Sunday, July 12, 2015

संवेदना 4- शादी गुड्डे गुडि़यों की

फिर याद किया बचपन
3 मई 2015

3 मई 2015 को खास दिन था जिसकी तैयारी लिब्रा वेलफेयर सोसायटी के सदस्य बड़े जोर शोर से कर रहे थे क्योंकि  इस दिन छोटे बच्चों के साथ मिलकर गुड्डे गुडि़यों का ब्याह रचाया जाना था और जगह थी वृद्धाश्रम।
कल्याण कुंज वृद्धाश्रम के निचले भाग में बुजुर्ग पुरुष और ऊपरी हिस्से में महिलायें हैं। अक्सर हमने देखा है कि महिलायें मुखर हुआ करती हैं, पर पुरुष चुपचाप से रहते हैं। जब बारातियों के स्वागत की तैयारी करके आश्रम पहुंचे तो मन उत्साह से भर गया क्योंकि वहां बुजुर्गों ने विवाह की बहुत सारी तैयारी करके रखी हुई थी। गुड्डे गुडि़यों के छोटे छोटे पीढ़े 50-50 रु. में एक दिन पहले ही मंगाये जा चुके थे, उन्हें रंगा जा चुका था। गुडि़या के जेवर, कपड़े, पीले चावल, परछन का सामान, सब तैयार था। अरुण, अनुज, प्रषांत, रुनझुन ने मंडप सजाया। इसी बीच अभिषेक की ढोलक और अंतरा के गीत नृत्य ने बिलकुल शादी का माहौल तैयार कर दिया। बुजुर्ग महिलाओं ने बड़े उत्साह के साथ बन्ना बन्नी गीत गाये।

तब तक काॅलोनी और अरुण के घर से आये बच्चों ने ढेर सारे बच्चे इकट्ठे कर लिये थे। सबने मिलकर निकाली बारात। प्रषांत, अनुज, अभिषेक के गीत और अजय की ढोल पर थाप,

बच्चे तो बच्चे आश्रम के बुजुर्ग भी मगन होकर नृत्य करने लगे। उनमें से कई लागों ने बचपन में हर साल अक्ती यानि अक्षय तृतीया पर इस तरह के आयोजनों में हिस्सेदारी के किस्से भी हमें सुनाये। इस बार रुनझुन की दादी भी हमारे साथ थीं जो लगातार हमारा मार्गदर्शन कर रही थीं।
बारात जब आजाद नगर की गली से निकली तो इतनी शानदार थी कि काॅलोनी वासी छतों पर आ गये, सड़क चलते लोग रुककर आनंद लेने लगे और घराती बने हमारे साथी भी नाचने में शामिल हो गये बारात में।
नाचते गाते बाराती जब लौटे तो रुनझुन, अंतरा, प्रमिला और मैंने द्वार-चार किया। बुजुर्ग महिलाओं ने परंपरागत गाली गाई। मजा तो तब आया जब प्रषांत ने द्वार-चार के समय द्वार पर धरना दे दिया कि हमारा दूल्हा तो तभी अंदर आयेगा जब उसको कार मिलेगी। उसे दहेज लेने के जुर्म में पुलिस को बुलाने की धमकी दी गई तब वो माना और अंदर आया। मजाक मजाक में ही सही दहेज न लेने-देने की बातें भी वहां संकेतात्मक रूप् में की गईं। फिर दूल्हे दुल्हन के फेरे हुए, उस समय भी नोंक झोंक वाले गीतों का सिलसिला जारी रहा। बारातियों को छत्तीसगढ़ी व्यंजन फरा, गुलगुला के साथ चटनी, बरफी, पोहा आदि का नाश्ता  करवाया गया। ये एक ऐसा अवसर था जिसमें वृद्धाश्रम के सभी सदस्यों ने भाग लिया। अक्सर वो चेहरे जो नवांगतुकों से ही नहीं अपने साथियों से भी बातचीत करने में असहज हो जाते थे, आज खिले हुए थे। घरों में मनाये जाने वाले त्योहार यहां भी इतने उत्साह से मनायेंगे, ये वो सोच भी नहीं सकते थे।
ब्चपन एक बार फिर हमने आज यहां जिया है, जब ऐसा एक बुजुर्ग ने हमसे कहा तो लगा कि हमारा प्रयास सफल हुआ। उन्होंने कहा हमें अगलग कार्यक्रम का इंतजार रहेगा। ये इंतजार हमें भी रहेगा।

आलेख: मीनू सिंह

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