Friday, September 28, 2012

लता मंगेशकर - एक आवाज 83 साल की

लता मंगेशकर,  एक आवाज...;भारत की आवाज.....जि‍स आवाज को हम सब बचपन से लगातार सुनते आ रहे हैं....शायद ही कोई दि‍न गुजरता हो जब हमारे कानों को ये आवाज छूकर ना जाती हो.....आज ये आवाज 83 बरस की हो गई है....करते हैं इस आवाज को हम नमन.......


आलेख व स्‍वर-  

सुनील चि‍पडे.







भारत रत्न लता मंगेशकर (जन्म 28 सितंबर, 1929 इंदौर), . भारत की सबसे लोकप्रिय और आदरणीय गायिका हैं जिनका छ: दशकों का कार्यकाल उपलब्धियों से भरा पड़ा है। हालांकि लता जी ने लगभग तीस से ज्यादा भाषाओं में फ़िल्मी और गैर-फ़िल्मी गाने गाये हैं लेकिन उनकी पहचान भारतीय सिनेमा में एक पार्श्वगायक के रूप में रही है। लता की जादुई आवाज़ के भारतीय उपमहाद्वीप के साथ-साथ पूरी दुनिया में दीवाने हैं। टाईम पत्रिका ने उन्हें भारतीय पार्श्वगायन की अपरिहार्य और एकछत्र साम्राज्ञी स्वीकार किया है।
पुरस्कार
  • फिल्म फेर पुरस्कार (1958, 1962, 1965, 1969, 1993 and 1994)
  • राष्ट्रीय पुरस्कार (1972, 1975 and 1990)
  • महाराष्ट्र सरकार पुरस्कार (1966 and 1967)
  • 1969 - पद्म भूषण
  • 1974 - दुनिया मे सबसे अधिक गीत गाने का गिनीज़ बुक रिकॉर्ड
  • 1989 - दादा साहब फाल्के पुरस्कार
  • 1993 - फिल्म फेर का लाइफ टाइम अचीवमेंट पुरस्कार
  • 1996 - स्क्रीन का लाइफटाइम अचीवमेंट पुरस्कार
  • 1997 - राजीव गान्धी पुरस्कार
  • 1999 - एन.टी.आर. पुरस्कार
  • 1999 - पद्म विभूषण
  • 1999 - ज़ी सिने का का लाइफटाइम अचीवमेंट पुरस्कार
  • 2000 - आई. आई. ए. एफ. का लाइफटाइम अचीवमेंट पुरस्कार
  • 2001 - स्टारडस्ट का लाइफटाइम अचीवमेंट पुरस्कार
  • 2001 - भारत का सर्वोच्च नागरिक सम्मान "भारत रत्न"
  • 2001 - नूरजहाँ पुरस्कार
  • 2001 - महाराष्ट्र भुषण

    LataMangeshkar.jpg
  • पिता दिनानाथ मंगेशकर शास्त्रीय गायक थे.
  • उन्होने अपना पहला गाना मराठी फिल्म 'किती हसाल' (कितना हसोगे?) (1942) में गाया था.
  • लता मंगेशकर को सबसे बडा ब्रेक फिल्म महल से मिला. उनका गाया "आयेगा आने वाला" सुपर डुपर हिट था.
  • लता मंगेशकर अब तक 20 से अधिक भाषाओं मे 30000 से अधिक गाने गा चुकी हैं.
  • लता मंगेशकर ने 1980 के बाद से फ़िल्मो मे गाना कम कर दिया और स्टेज शो पर अधिक ध्यान देने लगी.
  • लता ही एकमात्र ऐसी जीवित व्यक्ति हैं जिनके नाम से पुरस्कार दिए जाते हैं.
  • लता मंगेशकर ने आनंद गान बैनर तले फ़िल्मो का निर्माण भी किया है और संगीत भी दिया है.
  • वे हमेशा नंगे पाँव गाना गाती हैं.


Sunday, September 9, 2012

बोलते विचार 67 व्यर्थ के झगड़े का इलाज


व्यर्थ के झगड़े का इलाज
आलेख व स्‍वर 
डॉ.रमेश चंद्र महरोत्रा 



एक मोहल्ले की एक सड़क के बीच में एक कम पढ़ी-लिखी निम्न वर्गीय औरत एक साइकिल सवार को रोककरडाँट रही थी कि यदि तुम्हारी साइकिल से मेरे टककर लग जाती तो मेरे चोट लग जाती। साइकिल वाला जवाब दे रहा था कि न तो तुम्हारे चोट लगी है और न मेरी साइकिल ने तुम्हे छुआ ही है। मैं तो एक फुट की दूरी से  साइकिल निकाल रहा था। औरत बिगड़कर कहने लगी कि नहीं, तुम्हें साइकिल को और ज्यादा दूरी से  निकालना था, तुम्हारी गलती से मेरे चोट लग सकती थी। अगर लग जाती तो ? औरत के तेवर देखकर लग रहाथा कि वह साइकिल वाले को वहाँ से जल्दी नहीं जाने देगी और उसे खरी-खोटी सुनाती ही रहेगी।

