Monday, January 31, 2011

बोलते शब्‍द 8

आज के शब्द जोड़े हैं ‘कूटना’ और ‘पीटना’ व ‘ख़ान’ और ‘खान’

ये शब्‍दों के जोडे जि‍नको हम पॉडकास्‍ट के रूप में प्रसारि‍त कर रहे हैं, राधाकृष्‍ण प्रकाशन,
दि‍ल्‍ली द्वारा प्रकाशि‍त पुस्‍तक 'मानक हि‍न्‍दी के शुद्ध प्रयोग' के भाग 1  में प्रकाशि‍त हो चुके हैं.......

आमतौर पर हम एक समान अर्थों वाले या समान दीखने वाले शब्‍दों को समझने में कठि‍नाई महसूस करते हैं। भाषावैज्ञानि‍क दष्‍ि‍ट से उनके सूक्ष्‍म अंतरों का वि‍श्‍लेषण शब्‍दों के जोडों के रूप 'बोलते शब्‍द' (लेबल) के अंतर्गत पॉडकास्‍ट के रूप क्रमश: प्रस्‍तुत कि‍ये जा रहे हैं.........

आलेख - डॉ.रमेश चंद्र महरोत्रा
वाचक स्‍वर- संज्ञा


15 ‘कूटना’ और ‘पीटना’
‘कूटना’ का मतलब ‘पीटना’ मात्र नहीं है, उसमें टुकड़े टुकड़े करने का भी भाव जुड़ा हुआ है। मुहावरे में कहते हैं ‘कूट-कूट कर भरना’ जिसका अर्थ है किसी पात्र में कोई वस्तु अधिक मात्रा में दबा दबा कर भरना.........






16 ‘ख़ान’ और ‘खान’
‘ख़ान’ साहब को यदि कोई ‘खान’ साहब कह देता है, तो वे चिढ़ जाते हैं। ठीक की तो है। कहाँ ‘बहुत प्रतिष्ठित व्यक्ति, अध्यक्ष, अमीर’ अर्थोंवाला शब्द ‘ख़ान’ और कहाँ ‘खदान’ अर्थ वाला ‘खान’...........

Thursday, January 20, 2011

बोलते शब्‍द 7

आज के शब्‍द जोडे हैं- 
'कलकत्‍ता‍' और 'कलकत्‍तेवाली‍' व  'कागजात' और 'बरात' 
ये शब्‍दों के जोडे जि‍नको हम पॉडकास्‍ट के रूप में प्रसारि‍त कर रहे हैं, राधाकृष्‍ण प्रकाशन,
दि‍ल्‍ली द्वारा प्रकाशि‍त पुस्‍तक 'मानक हि‍न्‍दी के शुद्ध प्रयोग' के भाग 1  में प्रकाशि‍त हो चुके हैं.......

आमतौर पर हम एक समान अर्थों वाले या समान दीखने वाले शब्‍दों को समझने में कठि‍नाई महसूस करते हैं। भाषावैज्ञानि‍क दष्‍ि‍ट से उनके सूक्ष्‍म अंतरों का वि‍श्‍लेषण शब्‍दों के जोडों के रूप 'बोलते शब्‍द' (लेबल) के अंतर्गत पॉडकास्‍ट के रूप क्रमश: प्रस्‍तुत कि‍ये जा रहे हैं.........

आलेख - डॉ.रमेश चंद्र महरोत्रा
वाचक स्‍वर- संज्ञा

13 'कलकत्‍ता' और 'कलकत्‍तेवाली'
कुछ लोग 'कलकत्‍ता', 'आगरा', 'शि‍मला' जैसे स्‍थान नामों को 'में', 'से', 'तक', इत्‍यादि‍ शब्‍दों के पूर्व 'कलकत्‍ते', 'आगरे', 'शि‍मले' जैसा लि‍ख करते हैं, जो गलत है। ऐसा लि‍खने वाले 'मथुरा' का 'मथुरे', 'कनाडा' का 'कनाडे' और 'सुदामा' का 'सुदामे' नहीं बनाया करते..............आगे सुनें इस पॉडकास्‍ट में




14 'कागजात' और 'बरात'
सावधान.......कागजातों अशुद्ध है। मकानातों और सवालातों भी.......

