Friday, September 12, 2014

raag gaara : information and bollywood songs based on raag gara

राग गारा  पर एक संगीतमय चर्चा :  

आलेख- कृष्‍णमोहन मि‍श्र

प्रस्‍तुति‍- संज्ञा टंडन

 


Raga  राग   गारा
Thaat  थाट   खमाज
Samay  Late Evening

Swaras Used  Both Shuddha and Komal Gandhar, Shuddha and Komal Nishad. All other notes are Shuddha.
     
               




 रेडि‍योप्‍लेबैक इंडि‍या पर पूर्व प्रसारि‍त लिंक
http://radioplaybackindia.blogspot.in/2012/12/blog-post_5.html

राग गारा से जुड़े  कार्यक्रम में शामि‍ल गीत झलक 
ऐसे तो ना देखो - तीन देवि‍यां
दीवाना कहकर आज मुझे- मुलज़ि‍म
  हमसफर साथ अपना - आखि‍र दांव
जीवन में पि‍या तेरा - गूंज उठी शहनाई
कभी खुद पे कभी हालात पे रोना - हम दोनों
 मोहे पनघट पे नंदलाल छेड़ गयो - मुग़ले आज़म 
  तेरे मेरे सपने अब एक रंग हैं - गाइड 
 उनके ख़याल आए तो आते चले गए- लाल पत्‍थर

                              

Tuesday, September 9, 2014

raag jaunpuri : information and bollywood songs based on raag jaunpuri


राग जौनपुरी 

और इससे जुड़े हि‍न्‍दी फि‍ल्‍मों के गीतों 

पर आधारि‍त ऑडि‍यो कार्यक्रम


यह राग आसावरी थाट से उत्पन्न होता है। 
इसके आरोह में गंधार स्वर नहीं लगताI 
अवरोह सम्पूर्ण है, इसलिये इसकी जाति षाडव-सम्पूर्ण मानी जाती है
इस राग का वादीस्वर धैवत तथा संवादी स्वर गंधार है। 
इस राग का साधारण स्वरूप असावरी राग के समान है। 
इसमें गंधार, धैवत और निषाद कोमल लगते हैं।
गाने का समय :      दिन का दूसरा प्रहर है।
आरोह :                 स रे म प z ड सं।
अवरोह :                स ड z प म ज्ञ रे स।

                    



           रेडि‍योप्‍लेबैक इंडि‍या पर पूर्व प्रसारि‍त लिंक
 http://radioplaybackindia.blogspot.in/2012/11/raag-jaunpuri-and-music-instrument-been.html

कार्यक्रम में शामि‍ल गीत झलक
पल पल है भारी - स्‍वदेस
दि‍ल में है तू - सत्‍यमेव जयते
दि‍ल का सकीना - दर्द
दर्द भरा - बारादरी
जायें तो जायें कहां - टैक्‍सी डाइवर
चि‍तनंदन आगे नाचूंगी - दो कलि‍यां
दि‍ल छेड़ कोई ऐसा नगमा - इंस्‍पेक्‍टर
तेरे खयालों मे - मेरी सूरत तेरी आंखें
यूं ही दि‍ल ने चाहा था - दि‍ल ही तो है
छम छम घुंघरू - काजल 

Friday, September 5, 2014

राग जैजैवन्ती


सुर, सप्तक और राग जैजैवन्ती  

                                                    आलेख - कृष्णमोहन मिश्र                                                    प्रस्‍तुति‍ -संज्ञा टंडन 


                    



                               
रेडि‍योप्‍ल्‍ोबैक इंडि‍या पर पूर्व प्रसारि‍त लिंक 
http://radioplaybackindia.blogspot.in/2012/12/blog-post_19.html


कार्यक्रम में शामि‍ल गीत -

देख कबीरा रोया  -  बैरन हो गई रैन

मोहब्‍बत की राहों में उडन खटोला

जिंदगी आज मेरे नाम से शरमाती है

मन मोहना - सीमा

सूनी सूनी - लाल पत्‍थर
आप आए तो खयाले-गुमराह
ढल चुकी  शामे गम - कोहि‍नूर
बदले बदले मेरे सरकार - चौदहवीं का चांद
इसके अलावा राग जैजैजवन्‍ती के अन्‍य गीतों की जानकारी

Tuesday, August 26, 2014

थाट और राग भाग 2

थाट और राग भाग 2  




थाट मारवा, काफी, तोड़ी, भैरवी, और असवारी की जानकारी


साथ में राग असावरी पर आधारि‍त फि‍ल्‍मी गीत


                                                   
     
