Wednesday, November 16, 2011

बोलते वि‍चार 33 - आदमी-आदमी में भेद मत रखिए

आदमी-आदमी में भेद मत रखिए
बोलते वि‍चार 33
आलेख व स्‍वर - डॉ.आर.सी.महरोत्रा

    आदमी-आदमी में भेद करने वाले व्यक्तियों को ओलंपिक से शिक्षा लेनी चाहिए, जिसमें क्षेत्रवाद और जातिवाद तो क्या, सम्प्रदायवाद और धर्मवाद काभी कोई अता-पता नहीं होता। वहाँ सिर्फ मानववाद होता है। वहाँ कोई नहीं सोचता कि कौन अछूता है और कौन ‘छूत’। रंग-रूप का भी वहाँ अद्भुत संगत दिखाई पड़ता है और समतावाद का भी वहाँ सच्चा रूप देखने को मिलता है। केवल वहाँ अनुभव होता है कि संसार भर के आदमी सिर्फ आदमी हैं।

स्वस्थ और ईमानदार तरीकों से स्पर्धाओं में जीतने के लिये अपनी जान लगा देना और जबरदस्त अनुशासन का पालन करने के लिये सर्वांशतः बाध्य होना आज की दुनिया में शायद केवल ओलंपिक में संभव है। चाहे कोई कितना भी बड़ा क्यों न हो,? उसके लिये वहाँ ‘पक्षपात’ शब्द का अकाल रहता है। वहाँ स्पर्धाओं के मैदान में कोई किसी का ‘रिश्तेदार’ नहीं होता। वहाँ सिर्फ एक रिश्ता होता है - आदमी का आदमी से।
 
यदि राजनीतिक स्तर पर किन्हीं दो देशों के बीच शत्रुता होती है, तब भी वहाँ के खिलाडि़यों में ओलंपिक में केवल सद्भाव और भाईचारा रहता है। वहाँ किसी भी देश के राष्ट्रीय ध्वज के अपमान की कल्पना नहीं की जा सकती। स्वर्ण पदक प्राप्त करने के बाद जिस समय संबंधित खिलाड़ी के राष्ट्र की धुन बजती है उस समय का माहौल पारस्परिक सहिष्णुता की दृष्टि से अनुपम होता है। पूरा स्टेडियम उसके सम्मान में अखंड शांति रखता है।

पदकों की प्राप्ति के बाद जिस समय भिन्न-भिन्न राष्ट्रों के विरोधी खिलाड़ी एक-दूसरे के प्रति स्नेह और संवेदनशीलता दिखाते हैं उस समय संसार में बुराई के अस्तित्व के प्रति अविश्वास होने लगता है। यह बुराई पर अच्छाई का हावी होना है।
 
पूरे आयोजन के दौरान प्रतिभागियों और दर्शकों को देखकर ऐसा लगता है कि जिंदगी उफनी पड़ रही है। समग्रता से रंजित खुशियों का ऐसा खजाना और कहीं देखने को नहीं मिलता। वहाँ अनेक बार खुशी के आँसुओं की बौछार होती देखकर फिर वहीं बात याद आती है कि आदमी कहीं का भी हो, किसी भी जाति और धर्म का हो, मूलतः और अंततः वह आदमी ही है, हमें भेद कर-करके उसे टुकड़ों में नहीं बाँटना चाहिये।

Libra Media Group, Bilaspur (C.G.) India

2 comments:

  1. बढिया प्रस्‍तुति।

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  2. sach kaha ...hame bhed nahi rakhna chahiye ...magar ye sirf tabhi mumkin hai ..jab ham har kisi ko apna samjhen, ya ki aatma ke svroop ko samjhen ...

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