Wednesday, December 21, 2011

बोलते वि‍चार 42- व्यर्थ की झेंप



बोलते वि‍चार 42
आलेख व स्‍वर - डॉ.आर.सी.महरोत्रा









एक साहब अपने स्कूटर पर पीछे गैस सिलिंडर रखकर ले जा रहे थे, जिसे उन्होंने एक चादर से ढक दिया था। ढकने का कारण सिर्फ यह थी कि लोग बाग यह न देख लें कि वे सिलिंडर ढोने का ‘छोटा काम’ खुद कर रहे थे। ज़ाहिर है कि उनकी मान्यता थी कि सिलिंडर ढोने से आदमी छोटा हो जाता है, भले ही वह उसे अपने महँगे और शानदार स्कूटर पर ढो रहा हो।





 सच्चाई यह है कि आदमी जब मन से छोटा होता है तब वह बाजार से खुली झाडू खरीदकर लाने में भी अपने को छोटा समझता है, और घर का कूड़ा बाहर यथा स्थान फेंकने में भी अपने को छोटा समझता है कि कहीं कोई उस देखकर ‘नरक का प्राणी’ न समझ ले। ऐसे लोग घर का और अपने दिमाग का कूड़ा भी यथा समय बाहर फेंक पाने में विफल रहते हैं?   
    
इसके विपरीत, आदमी जब मन से बड़ा होता है तब उसे से छोटी-छोटी बातें बिलकुल नगण्य लगती हैं। उसकी इज्जत इतनी ढुलमुल नहीं होती कि वह सिलिंडर ढोने या झाडू हाथ में लेकर चलने या कूड़ा बाहर फेंकने से डाँवाँडोल हो जाए।
    
कुछ लोगों को भ्रम होता है कि कुछ काम सिर्फ नौकरों के करने के होते हैं। ऐसे लोग वस्तुतः नौकरों के मोहताज होते हैं। ये नौकर क्या हैं? ये ऐसे लोगों के हाथ-पैर है। यदि नौकर मिलकर इन लोगों को सबक सिखाना शुरू कर दें तो इनका दो कदम चलना दुश्वार हो जाए। गनीमत है कि ऐसे लोगों को अपने बदन पर अपने हाथों से साबुन लगाने में और शौचोपरांत प्रक्षालन क्रिया करने में अपनी शान घटती हुई नहीं लगती।

हमें शुक्रगुजार होना चाहिए उन व्यक्तियों के प्रति, जो हमारे बहुत से रोजमर्रा के कामों में हमारी मदद करते है; लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि हम उनके काम को छोटा समझें। यदि हमारे अंदर गलत भाव-ग्रंथियाँ नहीं हैं तो हम उनके द्वारा हमारे लिए किए जानेवाले हर ‘छोटे कहे जाने वाले’ काम को जरूरत पड़ने पर बिना किसी झेंप के और बिना किसी की परवाह किए कर सकते हैं। ऐसे में यदि कोई हम पर हँसता है तो हम भी उसपर हँस दें -  उसे ‘बेचारा’ मानकर।

Production - Libra Media Group, Bilaspur (C.G.), India

1 comment:

  1. कोई भी काम छोटा नहीं होता.....
    बढिया सीख।

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