प्रस्तुति - संज्ञा टंडन 
स्क्रिप्ट - कृष्णमोहन मिश्र
  



रेडि‍यो प्‍लेबैक इंडि‍या पर प्रसारि‍त पूर्व लिंक 
http://radioplaybackindia.blogspot.in/2012/11/blog-post_21.html

Saturday, August 23, 2014

थाट और राग भाग 1

थाट और राग 1 

थाट कल्‍याण, बि‍लावल, खमाज, भैरव और पूर्वी की जानकारी

साथ में राग भैरव पर आधारि‍त फि‍ल्‍मी गीत


 प्रस्तुति - संज्ञा टंडन 
 स्क्रिप्ट - कृष्णमोहन मिश्र

                  

 

रेडि‍योप्‍लेबैक इंडि‍या पर पूर्व प्रसारि‍त लिंक
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Tuesday, August 19, 2014

शास्त्रीय रागों में समय प्रबंध


शास्‍त्रीय रागों में समय प्रबंधन

हर राग को गाये जाने  के लिए एक समय निर्धारित होता है, 
इनका विभाजन बेहद वैज्ञानिक है. दिन के आठ पहर 
और हर पहर से जुड़े हैं रागों के विभिन्न रूप. 
आज इसी राग आधारित कार्यक्रम में समय प्रबंधन 
पर एक चर्चा हमारे साथ. 




                      


रेडि‍योप्‍लेबैक इंडि‍या पर पूर्व प्रसारि‍त लिंक


अगले कार्यक्रम में 22 अगस्‍त 
को हम आपको सुनवायेंगे 
थाटोें के बारे में कुछ जानकारी साथ्‍ा ही 
 राग भैरव पर आाधारि‍त गीत  

Friday, August 15, 2014

रागों की प्रारंभि‍क जानकारी कुछ गीतों के संग


राग क्‍या है, आरोह-अवरोह क्‍या होते हैं, 
शास्‍त्रीय संगीत से संबंधित सामान्‍य जानकारी के साथ 
आनंद लीजि‍ये कुछ नई फि‍ल्‍मों के ऐसे गीतों का
 जि‍न्‍हें संगीतकारों ने रागों को आधार बनाकर  
धुनीकृत कि‍या है-

                             

                 



 पूर्व प्रसारि‍त लिंक
 http://radioplaybackindia.blogspot.in/2012/10/blog-post_31.html


अगले अंक में 19 अगस्‍त को शास्‍त्रीय रागों के इस कार्यक्रम में 
समय प्रबंधन की जानकारी के साथ सुनि‍ये 
आठों प्रहरों में गाए जाने वाले रागों और गीतों की झलक...

Tuesday, August 12, 2014

हि‍न्‍दी फि‍ल्‍मों में रवीन्‍द्र गीत संगीत.....भाग 2

रवीन्‍द्र गीत-संगीत हि‍न्‍दी फि‍ल्‍मों में.... 
एक संगीतात्‍मक प्रस्‍तुति .......भाग 2


पि‍छले कार्यक्रम में आपने फि‍ल्‍मों में रवीन्‍द्र गीत संगीत के प्रयोग के बारे कुछ बातें सुनी, 
कुछ गीत सुने आज एक बार फि‍र हम आपके साथ है 
कुछ और बातों, गीतों और जानकारि‍यों के साथ.....

आलेख - सुजॉय चटर्जी
स्‍वर - संज्ञा टंडन
प्रस्‍तुति - सजीव सारथी


   

              
 पूर्व प्रसारि‍त लिंक

Friday, August 8, 2014

हि‍न्‍दी फि‍ल्‍मों में रवीन्‍द्र गीत संगीत.....भाग1

                              
       हि‍न्‍दी फि‍ल्‍मों में रवीन्‍द्र गीत संगीत.....भाग1
        एक संगीतात्‍मक प्रस्‍तुति 


रवीन्‍द्र गीत-संगीत का प्रयोग फि‍ल्‍मी धुनों में हमारे संगीतकार हमेशा से करते आए हैं...
और ये काम र्सि‍फ बंगाल से जुड़े संगीतकारों ने कि‍या है, ऐसी बात भी नहीं है....
कि‍सी ने धुन, कि‍सी ने इसके शब्‍दों का प्रयोग कि‍या है....
वि‍स्‍तृत जानकारी और गीतों के ऐसे प्रयोगों के अंशों के साथ प्रस्‍तुत है
 इस संगीतात्‍मक प्रस्‍तुति का पहला भाग....

