Monday, September 3, 2012

बोलते विचार 66 वैयक्तिक लाभ और सामाजिक लाभ



बोलते विचार 66
वैयक्तिक लाभ और सामाजिक लाभ
 आलेख व स्‍वर 
डॉ.रमेश चंद्र महरोत्रा 



टी. वी. बिगड़ गया था। दुकानदार को फोन कर दिया, उसका आदमी घर आया और सुधारकर चला गया। पैसे लेकर रसीद  दे गया, सब बढि़या। एक बार वॉशिंग मशीन बिगड़ गई। उसके दुकानदार को भी उसी प्रकार फोन किया। उसने मना करते हुए कहा कि शिकायत लेकर स्वयं दुकान तक पहुँचना जरूरी है। पहले समझ में नहीं आया कि क्यों, पर वहाँ पहुँचने पर पता चला कि निर्धारित न्यूनतम राशि (दुकान के मैकेनिक के पारिश्रमि‍क और आने-जाने के खर्च को मिलाकर) जमा करना जरूरी है। ठीक है, राशि जमा कर दी। पर वहाँ यह कहे बिना नहीं रहा गया कि यह तो हम घर पर भी दे देते। इस पर वे बोले कि हम धोखा खा चुके हैं। एक संभ्रांत माने जाने वाले सज्जन ने घर बुलाया था। उनके यहाँ का काम करने के बाद जब बिल दिया तो वे बिगडने-झगड़ने लगे कि इतने ज़रा से काम के लिए इतने रूपए नहीं देंगे। तब से हमने नियम बना लिया कि बिना अग्रिम राशि  जमा कराए किसी के भी यहाँ नहीं जाएँगे।

आशय स्पष्ट है कि करे एक, भरें सब। समाज के कुछ अविवेकी और बदनीयत लोगों के कारण दूसरों को बिना बात के परेशानी-उठानी पड़ती है; एक के अविश्वसनीय व्यवहार के कारण अन्यों पर भी विश्वास करने में दुविधा होने लगती है। उपर्युक्त प्रकरण में दुकानदार को दोष देना फिजूल है, क्योंकि वह पहले से यह कभी नहीं जान पाएगा कि किस क्रेता का व्यवहार काम निकल जाने के बाद कैसा रहेगा। जो क्रेता गलत व्यवहार करता है, वह भविष्य के लिए दुकानदार विशेष से अपने ही संबंधों को बिगाड़ने वाला नहीं, दूसरों के लिए भी सामाजिक विद्रूपताएँ सामने खड़ी करने वाला अपराधी बन जाता है। वह केवल अपने छोटे लाभ के बारे में सोचता है, बड़े लाभ के बारे में नहीं सोच पाता। (यदि उन संभ्रांत क्रेता महोदय को मशीन की सुधरवाई महँगी ही लगती थी तो उन्हें मैकेनिक को अपने घर बुलाने के पहले दुकानदार से फोन पर ही रेट आदि की बात स्पष्ट कर लेनी चाहिए थी।)

सदा याद रखी जाने वाली बात है कि थोड़े से पैसों की ‘अस्वीकृत बचत’ के वैयक्तिक लाभ की तुलना में अच्छे संबंधों के स्थायी सामाजिक लाभ का महत्व बहुत अधिक है।

1 comment:

  1. रमेश जी ,
    मैं एक हिन्दी शिक्षिका हूँ... और संभवतः हिन्दी शिक्षण के क्षेत्र में आने वाली परेशानियों को अच्छी समझती हूँ.वैसे तो हिन्दी के कई ब्लॉग हैं कई वेब साईट भी हैं.परन्तु पूरी तरह शैक्षणिक नहीं हैं. साथ ही हिन्दी टीचर की लिमिटेशन भी समझती हूँ. इसलिए इस तरह की एक वेब साईट बनाने की सोच रही हूँ.
    आप के कई पोस्ट बहुत बहुत बहुत अच्छे है उनसे अच्छी बातें सीखने मिलती हैं..
    अगर आपकी अनुमति हो तो आपके ब्लॉग के कुछ अंश जो मुझे बेहद अच्छे लगे क्या उन्हें वहाँ लगा सकती हूँ?
    आपकी अनुमति की आवश्यकता थी.
    यह वेब साईट निःशुल्क है.सिर्फ हिन्दी शिक्षण को और वैज्ञानिक और मजेदार बनाना चाहती हूँ.
    आपका सहयोग आपेक्षित है.
    धन्यवाद सहित,
    एमा कुमुदिनी

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