Wednesday, December 7, 2011

बोलते वि‍चार 38 - जो हुआ, अच्छा हुआ

बोलते वि‍चार 37
आलेख व स्‍वर - डॉ.आर.सी.महरोत्रा
गीता-सार का पहला वाक्य है -‘जो हुआ, अच्छा हुआ।’ इस विषय पर गंभीरता से विचार करके इसे अमल में लाने से आदमी को परम् संतोष प्राप्त हो सकता है। आईए, इसकी व्याख्या करें।

जो हुआ, यदि वह हमारे मन के अनुकूल हुआ है, तब तो अच्छा हुआ ही है; लेकिन यदि वह हमारे मन के प्रतिकूल हुआ है, तब भी अच्छा हुआ है, यह कैसे? यह ऐसे कि हमें हर वक्त याद रखना होगा कि जो बीत चुका, उस पर अब किसी का वश नहीं हैं, क्योंकि उसे कोई वापस नहीं ला सकता। इसलिए उसे याद कर-करके अपने मन को कष्ट देना समझदारी नहीं है। जिंदगी का साथ निभाने के लिए ‘बीती ताहि बिसार दे ‘बहुत जरूरी है। आपने यह मशहूर गाना सुना होगा-‘मैं जिंदगी का साथ निभाता चला गया...जो खे गया मैं उसको भुलाता चला गया।’





हर ‘हुए’ को अच्छा मान लेने का लाभ यह है कि बीमार होने की आशंका से भी पहले बीमारी का इलाज हो जाता है। यदि आदमी ऐसा नहीं करता है-अर्थात् अपने साथ ‘खराब हुए’ को भाग्यहीनता’ कह-कहकर विलाप करता ररत है तो वह अपना वर्तमान भी खराब करता रहता है और अपना भविष्य अच्छा होने की दृष्टि से भी अपना समय और श्रम नष्ट करता रहता है।

सच्चे संतों की मान्यता है कि सुख और दुःख को समभाव से देखो। इसका मतलब है कि अपने मन पर इतना नियंत्रण रखो कि वह न तो सुख में पागल हो और न दुःख में। जिन सज्जनों को यह महान् सिद्धि प्राप्त हो जाती है, उनके लिए ‘जो हुआ, अच्छा हुआ’ का मंत्र शुद्ध वायु में साँस लेने के समान हो जाता है।
    
आदमी संसार में अकेला नहीं हैं। उसकी इच्छाओं से बहुत से व्यक्तियों की अनेक इच्छाओं का टकराव होता रहता है। जब हम यह जानते हैं कि दूसरे व्यक्तियों की भी अल्पाधिक इच्छाओं की पूर्ति (और अपूर्ति) अनिवार्य रूप से होनी है तब हम यह अपेक्षा कैसे कर सकते हैं कि ‘हमारी’ सभी ‘इच्छाएं पूरी हो जानी चाहिए। सच तो यह है कि यदि हमारे ही हाथों में अपने जीवन का पूरा संचालन-प्रबंधन हो, तब भी हम पूर्णरूप से सुखी नहीं बन सकते; क्योंकि हमारे लिए समाज में अन्यों की पूर्ण उपेक्षा करके जीना संभव नहीं है। उधर, हमारा दुःख तब अधिक सिर उठाता है जब दूसरों की कोई बात पूरी हो जाने और हमारी बात पूरी न हो पाने की स्थिति बनती है। बस यहीं हमें उस दुःख का सफाया करने और अपने मन का संतुलन बनाए रखने के लिए ‘जो हुआ, अच्छा हुआ’ के अस्त्र का सुदपयोग करना चाहिए।

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