Tuesday, July 28, 2015

कलाम को सलाम


श्रद्धांजलि....मिसाइल मैन को ......

 ए पी जे अब्दुल कलाम....हम सबके आदर्शों में से एक....उनका संघर्ष.....उनकी उपलब्धियां.....उनकी विनम्रता....लगन ...उनको हम सबकी अंतिम श्रद्दांजलि.....


हम धन्य हैं जो  हमने कलाम का युग जिया 


कलाम को सलाम...,.....उस ऊर्जा को सलाम,...... उस सितारे को सलाम जिसने करोडो सपनों को दिशा दी....  


        
स्वर, प्रस्तुति : संज्ञा टंडन 

साभार - इन्टरनेट सामग्री

Thursday, July 23, 2015

संवेदना 5 - वृद्धाश्रम में नाटकमय हुआ माहौल

7 जून 2015

लिब्रा वेलफेयर सोसायटी का  एक प्रयास, कल्याण वृद्धाश्रम में रहने वाले तकरीबन 70 महिला पुरुष बुजुर्गों के साथ महीने में एक दिन दो घंटे का समय व्यतीत करना, उनकी समस्याओं को समझना, उनके दिल को छोटी छोटी खुशियां देना। फरवरी के महीने से ये सिलसिला शुरू हुआ था। 4 बार उनसे मिलने के अलावा बीच बीच में भी हम उनकी समस्याओं के समाधान के लिये उनके पास जाते रहे। लेकिन अब वे बुजुर्ग भी पहले रविवार का इंतजार करने लग गये हैं हमसे मिलने के लिये।
जून के पहले रविवार को भी शाम 4 बजे पहुंच गई हमारी फौज।  आज इस फौज में गुरुघासीदास विश्वविद्यालय के चंद नये चेहरे भी मौजूद थे। दो दिन पहले ही 5 जून को पर्यावरण दिवस गुजरा था जिसमें इन नये चेहरों ने अनुज के निर्देशन में नगर में एक नुक्कड़ नाटक किया था और उसके पहले सुनील के निर्देशन मे अग्रज नाट्य दल की टीम पुणे में अपने नाटक ‘खबसूरत बहू’ का नाट्य प्रदर्शन करके लौटी थी। सभी उस रंग में रंगे थे।
सुनील ने आज बुजुर्गों की नाट्य-कक्षा ले ली। कुछ पुराने नाट्य गीतों जैसे ‘ एक थाल मोतियों से भरा, सबके सिर पर औंधा पड़ा’, ‘मैं हूं मोती नाला’ आदि को ग्रुप के लोगों ने सामूहिक रूप से गाया और बुजुर्गों को सिखाया। वाह...उनको भी बहुत मजा आया। एक बुजुर्ग ने कहा, ‘सीखने की कोई उम्र नहीं होती’। हमारी बातें सुनकर आपको भी जरूर आनंद आया होगा। एक महिला का कहना था ‘इतनी उम्र में भी हमने ऐसा अनुभव आज तक नहीं पाया’।
इस दौरान हमारी महिला साथियों का काम एक कोने में चुपचाप चल रहा था। वे प्याज, टमाटर, मिर्च आदि काटने में मषगूल थीं। एक तरफ दोने रखे थे और मिक्षचर, मुरमुरा, चना, मूंगफली, कुछ चटनियां आदि सामान इनके चारों ओर रखा हुआ था। कुल मिलाकर भेल बनाने का कार्यक्रम चल रहा था।
हमने सब बुजुर्गो की जन्मतिथियां जाननी चाहीं तो किसी को पता नहीं थीं और किसी को याद नहीं थीें तो इस महीने से हमने एक काम और शुरू किया। हर महीने एक केक लाकर एक महिला व एक पुरुष बाबा-दादी के साथ उस महीने हमारे ग्रुप के जिस सदस्य का जन्मदिन उस महीने में होगा उसके साथ उनको केक कटवाने का काम। दूसरे ही दिन मेरा जन्मदिन था...मेरे लिये सरप्राइज था ये....दो बुजुर्गों के साथ मैंने केक काटा, सबने गाना गाया, केक खाया। बड़ों से आशीर्वाद लिया, छोटों को दिया।
पर्यावरण नाटिका 
डॉ.योगी द्वारा चिकत्सा सुविधा 
ड्रामा ट्रेनिंग खत्म होने तक भेल वितरण शुरू हो गया और अनुज के निर्देशन में गुरुघासीदास विश्वविद्यालय  के छात्रों ने पर्यावरण नाटिका का प्रदर्शन वहीं पर आरंभ हो गया। भेल के साथ साथ नाटक का आनंद। बुजुर्गों के साथ हम सबको भी मिला आनंद, साथ ही हम पर बरसा ढेर सारे बाबा दादियों का एक बार फिर से आशीष। एक महीने के लिये उर्जा एकत्र करक, उनसे अगले महीने फिर से आने का वादा करके, हम सबने वहां से विदाई ली।