Tuesday, January 18, 2011

bolte shabd6

आज के शब्‍द जोडे हैं- 'आदि‍' और 'इत्‍यादि‍''एकाएक' और 'एकोएक' 
ये शब्‍दों के जोडे जि‍नको हम पॉडकास्‍ट के रूप में प्रसारि‍त कर रहे हैं, राधाकृष्‍ण प्रकाशन,
दि‍ल्‍ली द्वारा प्रकाशि‍त पुस्‍तक 'मानक हि‍न्‍दी के शुद्ध प्रयोग' के भाग 1  में प्रकाशि‍त हो चुके हैं.......


 आमतौर पर हम एक समान अर्थों वाले या समान दीखने वाले शब्‍दों को समझने में कठि‍नाई महसूस करते हैं। भाषावैज्ञानि‍क दष्‍ि‍ट से उनके सूक्ष्‍म अंतरों का वि‍श्‍लेषण शब्‍दों के जोडों के रूप 'बोलते शब्‍द' (लेबल) के अंतर्गत पॉडकास्‍ट के रूप क्रमश: प्रस्‍तुत कि‍ये जा रहे हैं.........
आलेख - डॉ.रमेश चंद्र महरोत्रा
वाचक स्‍वर- संज्ञा


11. 'आदि‍' और 'इत्‍यादि‍'






12. 'एकाएक' और 'एकोएक'


Monday, January 17, 2011

बोलते शब्‍द 5

आमतौर पर हम एक समान अर्थों वाले या समान दीखने वाले शब्‍दों को समझने में कठि‍नाई महसूस करते हैं। भाषावैज्ञानि‍क‍ दृष्‍ि‍ट से उनके सूक्ष्‍म अंतरों का वि‍श्‍लेषण शब्‍दों के जोडों के रूप 'बोलते शब्‍द' (लेबल) के अंतर्गत पॉडकास्‍ट के रूप क्रमश: प्रस्‍तुत कि‍ये जा रहे हैं.........

आलेख - डॉ.रमेश चंद्र महरोत्रा ........मानक हि‍न्‍दी के शुद्ध प्रयोग भाग 1 पुस्‍तक के पृष्‍ठ 20 से
वाचक स्‍वर- संज्ञा


9. 'करी' और 'तरकारी'




10. 'उलटना' और 'पलटना'

Sunday, January 16, 2011

बोलते शब्‍द 4

आमतौर पर हम एक समान अर्थों वाले या समान दीखने वाले शब्‍दों को समझने में कठि‍नाई महसूस करते हैं। भाषावैज्ञानि‍क दष्‍ि‍ट से उनके सूक्ष्‍म अंतरों का वि‍श्‍लेषण शब्‍दों के जोडों के रूप 'बोलते शब्‍द' (लेबल) के अंतर्गत पॉडकास्‍ट के रूप में क्रमश: प्रस्‍तुत कि‍ये जा रहे हैं.........

आलेख - डॉ.रमेश चंद्र महरोत्रा
वाचक स्‍वर- संज्ञा


7. 'ईर्ष्‍या' व 'द्वेष'

 

8. 'करे' और 'कि‍ये'

Saturday, January 15, 2011

बोलते शब्‍द 3

आमतौर पर हम एक समान अर्थों वाले या समान दीखने वाले शब्‍दों को समझने में कठि‍नाई महसूस करते हैं। भाषावैज्ञानि‍क दष्‍ि‍ट से उनके सूक्ष्‍म अंतरों का वि‍श्‍लेषण शब्‍दों के जोडों के रूप 'बोलते शब्‍द' (लेबल) के अंतर्गत पॉडकास्‍ट के रूप क्रमश: प्रस्‍तुत कि‍ये जा रहे हैं.........

