Monday, July 28, 2014

Journey to 'God's Own Land' Kerala...सड़क यात्रा ब्‍यौरा 12;;;;;;

बि‍लासपुर-केरल-बि‍लासपुर यात्रा संस्‍मरण 
दि‍नांक 17.05.2014 से 28.05.2014 

दि‍वस द्वादश 27.05.2014 औरंगाबाद-बि‍लासपुर
सुबह तैयार होकर 7.30 तक हम नागपुर के लिये निकल पड़े। तब तक ये नहीं सोचा था कि हम यहां से बिलासपुर ही पहुंच जायेंगे। जालना में पहुंचते तक दुकानें नहीं खुली थीं। छोटे से रेस्त्रां से कुछ नाश्‍ता पैक करवाया, फिर आगे बढ़ चले....जालना से सिंदखेड़राजा पहुंचे जहां शि‍वाजी की माता जीजाबाई का भव्य स्मारक है। यहीं जीजाबाई जी का मायका रहा है। यहां पुराना कि‍ला, स्‍मारक से लगी हुई वि‍शाल प्राचीन बावड़ी जो अभी भी अच्‍छी अवस्‍था में है और प्राचीन मोती तालाब आदि‍ प्राचीन कई समारक हैं। यहां हमने  जीजाबाई को आदरांजलि दी। खराब ये लगा कि इतने महत्वपूर्ण और ऐतिहासिक स्थल पर पर्यटकों की संख्या नगण्य है। यहां से हम लोनार लेक की तरफ बढ़ चले। लोनार लेक देखने की बरसों पुरानी ख़्वाहिश थी। लोनार पहुंच जब हम नीचे जाने के लिये कार से उतरे तो बहुत तेज़ गर्मी थी, पारा यकीनन 46-47 डिग्री से उपर रहा होगा। नीचे मंदिर में एक बी.ए.प्रथम वर्ष का छात्र राजेश मिला, जो वहां गाइड का काम भी करता है। उसने अपने ज्ञान से हमें मोहपाश में बांध लिया। दरअसल पहले जब हम लोग लोनार पहुंचे तो सीधे अभ्यारण्य के रास्ते उसकी परिक्रमा करने की सोची, लेकिन रास्ता इतना खराब था, यूं समझिये कि रास्‍ते का बस निशान था, सो हम आधे रास्ते से  वापस हो लिये और मुख्य रास्ते से कार छोड़ पैदल नीचे उतरे। मंदिर तक पहुंचते तस्वीर कुछ साफ नहीं हो पा रही थी। पर जब गाइड राजेश ने लोनार लेक और मंदिर के बारे में बताया तो सहसा विश्‍वास नहीं हुआ। उसने बताया (जिसकी तस्दीक वापस आकर इंटरनेट से की) कि‍ यह झील करीब 50 हजार साल पूर्व 10 लाख टन मीटोरॉइड के धरती से टकराने पर बनी थी। इस झील का व्यास करीब 2 किमी और गहराई 150 मीटर है। इस तरह की यह दुनिया की तीसरी विशालतम झील है। खारे पानी की इस झील के अंदर कुछ विशेष बैक्टीरिया हैं और किसी भी प्रकार के जन्तु नहीं हैं। आसपास वन्य प्राणी व वनस्पतियां बहुतायत में हैं। मीटोरॉयड जब धरती से टकराया था तो उसका एक टुकड़ा कुछ कि.मी.दूर जा गिरा था, जिसे कभी किसी हुनरमंद कारीगर ने लेटे हुए हनुमान जी की प्रतिमा में तब्दील कर दिया जिनके पांव के नीचे शनि भगवान दबे हैं और शनि की पत्नी दया याचना कर रही हैं। राजेश ने हमें बताया कि यह प्रतिमा अभी 5 माह पूर्व तक 25 टन सिंदूर-गेरू लेप में छिपी हुई थी। अमेरिका से आए वैज्ञानिकों ने इसे पहचाना और लेप हटवाया तो यह मूर्ति नज़र आई। यह मूर्ति चुंबकीय असर दिखाती है। कहा जाता है कि ब्लडप्रेशर का मरीज यहां बेहतर महसूस करता है। मेरा कैमरा सचमुच वहां काम नहीं कर सका और हमें भी वातावरण में जबरदस्त उर्जा प्रवाह महसूस हुआ। तेज गर्मी में एसी से बाहर फिर अंदर होते मेरी तबियत कुछ नासाज़ या यूं कहें कि कुछ नाराज़ सी हो गई थी, पर वहां यकीनन उर्जा स्तर बढ़ा हुआ लगा। अच्छा अनुभव रहा। लोनार में झील और इस मंदिर के अलावा ऐतिहासिक महत्व का दैत्यसूदन मंदिर भी था। लोनार से निकलते करीब 2 बज रहे थे। हमारे अब तक प्रिय बन चुके गाइड राजेश ने हमारे आइसबॉक्स के लिये बर्फ का इंतज़ाम किया और हम अकोला/नागपुर के लिये नि‍कल पड़े। पहले प्लानिंग शेगांव, अकोला या नागपुर में रूकने की थी। पर एकाध घंटे बाद एक सीधा रास्ता नागपुर का दिखा जो महज 300 कि.