साइकिल वाला जानता था कि साइकिल चलाने में उसने लेशमात्र भी गलती नहीं की थी, उलटे उसने औरत को सड़क के बीचों बीच चलते देखकर उससे बचने में विशेष सावधानी बरती थी। फिर भी उसने तत्काल गलती मान ली और बोला, ‘माँ जी ! मुझे एक बार माफ कर दो बस। आगे से ऐसी गलती कभी नहीं करूँगा।औरत ने अपनी जीत की खुशी में साइकिल वाले को मुक्त कर दिया।

जिंदगी में जाने कितने ऐसे अवसर आते हैं, जब हम दूसरे की नासमझी या गलती के कारण परेशानी में फँस जाते हैं। उपर्युक्त प्रकरण में यदि साइकिल वाला बहस को बढ़ाता रहता तो बात बिगड़ती ही चली जाती। उसका माफी माँगकर बखेड़े को जल्दी से निबट डालने का कदम बहुत समझदारी का था। ऐसा करने से उसकी जेब से कुछ नहीं गया और उसने एक नासमझ के क्रोध को जीत लिया। यदि वह अपनी सफाई दे देकर औरत के क्रोध को बढ़ाता जाता और अपने अहम् के नाम पर स्वयं भी अधिकाधिक क्रुद्ध होता जाता तो अपना ही नुकसान करता।

निष्कर्षतः किसी व्यर्थ के झगड़े का इलाज स्वयं को गलत न सिद्ध करने के लिए झगड़ा बढ़ाना नहीं है, उसका इलाज झगड़ा करने वाले के हाथ जोड़ लेना है।

Monday, September 3, 2012

बोलते विचार 66 वैयक्तिक लाभ और सामाजिक लाभ



बोलते विचार 66
वैयक्तिक लाभ और सामाजिक लाभ
 आलेख व स्‍वर 
डॉ.रमेश चंद्र महरोत्रा 



टी. वी. बिगड़ गया था। दुकानदार को फोन कर दिया, उसका आदमी घर आया और सुधारकर चला गया। पैसे लेकर रसीद  दे गया, सब बढि़या। एक बार वॉशिंग मशीन बिगड़ गई। उसके दुकानदार को भी उसी प्रकार फोन किया। उसने मना करते हुए कहा कि शिकायत लेकर स्वयं दुकान तक पहुँचना जरूरी है। पहले समझ में नहीं आया कि क्यों, पर वहाँ पहुँचने पर पता चला कि निर्धारित न्यूनतम राशि (दुकान के मैकेनिक के पारिश्रमि‍क और आने-जाने के खर्च को मिलाकर) जमा करना जरूरी है। ठीक है, राशि जमा कर दी। पर वहाँ यह कहे बिना नहीं रहा गया कि यह तो हम घर पर भी दे देते। इस पर वे बोले कि हम धोखा खा चुके हैं। एक संभ्रांत माने जाने वाले सज्जन ने घर बुलाया था। उनके यहाँ का काम करने के बाद जब बिल दिया तो वे बिगडने-झगड़ने लगे कि इतने ज़रा से काम के लिए इतने रूपए नहीं देंगे। तब से हमने नियम बना लिया कि बिना अग्रिम राशि  जमा कराए किसी के भी यहाँ नहीं जाएँगे।

आशय स्पष्ट है कि करे एक, भरें सब। समाज के कुछ अविवेकी और बदनीयत लोगों के कारण दूसरों को बिना बात के परेशानी-उठानी पड़ती है; एक के अविश्वसनीय व्यवहार के कारण अन्यों पर भी विश्वास करने में दुविधा होने लगती है। उपर्युक्त प्रकरण में दुकानदार को दोष देना फिजूल है, क्योंकि वह पहले से यह कभी नहीं जान पाएगा कि किस क्रेता का व्यवहार काम निकल जाने के बाद कैसा रहेगा। जो क्रेता गलत व्यवहार करता है, वह भविष्य के लिए दुकानदार विशेष से अपने ही संबंधों को बिगाड़ने वाला नहीं, दूसरों के लिए भी सामाजिक विद्रूपताएँ सामने खड़ी करने वाला अपराधी बन जाता है। वह केवल अपने छोटे लाभ के बारे में सोचता है, बड़े लाभ के बारे में नहीं सोच पाता। (यदि उन संभ्रांत क्रेता महोदय को मशीन की सुधरवाई महँगी ही लगती थी तो उन्हें मैकेनिक को अपने घर बुलाने के पहले दुकानदार से फोन पर ही रेट आदि की बात स्पष्ट कर लेनी चाहिए थी।)

सदा याद रखी जाने वाली बात है कि थोड़े से पैसों की ‘अस्वीकृत बचत’ के वैयक्तिक लाभ की तुलना में अच्छे संबंधों के स्थायी सामाजिक लाभ का महत्व बहुत अधिक है।

Sunday, September 2, 2012

Bolte Shabd 98 'अच्‍छा' व 'भला'





बोलते शब्‍द 98
आलेख
डॉ.रमेश चंद्र महरोत्रा

स्‍वर
संज्ञा टंडन



180. 'अच्‍छा' व 'भला'






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