Friday, August 12, 2011

बोलते वि‍चार 8 - बीती हुई बातों के भूत से छुटकारा

Bolte Vichar 8

आलेख व स्‍वर - डॉ.रमेश चन्‍द्र महरोत्रा

बीती हई दुखदाई बातें यदि मन पर भूत के समान छाई रहती हैं,तो मन के बोझ और मानसिक तनाव के अलावा हमें कुछ नहीं मिलता। साथ ही हमारा वह भूत हमारे वर्तमान और भविष्य को भी बिगाड़ने लगता है,क्योंकि हम उन सदा के लिए मृत बातों को सोच-सोच कर अपना बहुमूल्य समय भी बरबाद करते हैं और बौद्धिक और शारीरिक क्षमताओं पर भी आघात पहुँचाते रहते हैं।
‘जो होता है, अच्छे के लिए ही होता है’ और ‘भगवान जो करता है, अच्छे के लिए ही करता है’ ऐसी उक्तियां हैं, जो हमें बीती हुई ख़राब बातों को भुलाने की प्रेरणा देती हैं। ख़राब बातें किस के जीवन में नहीं हुआ करतीं ? संसार के हर प्राणी के साथ अच्छी के साथ बुरी घटनाऐं भी ज़रूर घटती हैं। जब सभी के साथ कोई एक सी बात गुज़रनी आवश्‍यक होती है, तो उसे सह पाना दार्शनिक दृष्टि से बहुत कठिन नहीं होना चाहिए। संसार केवल हमारे लिए नहीं बना है। पारस्परिक संघर्षों में किसी का अच्छा होता है, तो दूसरे का बुरा भी होना है। और जब बुरा हो चुका हो, तो आगे इस चिरंतन सच्चाई को याद करके कदम बढ़ाया जा सकता है, कि बीते हुए समय पर अपना कतई वश नहीं रहता है,क्योंकि बीते हुए समय के एक पल को भी कोई व्यक्ति नहीं पलट सकता।


‘बीती बात बिसारि और आगे की सुधि लेने’ का उपदेश मानव के हर दिन के चिरस्थाई सत्य की आधारशि‍ला पर विद्यमान प्रकाश-स्तंभ है। जब हम किसी बीती हुई अप्रिय बात पर अफसोस करते हैं, तो हमारे शुभचिंतक हमें ‘भगवान की यही इच्छा थी’, ‘होनी को कोई टाल नहीं सकता’, ’समय बड़ा बलवान है’,आदि बहुत कुछ कह कर तसल्ली देते हैं। वास्तव में उस समय अफ़सोस की दवा इस तसल्ली या संतोष से बढ़कर कुछ नहीं हुआ करती। बड़े से बड़ा आदमी भी इतना बड़ा और पूर्ण नहीं हो सकता है कि उसका कोई भी व्यक्ति बुरा न चाहे। ‘मुंड-मुंड की मति भिन्न होती है, सबके अपने-अपने स्वार्थ और प्रयत्न होते हैं; इसलिए निश्‍ि‍चत है कि कुछ लोग अपना अच्छा करने में सफल होंगे और कुछ लोगों का उससे संबंधित बुरा होकर रहेगा। जब यह भवितव्यता है,तो हम ‘बीत चुके’ को ‘यही होना था’ कह कर क्यों नहीं आगे बढ़ सकते? एक परिचित बुजुर्ग के सिर पर साँप गिरा और अपने रास्ते भाग गया। उन्ही के साथ एक बार यह घटना घटी कि रास्ता चलते उनसे सिर्फ एक कदम दूर एक छज्जा टूट कर गिर गया और वे बाल-बाल बच गए। दोनों अवसरों पर देखने-सुनने वाले प्रायः सभी लोगों ने चर्चाएँ कर डालीं कि यदि ऐसा होता तो,वैसा होता; साँप काट लेता तो, जि़दा नहीं बचते; छज्जा यदि एक सेकण्ड बाद गिरता तो उन का बहुत बुरा हाल होता; अकाल मृत्यु का कोई ठिकाना नहीं, न जाने कब आ जाए, वे तो तक़दीर के बहुत धनी निकले आदि। लेकिन बुजुर्ग सज्जन की अधिक उम्र का जैसे रहस्य ही यह था कि वे किसी भी अवसर पर विचलित नहीं होते थे। इन दोनों घटनाओं के समय भी उन्हें मानसिक तनाव छू तक नहीं गया था। उन्होंने दोनों बार एक सी बात कही -‘यही होना था।’उन का जीवन दर्शन हर अच्छी वुरी घटना पर ‘यही होना था’ और ‘बात तो बीत चुकी’ जैसे दो-तीन वाक्यों के सहारे उन्हें ‘परम सुखी’ और ‘सदा सुखी’ बनाए हुए है। हम खाने-पीने की चीज़ों में से अपनी पसंद की चीज़ें चुन कर खाते-पीते हैं। घटनाओं के क्रम में दुखदाई बातें हमें नापसंद होती हैं। क्या ऐसा नहीं हो सकता कि उन्हें कड़वा या सड़ा गला मान कर हम उन्हे याद करना छोड़ दें और केवल मनपसंद बातें याद करें ? यह बात कठिन अवश्‍य है, लेकिन साधना के द्वारा असंभव नहीं है। और ऐसी साधना पूरी कर लेने वाले लोग किसी ख़ास हाड़-मांस के नहीं होते, वे हम लोगों के बीच के ही होते हैं।

Production - Libra Media, Bilaspur
Recording, editing, typing, blogging---sangya, kapila

4 comments:

  1. bahut sahi baat kahi gayi hai......

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  2. प्रेरणादायी विचार।
    पहली बार ब्‍लाग में आया...... अच्‍छा लगा।
    शुभकामनाएं आपको................

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  3. दोस्तोँ ब्लोग जगत में नया हूँ । मेरे साथ भी जुड़ेँ

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