आलेख - डॉ.रमेश चंद्र महरोत्रा
वाचक स्‍वर- संज्ञा

5. अफवाह और किवदंती




6. अभि‍ज्ञ और अनभि‍ज्ञ


Friday, January 14, 2011

पतंग पर्व - गीतों के संग

मानव की महत्वाकांक्षा को आसमान की ऊँचाईयों तक ले जाने वाली पतंग कहीं शगुन और अपशकुन से जुड़ी है तो कहीं ईश्वर तक अपना संदेश पहुंचाने के माध्यम के रूप में प्रतिष्ठित है। मकर संक्रांति को 'पतंग पर्व' भी माना जाता है। देशभर में इस अवसर पर पतंग उड़ा कर मनोरंजन करने का रिवाज है। पतंग उड़ाने की यह परंपरा बहुत प्राचीन है। प्रमाण मिलते हैं कि श्रीराम ने भी पतंग उड़ाई थी! 'पतंग' शब्द बहुत प्राचीन है। सूर्य के लिए भी 'पतंग' शब्द का प्रयोग हुआ है। पक्षियों को भी पतंगा कहा जाता रहा है। 'कीट-पतंगे' शब्द आज भी प्रयोग में है। संभव है इन्हीं शब्दों से वर्तमान पतंग का नामकरण किया गया हो। शायद आसमान के नक्षत्र और उड़ते पक्षियों को देखकर मनुष्य के मन में कुछ उड़ाने की प्रेरणा मिली हो। संभव है इसी से पतंग का सामंजस्य बिठाया गया होगा। कुछ भी हो, पतंग उड़ाने की प्रथा प्राचीन होते हुए भी सार्व-देशीय भी है। 



 