आलेख - सुमि‍त चक्रवर्ती
स्‍वर - संज्ञा टंडन
प्रस्‍तुति - सजीव सारथी


                          

रेडि‍योप्‍लेबैक इंडि‍या पर पूर्व प्रसारि‍त लिंक    

Tuesday, August 5, 2014

वर्षाकालीन राग, भाग 2

वर्षाकालीन रागों के बारे में संगीतात्‍मक प्रस्‍तुति.....

सीजीस्‍वर पर पि‍छली बार आपने सुना वर्षा से जुड़े हुए कुछ रागों के बारे में और 
उन रागों से जुड़े कुछ फि‍ल्‍मी नगमों की झलक......आज उसी कार्यक्रम श्रृंखला 
का दूसरा भाग सुनि‍ये....वर्षा से जुड़े कुछ और राग....कुछ और गीत.....



             
                                                                   
रेडि‍योप्‍लेबैक इंडि‍या पर पूर्व प्रसारि‍त लिंक

                           http://radioplaybackindia.blogspot.in/2012/09/ragas-of-monsoon.html


Friday, August 1, 2014

वर्षाकालीन राग, भाग 1

वर्षाकालीन रागों के बारे में संगीतात्‍मक प्रस्‍तुति.....




वर्षाकालीन रागों में मल्‍हार के सभी प्रकार, वृंदावनी सारंग, देस आदि‍ शामि‍ल होते हैं,
इन रागों के बारे में संक्षि‍प्‍त जानकारी और
इन रागों पर आधारि‍त फि‍ल्‍मों में बने गीतों की झलक
शामि‍ल है इस कार्यक्रम में.....


 रेडि‍योप्‍लेबैक इंडि‍या पर पूर्व प्रसारि‍त लिंक

Monday, July 28, 2014

Journey to 'God's Own Land' Kerala...सड़क यात्रा ब्‍यौरा 12;;;;;;