कुछ बुज़ुर्ग जिनसे हम हर महीने मिलने जाते हैं.......

 

 

  



 








Sunday, July 12, 2015

संवेदना 4- शादी गुड्डे गुडि़यों की

फिर याद किया बचपन
3 मई 2015

3 मई 2015 को खास दिन था जिसकी तैयारी लिब्रा वेलफेयर सोसायटी के सदस्य बड़े जोर शोर से कर रहे थे क्योंकि  इस दिन छोटे बच्चों के साथ मिलकर गुड्डे गुडि़यों का ब्याह रचाया जाना था और जगह थी वृद्धाश्रम।
कल्याण कुंज वृद्धाश्रम के निचले भाग में बुजुर्ग पुरुष और ऊपरी हिस्से में महिलायें हैं। अक्सर हमने देखा है कि महिलायें मुखर हुआ करती हैं, पर पुरुष चुपचाप से रहते हैं। जब बारातियों के स्वागत की तैयारी करके आश्रम पहुंचे तो मन उत्साह से भर गया क्योंकि वहां बुजुर्गों ने विवाह की बहुत सारी तैयारी करके रखी हुई थी। गुड्डे गुडि़यों के छोटे छोटे पीढ़े 50-50 रु. में एक दिन पहले ही मंगाये जा चुके थे, उन्हें रंगा जा चुका था। गुडि़या के जेवर, कपड़े, पीले चावल, परछन का सामान, सब तैयार था। अरुण, अनुज, प्रषांत, रुनझुन ने मंडप सजाया। इसी बीच अभिषेक की ढोलक और अंतरा के गीत नृत्य ने बिलकुल शादी का माहौल तैयार कर दिया। बुजुर्ग महिलाओं ने बड़े उत्साह के साथ बन्ना बन्नी गीत गाये।

तब तक काॅलोनी और अरुण के घर से आये बच्चों ने ढेर सारे बच्चे इकट्ठे कर लिये थे। सबने मिलकर निकाली बारात। प्रषांत, अनुज, अभिषेक के गीत और अजय की ढोल पर थाप,

