Friday, July 15, 2011

बोलते वि‍चार 1 - सच्चा सम्मान

Bolte Vichar 1

आलेख व स्‍वर - डॉ.रमेश चन्‍द्र महरोत्रा
आदमी को सच्चा सम्मान इस बात से मिलता है कि वह भीतर से क्या है,इस बात से नहीं कि उस के पास बाहरी तौर पर क्या-क्या है। ‘सच्चे सम्मान’से आशय है ऐसा सम्मान जो समाने ही  नहीं, पीठ पीछे भी बना रहे,अर्थात् लोगों के हृदय में जिसकी जड़ें मौजूद हों। इस के विपरीत मात्र दिखावे का सम्मान कुरसी का हो सकता है,पद का हो सकता है या पैसे का हो सकता है। गांधी जी के पास बाहरी तौर पर क्या था? कबीर दास जी बाहर से क्या थे? इसी प्रकार भगवान बुद्ध जब बड़े बने,तब उनके पास सांसारिक वैभव क्या रह गए थे? लेकिन इन लोगों को आज भी करोड़ों लोग सच्चा सम्मान देते हैं।

               कुछ लोग सम्मान को जबरदस्ती बटोरने के लिये परेशान रहते हैं। उन से यदि नमस्ते न करो,तो वे दुश्मन बन जाते हैं। वे किसी उत्सव में आगे की ही सीट पर बैठने को बेचैन रहते हैं। यदि वे पतलून की जगह घर का पाजामा पहनकर घर से बाहर निकल जाते हैं, तो उनकी बेइज़्जती हो जाती है। उन के हाथ में यदि घर के कूड़े की टोकरी या खुरपी या झाड़ू पकड़ा दें, तो उनकी सारी प्रतिष्ठा धूल में मिल जाती है। मतलब यह है के ऐसे लोगों की इज़्ज़त इतनी हल्की फुल्की होती है कि वो ज़रा ज़रा सा सी बातों पर उन से अलग होकर सड़क पर जा गिरती है।
  
         बहुत से व्यक्ति सोचते हैं कि उन्हें यदि किसी ने गाली दे दी तो उन की कुछ भी इज़्ज़त नहीं बचेगी,यदि किसी गुण्‍डे ने उनके एक थप्पड़ मार दिया तो उन की सारी इज़्ज़त लुट जाएगी। वस्तुतः यह भ्रम है। गाली देने वाला व्यक्ति गाली देने वाला ही रहेगा। गुण्‍डा-गुण्‍डा ही रहेगा और आप आप ही रहेंगे। यदि आप ग़लत रास्ते पर नहीं हैं तो हल्के स्तर के लोग पीट पीट कर भी आप की इज़्ज़त नहीं उतार सकते। अच्छे लोग आपको तब भी अच्छा ही समझेंगे। इज़्ज़त कोई ऊपर से चिपकने वाली वस्तु नहीं है कि उसे जब चाहे छुटा लिया जाए। वह आदमी के द्वारा पर्याप्त समय तक किये गए सत्कार्यों के प्रतिफल के रूप में अर्जित संपत्ति होती है। एक अच्छा अध्यापक अपने उन शिष्यों से भी जीवन भर सम्मान पाता रहता है,जो उस की तुलना में बहुत बड़े बड़े पदों तक पहुंच गए होते हैं। इस के विपरीत एक ऐसे भी अध्यापक थे, जो केवल पैर छूने वालों से खुश रहते थे,नमस्ते का वे जवाब नहीं देते थे। उन के प्रति आदर भाव के बारे में एक पैर छूने वाले ने बताया कि वो पैर छूते समय मन में उन्हें एक गंदी गाली दिया करता था। ऐसे आदर का कितना मूल्य है ये बताने की ज़रूरत नहीं है।
  
            अपने मस्तिष्क को इस दिशा में संतुलित रखने के लिये हमें एक बात और ध्यान में रखनी होगी वह ये कि संसार का एक सत्य ये भी है कि सारी जनसंख्या किसी एक व्यक्ति को सम्मान नहीं दिया करती अर्थात् ऐसा कोई भी आदमी न कभी हुआ है और न कभी होगा,जिसे बुरा कहने वाले मौजूद न हों। एक ओर यदि मतभेदों का महत्व है,तो दूसरी ओर यह भी सच्चाई है कि बुरा आदमी बुरी बात ही कहेगा। ‘सर्वशक्तिमान’कहे जाने वाले भगवान तक को बुरा कहने वाले व्यक्ति सदैव अस्तित्व में रहते हैं। रामचन्द्र जी को भी धोबी ने नहीं छोड़ा। ईसा मसीह,    गांधीजी और लूथर किंग भी ऐसे लोगों से नहीं बच पाए फिर साधारण व्यक्ति को तो यह कभी नहीं सोचना चाहिये कि उसे प्रत्येक व्यक्ति से सम्मान ही मिलेगा। देखना सिर्फ ये है कि आप स्वयं कितने ईमानदार और कर्तव्यनिष्ठ हैं।उसके बाद सामान्य लोगों के मन में आपका सम्मानपूर्ण स्थान स्वयं बन जाएगा।

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