Friday, July 10, 2015

सम्वेदना 3 - बुजुर्गों के साथ पिकनिक

हमारी यादों में एक और महत्वपूर्ण दिन का अंकन......

5 अप्रेल 2015


सुना है जिंन्दगीं का असली आनंद सफर करने में आता है। सफर की शुरूआत एक अनसुलझी पहेली की तरह होती है, जो कि सफर के दौरान सुलझती जाती है  साथ ही दुखी और थका हुआ मन हर पल उत्साह से लबरेज होता जाता है, खुशियों से भरता जाता है। कुछ इसी तरह के सफर का आनंद रविवार 5 अप्रेल को बिलासपुर  के कल्याण कुंज वृद्वाश्रम के 40 वृद्धों ने उठाया। 

हर महीने का पहला रविवार इन वृद्धों के लिए भी इंतज़ार का होता है और लिब्रा वेलफेयर सोसायटी के सदस्यों के लिये भी, क्योंकि ये दिन हमारे आपस में साथ बिताने का दिन होता है। इस बार सीनियर सीटिजन को इस दिन मदकूदीप की सैर करवाई जानी थी।
शिवनाथ नदी 
मदकू दीप में पुरातात्विक अवशेष
शनिवार की रात को ही हमने योजना का प्रारूप तैयार कर लिया थी। बस अब देर थी कि कब सूरज अपने रंग में आए और हम सब मदकूदीप की सैर को निकले । व्हाट्सएप पर संवेदना ग्रुप में सबको समय पर पहुंचने की हिदायत दे दी गई थी। । कोई पानी के कंटेनर ले के आ रहा था, तो कोई बिछाने के लिए चटाई के साथ ही पत्तल व दोने के पहुंच रहा था। आखिरकार आश्रम के समीप हम कुछ लोग दिए गए वक्त से पहले पहुंच गए, क्योंकि हमें पूरी तैयारी जो करनी थी। हम तैयारी में ही लगे थे कि उसी समय हमारी बस भी ठीक वक्त पर पहुंच गई। जब बस पहुंची तब करीब सुबह के 8 बजकर 30 मिनट हो रहे थे।

हम लोग जरूरत की समाने जैसे खाने के डब्बे व पानी के कंटेनर, चटाई इत्यादि समान बस में चढ़ाने लग गए। हमने तो सोचा था कि लगभग 70 बुजुर्गों के साथ सफर की शुरूआत समय पर तो ही नहीं सकती, 9 बजे निर्धारित समय था पर हमारी गाड़ी 10 बजे से पहले तो निकलेगी ही नहीं। लेकिन जैसा सोचा था वैसा नहीं हुआ, जितने उत्साहित हम इस सफर को लेकर थे, उससे लाख गुना ज्यादा उत्साहित आश्रम के वृद्ध लोग थे। बस के पहुंचते ही सभी वृद्ध अपने-अपने जरूरत की समान जिसमें, दवाईयां, लाठियां व धूप को देखते हुए गमझे इत्यादि एक थैले में समेठ कर बस की ओर दौड़ पडे़ अपनी सीट पाने के लिए। हम बस में दरी, व खाने-पीने की जरूरी की समाने चढ़ाते उससे पहले ही सभी बुजुर्ग अपनी अपनी सीट पर बैठ चुके थे। हमारे कुछ लोग नहीं पहुंचे थे पर वे सब समय के ज्यरत से ज्यादा पाबंद निकले। मजा तो यहीं से आना शुरू हो गया।

युवा सदस्य
कुछ साथी अब तक नहीं पहुंचे थे। वक्त का तकाजा देख हमने देरी ना करते हुए अपने मंजिल की ओर अग्रसर होने का फैसला लिया। सुबह से टकटकी लगाए बुर्जुगों के सफर की शुरूवात मसानगंज स्थित वृद्धाश्रम से हुई। बस रवाना हुई, बस के अंदर का नज़ारा अद्भुत था। ऐसा लग रहा था मानो छोटे-छोटे बच्चे पहली बार स्कूल बस में बैठ स्कूल की ओर जाने को। वृद्धों के खुषी देखते ही बन रही थी, मानो वह आश्रम की चारदीवारी को लांघ कर खुले आसमान में उडने जा रहे हैं। हमारी बस अब अपनी मंजिल की ओर निकल पड़ी थी। जैसे-जैसे वह शहर से बाहर निकलती गई वैसे-वैसे अपनी रफतार पकड़ती गई। बस के चलते ही खिड़कियों से आती तेज हवा जब झुर्रियों भरे चहरे को स्पर्श करती तो बुजुर्गों के चेहरों पर एक अनोखी चमक दिखाई देती और वह चमक उनके

प्रफुल्लित होने का हमें संकेत देती। बुजुर्गों के अनुभव व लिब्रा वेलफेयर सोसायटी के युवाओं के जोश के संग मनोरंजन के लिए बस में ही अंताक्षरी शुरू की गई। इस दौरान युवाओं ने बुजुर्गो की इच्छाओं के अनुरूप सफर को सुहाना बनाने के लिए भक्ति से ओत-पोत गीत गाकर माहौल को भक्तिमय बना दिया। करीब घंटे भर की यात्रा के बाद सभी मदकूदीप पहुंचे।