मी दर्शा रहा था। पूछताछ की तो पता चला कि ये सीधे वर्धा तक पहुंचाता है....आव देखा ना ताव.....सीधी-लंबी-खाली-टोलविहीन सड़क पर तेज गर्मी-दोपहरी-धूप लेकिन अपनी डिज़ायर के सक्षम एसी के सहारे तेज रफ्तार में नागपुर के लिये बढ़ चले। तबियत रूठना भी लगातार पानी के घूंट पीते रहने से अब कम हो गया था। वर्धा पहुंचते पहुंचते अब मन सीधे बिलासपुर पहुंचने के लिये कुलबुलाने लगा था। वर्धा पार करते सोचा देर रात ही सही बिलासपुर पहुंच लिया जाए। हिसाब लगाया तो औरंगाबाद से जालना, लोनार होते हुए बिलासपुर 1000 किमी से ज़्यादा पड़ रहा था। गाड़ी चलाते....यूं कहिये भगाते विचार मंथन होता रहा और जब नागपुर हमने 6.30 बजे तक पार कर लिया तब निष्चय कर लिया कि अब रात बिलासपुर ही पहुंचना है....भंडारा पहुंचते भूख लगने लगी थी। जालना में मिर्च की भजिया और आलू बोंडा खाया था, उसके बाद तरल...पानी, जूस और महाबलेश्‍वर की कुछ स्ट्राबेरी के अलावा कुछ भी नहीं लिया था। एक अच्छे होटल में नाश्‍ता किया, कुछ आराम से खाया....एटीएम से पैसे निकाले...पेट्रोल डलवाया...और फिर बलासपुर के लिये निकल पड़े। रात 11 बजे तक भिलाई पहुंचकर लगा कि यहीं दिवा/बहन/ के देवर अमित सेठ के यहां रुक जाते हैं, पर रुनझुन/बिटिया/की तबियत खराब होने का समाचार सुनकर सीधे बिलासपुर की ओर बढ़ लिये...one who drives a car is a driver तो इस पूरी ट्रि‍प में मैंने यानि‍ राजेश टंडन ने ड्राइवर और पत्‍नी यानि‍ संज्ञा टंडन ने नेवि‍गेटर का रोल बखूबी नि‍भाया था, दोनों को अपने आप पर गर्व महसूस हो रहा था। अब एक बात बताना लाजिमी है, बेहद जरूरी है...जब हमने यात्रा की शुरूवात की थी तो एक डायरी में हर दिन की शुरूवात और अंत के किमी का रिकॉर्ड, पेट्रोल कब, कहां और कितने का डलवाया, समय, जगह, स्थान, लोग, संस्कृति, खासियत सब नोट करते जाते थे। रायपुर बिलासपुर के बीच पेट्रोल भरवाते वक्त जब माइलोमीटर से किमी नोट करने के लिये डायरी ढूंढी तो वो नहीं मिली। काफी ढूंढा, पर अफसोस वो आज तलक नहीं मिली। शायद भंडारा के जिस रेस्टोरेंट में नाश्‍ता किया था वहीं छूट या गिर गई। रात 1.30 बजे बिलासपुर पहुंचे। इस अविस्मरणीय यात्रा का रोमांच और सकुशल यात्रा पूरी करने की खुशी तो थी पर डायरी गुम हो जाने का अफसोस भी था। अगर वो डायरी आज साथ होती तो शायद ज़्यादा विश्‍वसनीय और स्पष्ट ढंग से समय, स्थान/कुछ ऐसे स्थानों के नाम जो लंबी यात्रा में विस्मृत हो गए/, दूरी, टोल, पेट्रोल, खर्च, घटना-दुर्घटना आदि का ब्यौरा इस संस्मरण में दिया जा सकता था। फि‍र भी इतना तो बताया ही जा सकता है कि‍ कुल 6200 कि‍मी से कुछ ज्‍यादा की यात्रा में करीब 1700 कि‍मी की यात्रा केरल में, 1000 से काफी ज्‍़यादा आखि‍री दि‍न की रही। बहरहाल अंत अच्छा तो सब अच्छा। 1.30 बजे घर पहुंच लगा कि स्वर्ग कश्‍मीर में हो या केरल में या फिर कहीं और....अपना घर क्या स्वर्ग से कम है़? आदतानुसार और इच्छानुसार खाना और विश्राम शायद दुनिया की सबसे बड़ी नियामत है।