बि‍लासपुर-केरल-बि‍लासपुर यात्रा संस्‍मरण 
दि‍नांक 17.05.2014 से 28.05.2014 

दि‍वस द्वादश 27.05.2014 औरंगाबाद-बि‍लासपुर
सुबह तैयार होकर 7.30 तक हम नागपुर के लिये निकल पड़े। तब तक ये नहीं सोचा था कि हम यहां से बिलासपुर ही पहुंच जायेंगे। जालना में पहुंचते तक दुकानें नहीं खुली थीं। छोटे से रेस्त्रां से कुछ नाश्‍ता पैक करवाया, फिर आगे बढ़ चले....जालना से सिंदखेड़राजा पहुंचे जहां शि‍वाजी की माता जीजाबाई का भव्य स्मारक है। यहीं जीजाबाई जी का मायका रहा है। यहां पुराना कि‍ला, स्‍मारक से लगी हुई वि‍शाल प्राचीन बावड़ी जो अभी भी अच्‍छी अवस्‍था में है और प्राचीन मोती तालाब आदि‍ प्राचीन कई समारक हैं। यहां हमने  जीजाबाई को आदरांजलि दी। खराब ये लगा कि इतने महत्वपूर्ण और ऐतिहासिक स्थल पर पर्यटकों की संख्या नगण्य है। यहां से हम लोनार लेक की तरफ बढ़ चले। लोनार लेक देखने की बरसों पुरानी ख़्वाहिश थी। लोनार पहुंच जब हम नीचे जाने के लिये कार से उतरे तो बहुत तेज़ गर्मी थी, पारा यकीनन 46-47 डिग्री से उपर रहा होगा। नीचे मंदिर में एक बी.ए.प्रथम वर्ष का छात्र राजेश मिला, जो वहां गाइड का काम भी करता है। उसने अपने ज्ञान से हमें मोहपाश में बांध लिया। दरअसल पहले जब हम लोग लोनार पहुंचे तो सीधे अभ्यारण्य के रास्ते उसकी परिक्रमा करने की सोची, लेकिन रास्ता इतना खराब था, यूं समझिये कि रास्‍ते का बस निशान था, सो हम आधे रास्ते से  वापस हो लिये और मुख्य रास्ते से कार छोड़ पैदल नीचे उतरे। मंदिर तक पहुंचते तस्वीर कुछ साफ नहीं हो पा रही थी। पर जब गाइड राजेश ने लोनार लेक और मंदिर के बारे में बताया तो सहसा विश्‍वास नहीं हुआ। उसने बताया (जिसकी तस्दीक वापस आकर इंटरनेट से की) कि‍ यह झील करीब 50 हजार साल पूर्व 10 लाख टन मीटोरॉइड के धरती से टकराने पर बनी थी। इस झील का व्यास करीब 2 किमी और गहराई 150 मीटर है। इस तरह की यह दुनिया की तीसरी विशालतम झील है। खारे पानी की इस झील के अंदर कुछ विशेष बैक्टीरिया हैं और किसी भी प्रकार के जन्तु नहीं हैं। आसपास वन्य प्राणी व वनस्पतियां बहुतायत में हैं। मीटोरॉयड जब धरती से टकराया था तो उसका एक टुकड़ा कुछ कि.मी.दूर जा गिरा था, जिसे कभी किसी हुनरमंद कारीगर ने लेटे हुए हनुमान जी की प्रतिमा में तब्दील कर दिया जिनके पांव के नीचे शनि भगवान दबे हैं और शनि की पत्नी दया याचना कर रही हैं। राजेश ने हमें बताया कि यह प्रतिमा अभी 5 माह पूर्व तक 25 टन सिंदूर-गेरू लेप में छिपी हुई थी। अमेरिका से आए वैज्ञानिकों ने इसे पहचाना और लेप हटवाया तो यह मूर्ति नज़र आई। यह मूर्ति चुंबकीय असर दिखाती है। कहा जाता है कि ब्लडप्रेशर का मरीज यहां बेहतर महसूस करता है। मेरा कैमरा सचमुच वहां काम नहीं कर सका और हमें भी वातावरण में जबरदस्त उर्जा प्रवाह महसूस हुआ। तेज गर्मी में एसी से बाहर फिर अंदर होते मेरी तबियत कुछ नासाज़ या यूं कहें कि कुछ नाराज़ सी हो गई थी, पर वहां यकीनन उर्जा स्तर बढ़ा हुआ लगा। अच्छा अनुभव रहा। लोनार में झील और इस मंदिर के अलावा ऐतिहासिक महत्व का दैत्यसूदन मंदिर भी था। लोनार से निकलते करीब 2 बज रहे थे। हमारे अब तक प्रिय बन चुके गाइड राजेश ने हमारे आइसबॉक्स के लिये बर्फ का इंतज़ाम किया और हम अकोला/नागपुर के लिये नि‍कल पड़े। पहले प्लानिंग शेगांव, अकोला या नागपुर में रूकने की थी। पर एकाध घंटे बाद एक सीधा रास्ता नागपुर का दिखा जो महज 300 कि.