बच्चे तो बच्चे आश्रम के बुजुर्ग भी मगन होकर नृत्य करने लगे। उनमें से कई लागों ने बचपन में हर साल अक्ती यानि अक्षय तृतीया पर इस तरह के आयोजनों में हिस्सेदारी के किस्से भी हमें सुनाये। इस बार रुनझुन की दादी भी हमारे साथ थीं जो लगातार हमारा मार्गदर्शन कर रही थीं।
बारात जब आजाद नगर की गली से निकली तो इतनी शानदार थी कि काॅलोनी वासी छतों पर आ गये, सड़क चलते लोग रुककर आनंद लेने लगे और घराती बने हमारे साथी भी नाचने में शामिल हो गये बारात में।
नाचते गाते बाराती जब लौटे तो रुनझुन, अंतरा, प्रमिला और मैंने द्वार-चार किया। बुजुर्ग महिलाओं ने परंपरागत गाली गाई। मजा तो तब आया जब प्रषांत ने द्वार-चार के समय द्वार पर धरना दे दिया कि हमारा दूल्हा तो तभी अंदर आयेगा जब उसको कार मिलेगी। उसे दहेज लेने के जुर्म में पुलिस को बुलाने की धमकी दी गई तब वो माना और अंदर आया। मजाक मजाक में ही सही दहेज न लेने-देने की बातें भी वहां संकेतात्मक रूप् में की गईं। फिर दूल्हे दुल्हन के फेरे हुए, उस समय भी नोंक झोंक वाले गीतों का सिलसिला जारी रहा। बारातियों को छत्तीसगढ़ी व्यंजन फरा, गुलगुला के साथ चटनी, बरफी, पोहा आदि का नाश्ता  करवाया गया। ये एक ऐसा अवसर था जिसमें वृद्धाश्रम के सभी सदस्यों ने भाग लिया। अक्सर वो चेहरे जो नवांगतुकों से ही नहीं अपने साथियों से भी बातचीत करने में असहज हो जाते थे, आज खिले हुए थे। घरों में मनाये जाने वाले त्योहार यहां भी इतने उत्साह से मनायेंगे, ये वो सोच भी नहीं सकते थे।
ब्चपन एक बार फिर हमने आज यहां जिया है, जब ऐसा एक बुजुर्ग ने हमसे कहा तो लगा कि हमारा प्रयास सफल हुआ। उन्होंने कहा हमें अगलग कार्यक्रम का इंतजार रहेगा। ये इंतजार हमें भी रहेगा।

आलेख: मीनू सिंह

Friday, July 10, 2015

सम्वेदना 3 - बुजुर्गों के साथ पिकनिक

हमारी यादों में एक और महत्वपूर्ण दिन का अंकन......

5 अप्रेल 2015


सुना है जिंन्दगीं का असली आनंद सफर करने में आता है। सफर की शुरूआत एक अनसुलझी पहेली की तरह होती है, जो कि सफर के दौरान सुलझती जाती है  साथ ही दुखी और थका हुआ मन हर पल उत्साह से लबरेज होता जाता है, खुशियों से भरता जाता है। कुछ इसी तरह के सफर का आनंद रविवार 5 अप्रेल को बिलासपुर  के कल्याण कुंज वृद्वाश्रम के 40 वृद्धों ने उठाया। 

हर महीने का पहला रविवार इन वृद्धों के लिए भी इंतज़ार का होता है और लिब्रा वेलफेयर सोसायटी के सदस्यों के लिये भी, क्योंकि ये दिन हमारे आपस में साथ बिताने का दिन होता है। इस बार सीनियर सीटिजन को इस दिन मदकूदीप की सैर करवाई जानी थी।
शिवनाथ नदी 
मदकू दीप में पुरातात्विक अवशेष
शनिवार की रात को ही हमने योजना का प्रारूप तैयार कर लिया थी। बस अब देर थी कि कब सूरज अपने रंग में आए और हम सब मदकूदीप की सैर को निकले । व्हाट्सएप पर संवेदना ग्रुप में सबको समय पर पहुंचने की हिदायत दे दी गई थी। । कोई पानी के कंटेनर ले के आ रहा था, तो कोई बिछाने के लिए चटाई के साथ ही पत्तल व दोने के पहुंच रहा था। आखिरकार आश्रम के समीप हम कुछ लोग दिए गए वक्त से पहले पहुंच गए, क्योंकि हमें पूरी तैयारी जो करनी थी। हम तैयारी में ही लगे थे कि उसी समय हमारी बस भी ठीक वक्त पर पहुंच गई। जब बस पहुंची तब करीब सुबह के 8 बजकर 30 मिनट हो रहे थे।

