ने सभी के लिये लंच का इंतजाम कर रखा था। तो जैसे  ही हम हाॅल से निकले, सीधे फूड कोर्ट पहुंचे। पूरा फूड कोर्ट महक रहा था गज़ब की सुगंध से। सामने टेबल पर गरम गरम पनीर और आलू गोभी की सब्जी, दाल, नान, तंदूरी रोटी, सलाद, चावल, रायता और ढेर सारे गुलाब जामुन रखे थे....देखते ही हमारे मुंह में भी पानी आ गया। दादा-दादियों को बिठाया और हम सब खुद लग गये उनको परोसने और खिलाने में। रामा वालों ने कम मसाले और कम मिर्च का खाना बनवाया था बाबा दादियों की सेहत का ख्याल रखकर...और सभी ने बहुत स्वाद ले लेकर भरपेट खाया और ढेर सारा आशीर्वाद भी दिया।

अब बारी थी वापस जाने की.....तो कहते हैं ना बुढ़ापे में बचपन लौट आता है...वैस ही हुआ...कुछ ने कहा हमें अभी नहीं जाना....तो कुछ ने कहा हमें अभी और घूमना है...हमारे साथियों ने फिर एक बार बागडोर संभाली और ले गये उन सबको अलग अलग ग्रुप में माॅल घुमाने...माॅल घूमते वक्त उनके जिज्ञासा भरे प्रश्न और उन सबके चेहरों के बदलते हाव भाव....उफ़़्.... हमारे लिये भी कभी न भूलने वाले पल थे.....आधे घंटे बाद सभी एक जगह इकट्ठे हुए तो देखा अविनाश और उसके दोस्त फिर तैयार थे अपनी अपनी गाडि़यां लेकर...सभी बाबा-दादियों को बिठाया और सुरक्षित उन्हें वापस वृद्धाश्रम छोड़ दिया...सभी खुश थे, सभी कह रहे थे ...‘बहुत दिनों बाद इतना आनंद आया‘ और पूछ रहे थे....‘फिर कब?' हम भी अगले महीने आने का वादा कर वहां से विदा हुए।

लेकिन अगला महीना शुरू हो उससे पहले ही आ गया गणेषोत्सव।  वृद्धाश्रम से हम सबके पास व्यक्तिगत रूप् से फोन आए उनके गणशोत्सव में एक दिन शामिल होने के लिये। उनकी दिली इच्छा का ध्याान रखते हुए उस दौरान हम सब एक बार फिर उनके आश्रम पहुंचे और एक शाम फिर उनके साथ बिताई पूजा अर्चना में शामिल होकर।     : रचिता टंडन 
 

1 comment:

  1. This is such an amazing experience. An ecstatic feeling is passing throughout my body as I am reading through the words mentioned above. May you all be successful in your endeavor.

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