सिंघखेडराजा में जीजाबाई के स्‍मारक की कुछ तस्‍वीरें


 
लोनार में मीटॉरायड के छि‍तरे हुए टुकड़े से बनी हनुमान जी की प्रति‍मा  

कैमरे पर चुंबकीय प्रभाव
गाइड राजेश

25 टन लेप के पहले व हटाने बाद की मूर्ति‍ की तस्‍वीर
दैत्‍यसूदन मंदि‍र




मुख्‍य मंदि‍र




लेक के चारों ओर वनस्‍पति
यात्रा मार्ग

Sunday, July 27, 2014

Journey to 'God's Own Land' Kerala...सड़क यात्रा ब्‍यौरा 11...

बि‍लासपुर-केरल-बि‍लासपुर यात्रा संस्‍मरण 
दि‍नांक 17.05.2014 से 28.05.2014 

दि‍वस एकादश 27.05.2014 महाबलेश्‍वर-औरंगाबाद

सफरनामा- महाबलेश्‍वर की जिस कॉटेज में हम रुके थे, उसका व्‍यवस्‍थापक पैसे तो बात-बात पर लेता था, लेकिन व्यवहार कुशल था और सर्वि‍स अच्‍छी देता था। हमने उससे एक गाइड का इंतज़ाम करने को कहा था जो हमें दो-ढाई घंटे में जहां-जहां संभव हो घुमवा दे। सुबह 8 बजे निकलते वक्त महोदय ने एक बुजुर्ग सफेद टोपी वाले सज्जन को हमसे मिलवाया और बताया ये यहां के सीनियर गाइड हैं जो आपका समय बचाते हुए महाबलेश्‍वर दर्शन कराएंगे। सबसे पहले वो गाइड हमें मंदिर दर्शन करवाने ले गए। वहां पहुंचते तक वे चुप रहे या हां..ना..में जवाब देते रहे। कुछ अजीब लगा। मंदिर पहुचकर पता चला कि बुजर्गवार को हिन्दी नहीं आती और हम मराठी में बेहद कमज़ोर। कुल मिलाकर हमारे गाइड हमारा मनोरंजन ही करते रहे। कुछ बोलकर जोरों से हंसते थे, उन्हें हंसता देख हम भी हंसते थे और हमें हंसता देख वो एक ही शब्द कहते थे ‘बरोबर‘। अब हंसते-खीजते जो घूमा, सो घूमा....फिर पंचगनी वाले तिराहे पर उनसे विदा लेकर हम पंचगनी पहुंचे। पंचगनी के पहले चॉकलेट फैक्‍ट्री के पास एक पि‍कनि‍क स्‍पॉट डेव्‍हलप कि‍या गया है...सुंदर है, पर थोड़ा ज्‍़यादा पैसेवालों के लि‍ये है। कोको बीज को चॉकलेट तक परि‍वर्ति‍त होते देखना एक अच्‍छा अनुभव था। वहां घूम-फि‍र कर हम पंचगनी पहुंचे, नाश्‍ता किया और उस दौरान कार धुलवाई। कुछ किलो स्ट्राबेरी ली, जो बिलासपुर पहुंचते करीब-करीब गल गईं। फिर कुछ दर्शनीय जगहें देखीं और औरंगाबाद के लिये चल पड़े। पूना पहुंचते तक दो बज गये थे। घनघोर घटाएं, फिर तेज़ बारिश....