हम लोग जरूरत की समाने जैसे खाने के डब्बे व पानी के कंटेनर, चटाई इत्यादि समान बस में चढ़ाने लग गए। हमने तो सोचा था कि लगभग 70 बुजुर्गों के साथ सफर की शुरूआत समय पर तो ही नहीं सकती, 9 बजे निर्धारित समय था पर हमारी गाड़ी 10 बजे से पहले तो निकलेगी ही नहीं। लेकिन जैसा सोचा था वैसा नहीं हुआ, जितने उत्साहित हम इस सफर को लेकर थे, उससे लाख गुना ज्यादा उत्साहित आश्रम के वृद्ध लोग थे। बस के पहुंचते ही सभी वृद्ध अपने-अपने जरूरत की समान जिसमें, दवाईयां, लाठियां व धूप को देखते हुए गमझे इत्यादि एक थैले में समेठ कर बस की ओर दौड़ पडे़ अपनी सीट पाने के लिए। हम बस में दरी, व खाने-पीने की जरूरी की समाने चढ़ाते उससे पहले ही सभी बुजुर्ग अपनी अपनी सीट पर बैठ चुके थे। हमारे कुछ लोग नहीं पहुंचे थे पर वे सब समय के ज्यरत से ज्यादा पाबंद निकले। मजा तो यहीं से आना शुरू हो गया।

युवा सदस्य
कुछ साथी अब तक नहीं पहुंचे थे। वक्त का तकाजा देख हमने देरी ना करते हुए अपने मंजिल की ओर अग्रसर होने का फैसला लिया। सुबह से टकटकी लगाए बुर्जुगों के सफर की शुरूवात मसानगंज स्थित वृद्धाश्रम से हुई। बस रवाना हुई, बस के अंदर का नज़ारा अद्भुत था। ऐसा लग रहा था मानो छोटे-छोटे बच्चे पहली बार स्कूल बस में बैठ स्कूल की ओर जाने को। वृद्धों के खुषी देखते ही बन रही थी, मानो वह आश्रम की चारदीवारी को लांघ कर खुले आसमान में उडने जा रहे हैं। हमारी बस अब अपनी मंजिल की ओर निकल पड़ी थी। जैसे-जैसे वह शहर से बाहर निकलती गई वैसे-वैसे अपनी रफतार पकड़ती गई। बस के चलते ही खिड़कियों से आती तेज हवा जब झुर्रियों भरे चहरे को स्पर्श करती तो बुजुर्गों के चेहरों पर एक अनोखी चमक दिखाई देती और वह चमक उनके

प्रफुल्लित होने का हमें संकेत देती। बुजुर्गों के अनुभव व लिब्रा वेलफेयर सोसायटी के युवाओं के जोश के संग मनोरंजन के लिए बस में ही अंताक्षरी शुरू की गई। इस दौरान युवाओं ने बुजुर्गो की इच्छाओं के अनुरूप सफर को सुहाना बनाने के लिए भक्ति से ओत-पोत गीत गाकर माहौल को भक्तिमय बना दिया। करीब घंटे भर की यात्रा के बाद सभी मदकूदीप पहुंचे।

बिलासपुर से 44 किमी दूरी पर स्थित यह स्थान छत्तीसगढ़ के पर्यटन स्थलों में से एक है जो कि शिवनाथ नदी के शांत जल से घिरा एक द्वीप है। हर साल फरवरी माह में होने वाले ईसाई मेले के कारण से यह स्थान प्रसिद्ध है। पुरातत्व विभाग द्वारा उत्खनन के दौरान यहां कृष्ण, उमा व गणेश की प्राचीन मूर्तियां पाई गईं, साथ ही खुदाई के दौरान प्राचीन काल के 19 शिव मंदिरों का पता चला। इस द्वीप का नाम मदकू ऋषि के नाम पर रखा गया है।