बिलासपुर से 44 किमी दूरी पर स्थित यह स्थान छत्तीसगढ़ के पर्यटन स्थलों में से एक है जो कि शिवनाथ नदी के शांत जल से घिरा एक द्वीप है। हर साल फरवरी माह में होने वाले ईसाई मेले के कारण से यह स्थान प्रसिद्ध है। पुरातत्व विभाग द्वारा उत्खनन के दौरान यहां कृष्ण, उमा व गणेश की प्राचीन मूर्तियां पाई गईं, साथ ही खुदाई के दौरान प्राचीन काल के 19 शिव मंदिरों का पता चला। इस द्वीप का नाम मदकू ऋषि के नाम पर रखा गया है।

आखिरकार हम सभी मकदूदीप पहुंच चुके थे। अब सूरज अपने पूरे रंग में था सर के ऊपर तेज धूप थी और हम एक दूसरे से एक गिलास ठंडे पानी की मांग कर रहे थे। सूरज की तपिष को देखते हुए सब पेड़ों की छांव में जा छिपे और वृद्धों की सहूलियत के लिए हमने उसी स्थान पर अपना बसेरा बना लिया। युवकों ने वहां दरी बिछाई, बस से सारा समान उतारा। वृद्ध लोग भी एक-एक कर किसी ना किसी का सहारा लेते हुए बस से नीचे उतरे। और पेड़ों की शरण में जा कर ठंडक ढूंढने का प्रयास करनेे लगे।
ठंडे पानी के 12 बड़े बड़े कैन राहत के सबसे बड़े साधन थे। गर्मी इतनी थी कि हमने देरी ना करते हुए बुजुर्गों को लीची के जूस, तरबूज व ककडी बांटी। हमने बातों ही बातों में बुजुर्गो का मनोरंजन करना प्रारंभ किया। इस मनोरंजन के दौर को आगे बढ़ाने के लिए सभी को गोल बिठाया गया. और इसकी टोपी उसके सर गेम शुरू किया गया। जिसमें सभी बुजुर्गों ने बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया। साथ लाए गए ढ़ोल, मंजीरे के सहारे बजते धुनों के साथ ही टोपी एक सर से दूसरे सर घूमती फिरती। जहां संगीत रूकता उस समय टोपी जिसके सर पर रहती वह अपनी इच्छानुसार भजन, चुटकुले, व संगीत गाकर खेल को आगे बढ़ाता। जहां कुछ बुजुर्गों ने उत्साह पूर्वक इस खेल में भाग लिया, तो वहीं कुछ
शरमाए, तो कुछ हिचकिचाएं, लेकिन धीरे-धीरे सभी ने एक-एक कर खेल का जमकर आनंद उठाया।

 इसके बाद हमारे साथियों ने सामूहिक गीतों की महफिल जमानी शुरू कर दी। ये सुन-देख कर वृद्ध लोग और भी उत्साहित हो गए। एक पल तो ऐसा आया जब गाना सुनकर एक वृद्ध महिला के पैर थिरक पडे़। इसे देख हमारा जोश  और भी बढ़ गया और हमारे कुछ साथी भी उनका साथ देते हुए कदम ताल मिलाते हुए गुजरात का पारंपरिक गरबा नृत्य व अन्य डांस करने लगे।


कुछ ही दूरी पर स्वयंसेवी संघ के नेतृत्व में दो दिवसीय कार्यशाला का  आयोजन हो रहा था। युवा व वृद्धों के इस तालमेल को देख वह आश्चर्य चकित हो गए. उनके मन में यह शंका उत्पन्न हुई कि भला यह किस तरह का कार्यक्रम हो रहा है। वह अपने आप को रोक ना पाए और हमारे पास आकर पूछने लगे। हमने भी निःसंकोच होकर उनके सारे प्रश्नों का एक-एक कर जवाब दिया। अब बुजुर्ग अपने अंदाज में भजन गाजे-बाजे के साथ शुरू कर चुके थे। और हम उनके खाने की तैयारी में व्यस्त हो गए।

सभी को स्वादिष्ट भोजन कराया गया। धूप की तपिश जब थोड़ी कम हुई, सब मदकूद्वीप के मनोरम सौंदर्य को देखने निकल पड़े. कोई नदी के किनारे चल पड़ा, तो कोई मंदिरों में पूजा पाठ करने में लग गया। कुछ की रुचि खुदाई में  निकले शिव मंदिरों में थी। संध्या हो चली थी और हमारे सफर का अंत होने का समय भी आ गया। हमारी बस वापस अपने आशियाने की ओर रवाना हुई. करीब 4 बजकर 30 मिनट पर सभी वापस वृद्वाश्रम पहुंचे.

सभी ने सफर के हर पल का मजा लिया. आश्रम पहुंचते ही उन सभी वृद्धों  को जो  लोग इस सफर में नहीं गए थे, बाकी लोग उत्साह पूर्वक अपने सफर के अनुभव बताने लगे। इस मौके पर लिब्रा वेलफेयर सोसाइटी के लोगों ने बुजुर्गों का भरपूर साथ दिया और उनके सफर को एक अद्भुत अनुभव का पात्र बनाया। हम सबकी सबकी यादों में एक और महत्वपूर्ण दिन अंकित हो गया।

आलेख - लकी यादव
Libra Welfare Society
              

1 comment:

  1. KYA ACHHA HOTA YADI PEHALE PATA HOTA...TO SHAYAD MAIN BHI WAHAN PAHUNCH JAATA....KHAIR BAHUT HI ACHHA LAGA DEKHA KAR...CONGRATS TO ALL...THNX...Sangya ji...for sharing...GREATLY DESCRIBED.....TOO....THNX..ONCE AGAIN...

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