मी दर्शा रहा था। पूछताछ की तो पता चला कि ये सीधे वर्धा तक पहुंचाता है....आव देखा ना ताव.....सीधी-लंबी-खाली-टोलविहीन सड़क पर तेज गर्मी-दोपहरी-धूप लेकिन अपनी डिज़ायर के सक्षम एसी के सहारे तेज रफ्तार में नागपुर के लिये बढ़ चले। तबियत रूठना भी लगातार पानी के घूंट पीते रहने से अब कम हो गया था। वर्धा पहुंचते पहुंचते अब मन सीधे बिलासपुर पहुंचने के लिये कुलबुलाने लगा था। वर्धा पार करते सोचा देर रात ही सही बिलासपुर पहुंच लिया जाए। हिसाब लगाया तो औरंगाबाद से जालना, लोनार होते हुए बिलासपुर 1000 किमी से ज़्यादा पड़ रहा था। गाड़ी चलाते....यूं कहिये भगाते विचार मंथन होता रहा और जब नागपुर हमने 6.30 बजे तक पार कर लिया तब निष्चय कर लिया कि अब रात बिलासपुर ही पहुंचना है....भंडारा पहुंचते भूख लगने लगी थी। जालना में मिर्च की भजिया और आलू बोंडा खाया था, उसके बाद तरल...पानी, जूस और महाबलेश्‍वर की कुछ स्ट्राबेरी के अलावा कुछ भी नहीं लिया था। एक अच्छे होटल में नाश्‍ता किया, कुछ आराम से खाया....एटीएम से पैसे निकाले...पेट्रोल डलवाया...और फिर बलासपुर के लिये निकल पड़े। रात 11 बजे तक भिलाई पहुंचकर लगा कि यहीं दिवा/बहन/ के देवर अमित सेठ के यहां रुक जाते हैं, पर रुनझुन/बिटिया/की तबियत खराब होने का समाचार सुनकर सीधे बिलासपुर की ओर बढ़ लिये...one who drives a car is a driver तो इस पूरी ट्रि‍प में मैंने यानि‍ राजेश टंडन ने ड्राइवर और पत्‍नी यानि‍ संज्ञा टंडन ने नेवि‍गेटर का रोल बखूबी नि‍भाया था, दोनों को अपने आप पर गर्व महसूस हो रहा था। अब एक बात बताना लाजिमी है, बेहद जरूरी है...जब हमने यात्रा की शुरूवात की थी तो एक डायरी में हर दिन की शुरूवात और अंत के किमी का रिकॉर्ड, पेट्रोल कब, कहां और कितने का डलवाया, समय, जगह, स्थान, लोग, संस्कृति, खासियत सब नोट करते जाते थे। रायपुर बिलासपुर के बीच पेट्रोल भरवाते वक्त जब माइलोमीटर से किमी नोट करने के लिये डायरी ढूंढी तो वो नहीं मिली। काफी ढूंढा, पर अफसोस वो आज तलक नहीं मिली। शायद भंडारा के जिस रेस्टोरेंट में नाश्‍ता किया था वहीं छूट या गिर गई। रात 1.30 बजे बिलासपुर पहुंचे। इस अविस्मरणीय यात्रा का रोमांच और सकुशल यात्रा पूरी करने की खुशी तो थी पर डायरी गुम हो जाने का अफसोस भी था। अगर वो डायरी आज साथ होती तो शायद ज़्यादा विश्‍वसनीय और स्पष्ट ढंग से समय, स्थान/कुछ ऐसे स्थानों के नाम जो लंबी यात्रा में विस्मृत हो गए/, दूरी, टोल, पेट्रोल, खर्च, घटना-दुर्घटना आदि का ब्यौरा इस संस्मरण में दिया जा सकता था। फि‍र भी इतना तो बताया ही जा सकता है कि‍ कुल 6200 कि‍मी से कुछ ज्‍यादा की यात्रा में करीब 1700 कि‍मी की यात्रा केरल में, 1000 से काफी ज्‍़यादा आखि‍री दि‍न की रही। बहरहाल अंत अच्छा तो सब अच्छा। 1.30 बजे घर पहुंच लगा कि स्वर्ग कश्‍मीर में हो या केरल में या फिर कहीं और....अपना घर क्या स्वर्ग से कम है़? आदतानुसार और इच्छानुसार खाना और विश्राम शायद दुनिया की सबसे बड़ी नियामत है।