आखिरकार हम सभी मकदूदीप पहुंच चुके थे। अब सूरज अपने पूरे रंग में था सर के ऊपर तेज धूप थी और हम एक दूसरे से एक गिलास ठंडे पानी की मांग कर रहे थे। सूरज की तपिष को देखते हुए सब पेड़ों की छांव में जा छिपे और वृद्धों की सहूलियत के लिए हमने उसी स्थान पर अपना बसेरा बना लिया। युवकों ने वहां दरी बिछाई, बस से सारा समान उतारा। वृद्ध लोग भी एक-एक कर किसी ना किसी का सहारा लेते हुए बस से नीचे उतरे। और पेड़ों की शरण में जा कर ठंडक ढूंढने का प्रयास करनेे लगे।
ठंडे पानी के 12 बड़े बड़े कैन राहत के सबसे बड़े साधन थे। गर्मी इतनी थी कि हमने देरी ना करते हुए बुजुर्गों को लीची के जूस, तरबूज व ककडी बांटी। हमने बातों ही बातों में बुजुर्गो का मनोरंजन करना प्रारंभ किया। इस मनोरंजन के दौर को आगे बढ़ाने के लिए सभी को गोल बिठाया गया. और इसकी टोपी उसके सर गेम शुरू किया गया। जिसमें सभी बुजुर्गों ने बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया। साथ लाए गए ढ़ोल, मंजीरे के सहारे बजते धुनों के साथ ही टोपी एक सर से दूसरे सर घूमती फिरती। जहां संगीत रूकता उस समय टोपी जिसके सर पर रहती वह अपनी इच्छानुसार भजन, चुटकुले, व संगीत गाकर खेल को आगे बढ़ाता। जहां कुछ बुजुर्गों ने उत्साह पूर्वक इस खेल में भाग लिया, तो वहीं कुछ
शरमाए, तो कुछ हिचकिचाएं, लेकिन धीरे-धीरे सभी ने एक-एक कर खेल का जमकर आनंद उठाया।

 इसके बाद हमारे साथियों ने सामूहिक गीतों की महफिल जमानी शुरू कर दी। ये सुन-देख कर वृद्ध लोग और भी उत्साहित हो गए। एक पल तो ऐसा आया जब गाना सुनकर एक वृद्ध महिला के पैर थिरक पडे़। इसे देख हमारा जोश  और भी बढ़ गया और हमारे कुछ साथी भी उनका साथ देते हुए कदम ताल मिलाते हुए गुजरात का पारंपरिक गरबा नृत्य व अन्य डांस करने लगे।


कुछ ही दूरी पर स्वयंसेवी संघ के नेतृत्व में दो दिवसीय कार्यशाला का  आयोजन हो रहा था। युवा व वृद्धों के इस तालमेल को देख वह आश्चर्य चकित हो गए. उनके मन में यह शंका उत्पन्न हुई कि भला यह किस तरह का कार्यक्रम हो रहा है। वह अपने आप को रोक ना पाए और हमारे पास आकर पूछने लगे। हमने भी निःसंकोच होकर उनके सारे प्रश्नों का एक-एक कर जवाब दिया। अब बुजुर्ग अपने अंदाज में भजन गाजे-बाजे के साथ शुरू कर चुके थे। और हम उनके खाने की तैयारी में व्यस्त हो गए।

सभी को स्वादिष्ट भोजन कराया गया। धूप की तपिश जब थोड़ी कम हुई, सब मदकूद्वीप के मनोरम सौंदर्य को देखने निकल पड़े. कोई नदी के किनारे चल पड़ा, तो कोई मंदिरों में पूजा पाठ करने में लग गया। कुछ की रुचि खुदाई में  निकले शिव मंदिरों में थी। संध्या हो चली थी और हमारे सफर का अंत होने का समय भी आ गया। हमारी बस वापस अपने आशियाने की ओर रवाना हुई. करीब 4 बजकर 30 मिनट पर सभी वापस वृद्वाश्रम पहुंचे.