उपर से पूना से औरंगाबाद की तरफ जाने का पूरा रास्ता वन वे......ज़रा सी चूक....कई किमी की सज़ा दे सकती थी। नेवीगेटर को धन्यवाद जिसने थोड़ा ज़्यादा घुमाते-फिराते ही सही पर सही रास्ते तक पहुंचा दिया। अहमदनगर न घुसकर बाईपास से औरंगाबाद की तरफ बढ़े और 50-55 किमी दूर शनि सिंघनापुर रुक कर शनि महाराज के दर्शन किये। आजकल वहां मंदिर से काफी पहले युवकों की टोलियां जबरदस्ती गाड़ी रोककर फ्री पार्किंग के बहाने गाड़ी रुकवाते हैं और वहीं की दुकानों से तेल-प्रसाद खरीदने को बाध्य करते हैं। कुछ वर्दीधारी भी इसमें शामिल नज़र आते हैं। बहरहाल दर्शन-पूजा के बाद प्रसाद ग्रहण कर निकलते साढ़े सात बज गए। औरंगाबाद से 7-8 कि.मी. पहले एक अच्छा सा होटल दिखाई दिया, सोचा बात करके देखते हैं। सब कुछ ठीक लगा तो यहीं रुक जाते हैं ठीक वैसे ही जैसे पहले दिन कामारेड्डी में हुआ था, यहां भी इस बार आखिरी दिन हमें 1300 रूपये में 2300 से उपर का बेहतरीन रूम मिल गया। फिर अब तक खींची गई तस्वीरों का लैपटॉप में अवलोकन-भोजन-शयन।

तस्‍वीर-ए-बयां-
महाबलेश्‍वर के कुछ प्रसिद्ध मंदि‍र



इन पॉइन्‍ट्स पर हमें सि‍र्फ बादल मि‍ले



चॉकलेट फैक्‍ट्री





पंचगनी टेबल टॉप पर फुरसत के दो पल 


शनि‍ सिंघनापुर की कुछ तस्‍वीरें



कल के यात्रा के अंति‍म अंक में - ...पर जब गाइड राजेष ने लेक और मंदिर के बारे में बताया तो सहसा विष्वास नहीं हुआ। उसने बताया  यह झील करीब 50 हजार साल पूर्व 10 लाख टन मीटोररॉइड के धरती से टकराने पर बनी थी... हमें बताया गया कि यह प्रतिमा अभी 5 माह पूर्व तक 25 टन सिंदूर-गेरू लेप में छिपी हुई थी। अमेरिका से आए वैज्ञानिकों ने इसे पहचाना और लेप हटवाया तो यह मूर्ति नज़र आई....