सिंघखेडराजा में जीजाबाई के स्‍मारक की कुछ तस्‍वीरें


 
लोनार में मीटॉरायड के छि‍तरे हुए टुकड़े से बनी हनुमान जी की प्रति‍मा  

कैमरे पर चुंबकीय प्रभाव
गाइड राजेश

25 टन लेप के पहले व हटाने बाद की मूर्ति‍ की तस्‍वीर
दैत्‍यसूदन मंदि‍र




मुख्‍य मंदि‍र




लेक के चारों ओर वनस्‍पति
यात्रा मार्ग

Sunday, July 27, 2014

Journey to 'God's Own Land' Kerala...सड़क यात्रा ब्‍यौरा 11...

बि‍लासपुर-केरल-बि‍लासपुर यात्रा संस्‍मरण 
दि‍नांक 17.05.2014 से 28.05.2014 

दि‍वस एकादश 27.05.2014 महाबलेश्‍वर-औरंगाबाद

सफरनामा- महाबलेश्‍वर की जिस कॉटेज में हम रुके थे, उसका व्‍यवस्‍थापक पैसे तो बात-बात पर लेता था, लेकिन व्यवहार कुशल था और सर्वि‍स अच्‍छी देता था। हमने उससे एक गाइड का इंतज़ाम करने को कहा था जो हमें दो-ढाई घंटे में जहां-जहां संभव हो घुमवा दे। सुबह 8 बजे निकलते वक्त महोदय ने एक बुजुर्ग सफेद टोपी वाले सज्जन को हमसे मिलवाया और बताया ये यहां के सीनियर गाइड हैं जो आपका समय बचाते हुए महाबलेश्‍वर दर्शन कराएंगे। सबसे पहले वो गाइड हमें मंदिर दर्शन करवाने ले गए। वहां पहुंचते तक वे चुप रहे या हां..ना..में जवाब देते रहे। कुछ अजीब लगा। मंदिर पहुचकर पता चला कि बुजर्गवार को हिन्दी नहीं आती और हम मराठी में बेहद कमज़ोर। कुल मिलाकर हमारे गाइड हमारा मनोरंजन ही करते रहे। कुछ बोलकर जोरों से हंसते थे, उन्हें हंसता देख हम भी हंसते थे और हमें हंसता देख वो एक ही शब्द कहते थे ‘बरोबर‘। अब हंसते-खीजते जो घूमा, सो घूमा....फिर पंचगनी वाले तिराहे पर उनसे विदा लेकर हम पंचगनी पहुंचे। पंचगनी के पहले चॉकलेट फैक्‍ट्री के पास एक पि‍कनि‍क स्‍पॉट डेव्‍हलप कि‍या गया है...सुंदर है, पर थोड़ा ज्‍़यादा पैसेवालों के लि‍ये है। कोको बीज को चॉकलेट तक परि‍वर्ति‍त होते देखना एक अच्‍छा अनुभव था। वहां घूम-फि‍र कर हम पंचगनी पहुंचे, नाश्‍ता किया और उस दौरान कार धुलवाई। कुछ किलो स्ट्राबेरी ली, जो बिलासपुर पहुंचते करीब-करीब गल गईं। फिर कुछ दर्शनीय जगहें देखीं और औरंगाबाद के लिये चल पड़े। पूना पहुंचते तक दो बज गये थे। घनघोर घटाएं, फिर तेज़ बारिश....उपर से पूना से औरंगाबाद की तरफ जाने का पूरा रास्ता वन वे......ज़रा सी चूक....कई किमी की सज़ा दे सकती थी। नेवीगेटर को धन्यवाद जिसने थोड़ा ज़्यादा घुमाते-फिराते ही सही पर सही रास्ते तक पहुंचा दिया। अहमदनगर न घुसकर बाईपास से औरंगाबाद की तरफ बढ़े और 50-55 किमी दूर शनि सिंघनापुर रुक कर शनि महाराज के दर्शन किये। आजकल वहां मंदिर से काफी पहले युवकों की टोलियां जबरदस्ती गाड़ी रोककर फ्री पार्किंग के बहाने गाड़ी रुकवाते हैं और वहीं की दुकानों से तेल-प्रसाद खरीदने को बाध्य करते हैं। कुछ वर्दीधारी भी इसमें शामिल नज़र आते हैं। बहरहाल दर्शन-पूजा के बाद प्रसाद ग्रहण कर निकलते साढ़े सात बज गए। औरंगाबाद से 7-8 कि.मी. पहले एक अच्छा सा होटल दिखाई दिया, सोचा बात करके देखते हैं। सब कुछ ठीक लगा तो यहीं रुक जाते हैं ठीक वैसे ही जैसे पहले दिन कामारेड्डी में हुआ था, यहां भी इस बार आखिरी दिन हमें 1300 रूपये में 2300 से उपर का बेहतरीन रूम मिल गया। फिर अब तक खींची गई तस्वीरों का लैपटॉप में अवलोकन-भोजन-शयन।

तस्‍वीर-ए-बयां-
महाबलेश्‍वर के कुछ प्रसिद्ध मंदि‍र



इन पॉइन्‍ट्स पर हमें सि‍र्फ बादल मि‍ले



चॉकलेट फैक्‍ट्री





पंचगनी टेबल टॉप पर फुरसत के दो पल 


शनि‍ सिंघनापुर की कुछ तस्‍वीरें



कल के यात्रा के अंति‍म अंक में - ...पर जब गाइड राजेष ने लेक और मंदिर के बारे में बताया तो सहसा विष्वास नहीं हुआ। उसने बताया  यह झील करीब 50 हजार साल पूर्व 10 लाख टन मीटोररॉइड के धरती से टकराने पर बनी थी... हमें बताया गया कि यह प्रतिमा अभी 5 माह पूर्व तक 25 टन सिंदूर-गेरू लेप में छिपी हुई थी। अमेरिका से आए वैज्ञानिकों ने इसे पहचाना और लेप हटवाया तो यह मूर्ति नज़र आई....