सभी ने सफर के हर पल का मजा लिया. आश्रम पहुंचते ही उन सभी वृद्धों  को जो  लोग इस सफर में नहीं गए थे, बाकी लोग उत्साह पूर्वक अपने सफर के अनुभव बताने लगे। इस मौके पर लिब्रा वेलफेयर सोसाइटी के लोगों ने बुजुर्गों का भरपूर साथ दिया और उनके सफर को एक अद्भुत अनुभव का पात्र बनाया। हम सबकी सबकी यादों में एक और महत्वपूर्ण दिन अंकित हो गया।

आलेख - लकी यादव
Libra Welfare Society
              

Thursday, July 9, 2015

संवेदना - साफ़ सफाई अभियान

15 मार्च 2015

संवेदना कार्यक्रम के तहत जब हमारे समूह  के लोग दो बार वृद्धाश्रम गए तो उनके कमरे की खिड़की के पास बदबू के कारण खड़ा होना दूभर हो रहा था.....जब हमने खिडकियों के बाहर देखा तो दिखा कचरे का बड़ा सा अम्बार....सचमुच  सबका मन खराब हो गया....उनके स्वास्थ्य की सबको चिंता हुई...आपसी राय बनी 15 तारीख को सुबह हम सफाई करने के लिए झाड़ू, फावड़ा जैसे ढेर सारे सामान के साथ पहुँच गए डॉ योगी, डॉ.राजेश टंडन, अंशुल प्रशांत, रचिता, लक्ष्मी, मीनू और अभय.

हमें इस काम के लिए आया देखकर वहां के बुजुर्गों ने ये काम करने से मना  किया. और बताया कि पार्षद से अनेक बार चर्चा हुई है, वो एक दो दिनों में सफाई करवाने वाले है. एक दादाजी ने तो पार्षद को फोन लगवाकर उनसे हमारी बात भी करवाई. तब तक मैदान में कूद चुके थे हमारे साथी. गन्दगी कुछ ज्यादा ही थी. स्वच्छता अभियान के नगर निगम के कर्मचारी उसी समय गाड़ी और ट्रेक्टर लेकर पहुंचे..पर उनके साथ एक भी लेबर नहीं था..इसलिए बड़ी सी गाड़ी से जितना कूड़ा उठाया जा सकता था उठाकर जा रहे थे, हमने उनसे पूछा इधर गली की सफाई? जवाब मिला वहां गाड़ी नहीं जा सकती और लेबर हमारे साथ रहते नहीं....हमारी समझ में आ गया की स्वच्छ भारत अभियान में सफाई वही हो सकती है जहाँ बड़ी गाड़ी पहुँच सके...हमने पार्षद को फिर से फोन लगाया, उनको ये समस्या भी बताई...उन्होंने  दूसरे दिन पूरी सफाई करवाने का पक्का आश्वासन दिया....हमने भी उस समय आने का वादा किया और बढ़ चले पास के सब्जी बाजार की ओर....



हमारे आज के काम में प्लास्टिक थैलों के विकल्प पुराने कपडे के थैले और अखबार के पैकेट्स बांटकर जागरूकता फैलाना भी शामिल था. ये काम पिछले 2 सालों से किया जा रहा है. सोसाइटी द्वारा पुरानी साडि़यो. और चादरों के थैले और अखबार के पैकेट्स बनवाए जा रहे हैं, कुछ महिलाओं  को इस काम के लिए रोज़गार भी दिया जा रहा है..
दूसरे दिन सुबह पार्षद साहिब ने अपना वादा निभाया....बुजुर्गों के चेहरों की  खुशी ने हमको कितना सुकून दिया ये हम शब्दों में व्यक्त नहीं कर सकते....एक बुजुर्ग ने हमारे एक सदस्य का हाथ पकड़ लिया और रोने लगे....सिर्फ इतना कह पाए कि हम कितने दिनों से कोशिश कर रहे थे...आपने एक दिन में करवा दिया.....हमको लगा हमारा संवेदना शीर्षक प्रोजेक्ट सार्थक होना शुरू हो चुका है....


LIBRA WELFARE SOCIETY