मकर संक्रांति पर पतंग उड़ाने के पीछे कुछ धार्मिक भाव भी प्रकट होता है। इस दिन सूर्य मकर से उत्तर की ओर आने लगता है। सूर्य के उत्तरायण होने की खुशी में पतंग उड़ा कर भगवान भास्कर का स्वागत किया जाता है तथा आंतरिक आनंद की अभिव्यक्ति की जाती है। 
         मकर संक्रांति पर्व पर पतंग उड़ाने के पीछे कोई धार्मिक कारण नहीं अपितु मनोवैज्ञानिक पक्ष है। पौष मास की सर्दी के कारण हमारा शरीर कई बीमारियों से ग्रसित हो जाता है जिसका हमें पता ही नहीं चलता। इस मौसम में त्वचा भी रुखी हो जाती है। जब सूर्य उत्तरायण होता है तब इसकी किरणें हमारे शरीर के लिए औषधि का काम करती है। पतंग उड़ाते समय हमारा शरीर सीधे सूर्य की किरणों के संपर्क में आ जाता है जिससे अनेक शारीरिक रोग स्वत: ही नष्ट हो जाते हैं।
हजारों वर्षो से मनुष्य पक्षी को उड़ता देखता आया है। प्रत्येक मनुष्य के जीवन मे एक बार पक्षी की तरह उड़ने की इच्छा जरुर होती है । इतिहास इसकी गवाही देता है कि आकाश मे उड़ता पतंग विमान का पूर्वज है। पतंग उडाना , पेंच लडाना तथा कटता पतंग देखकर आनद लुटने तक ही आज हम पतंग को जानते है। लेकिन पतंग की मात्र यही कहानी नही है, पतंग का रोचक इतिहास करीब २००० हजार साल पुराना है। सबसे पहली किसने पतंग बनाई और उडाई इसका कोई इतिहास नहीं मिलता है। लेकिन लोगों का मानना है कि चाइनीज किसान ने हवा मे उड़ती अपनी टोपी को डोरी से बाँध कर हवा में लहराया था, तब से पतंग की शुरुआत हो गई। ई.सन.पूर्व दूसरी सदी से द्वितीय विश्व युद्ध तक पतंगों का विविध रूप से उपयोग के प्रमाण मिलते है। पतंग का उपयोग जासूसी करने, दुश्मन पर हमला करने, बिना घोडों के गाडी चलाने में तो कहीं बोट को चलाने में, कहीं लोगों ने मछली पकड़ने मे भी इसका उपयोग किया। माना जाता है कि पतंग चीन से बौद्घ साधुओ के साथ जापान गया और फिर दक्षिण-पश्चिम वर्मा, मलेशिया, इंडोनेशिया होते हुए भारत मे पहुंची। ये भी माना जाता है कि पतंग का आविष्कार ईसा पूर्व तीसरी सदी में चीन में हुआ था। दुनिया की पहली पतंग एक चीनी दार्शनिक मो दी ने बनाई थी। इस प्रकार पतंग का इतिहास लगभग २,३०० वर्ष पुराना है। पतंग बनाने का उपयुक्त सामान चीन में उप्लब्ध था जैसे:- रेशम का कपडा़, पतंग उडाने के लिये मज़बूत रेशम का धागा  और पतंग के आकार को सहारा देने वाला हल्का और मज़बूत बाँस। चीन के बाद पतंगों का फैलाव जापान, कोरिया, थाईलैंड, बर्मा, भारत, अरब, उत्तर अफ़्रीका तक हुआ।
पतंग का अंधविश्वासों में भी विशेष स्थान है। चीन में किंन राजवंश के शासन के दौरान पतंग उड़ाकर उसे अज्ञात छोड़ देने को अपशकुन माना जाता था। साथ ही किसी की कटी पतंग को उठाना भी बुरे शगुन के रूप में देखा जाता था। पतंग धार्मिक आस्थाओं के प्रदर्शन का माध्यम भी रह चुकी है। थाइलैंड में हर राजा की अपनी विशेष पतंग होती थी जिसे जाड़े के मौसम में भिक्षु और पुरोहित देश में शांति और खुशहाली की आशा में उड़ाते थे। यहां के लोग भी अपनी प्रार्थनाओं को भगवान तक पहुंचाने के लिए वर्षा ऋतु में पतंग उड़ाते थे। दुनिया के कई देशों में २७ नवंबर को पतंग उडा़ओ दिवस (फ्लाई ए काइट डे) के रूप में मनाते हैं। पतंग उड़ाने का शौक चीन, कोरिया और थाइलैंड समेत दुनिया के कई अन्य भागों से होकर भारत में पहुंचा। देखते ही देखते यह शौक भारत में एक शगल बनकर यहां की संस्कृति और सभ्यता में रच-बस गया। खाली समय का साथी बनी पतंग को खुले आसमान में उड़ाने का शौक बच्चों से लेकर बूढ़ों तक के सिर चढ़कर बोलने लगा। भारत में पतंगबाजी इतनी लोकप्रिय हुई कि कई कवियों ने इस साधारण सी हवा में उड़ती वस्तु पर भी कविताएँ लिख डालीं।
पतंग एक धागे के सहारे उड़ने वाली वस्तु है जो धागे पर पडने वाले तनाव पर निर्भर करती है। पतंग तब हवा में उठती है जब हवा का प्रवाह पतंग के उपर और नीचे से होता है, जिससे पतंग के उपर कम दबाव और पतंग के नीचे अधिक दबाव बनता है। यह विक्षेपन हवा की दिशा के साथ क्षैतिज खींच भी उत्पन्न करता है। पतंग का लंगर बिंदु स्थिर या चलित हो सकता है। पतंग आमतौर पर हवा से भारी होती है, लेकिन हवा से हल्की पतंग भी होती है जिसे हैलिकाइट कहते है। ये पतंगें हवा में या हवा के बिना भी उड़ सकती हैं। हैलिकाइट पतंगे अन्य पतंगों की तुलना में एक अन्य स्थिरता सिद्धांत पर काम करती हैं क्योंकि हैलिकाइट हीलियम-स्थिर और हवा-स्थिर होती हैं।
यूरोप में पतंग उड़ाने का चलन नाविक मार्को पोलो के आने के बाद आरंभ हुआ। मार्को पूर्व की यात्रा के दौरान प्राप्त हुए पतंग के कौशल को यूरोप में लाया। माना जाता है कि उसके बाद यूरोप के लोगों और फिर अमेरिका के निवासियों ने वैज्ञानिक और सैन्य उद्देश्यों की पूर्ति के लिए पतंग का प्रयोग किया। ब्रिटेन के प्रसिद्ध वैज्ञानिक डाक्टर नीडहम ने अपनी चीनी विज्ञान एवँ प्रौद्योगिकी का इतिहास (ए हिस्ट्री आफ चाइनाज साइंस एण्ड टेक्नोलोजी) नामक पुस्तक में पतंग को चीन द्वारा यूरोप को दी गई एक प्रमुख वैज्ञानिक खोज बताया है। यह कहा जा सकता है कि पतंग को देखकर मन में उपजी उड़ने की लालसा ने ही मनुष्य को विमान का आविष्कार करने की प्रेरणा दी होगी।
       राजस्थान में तो पर्यटन विभाग की ओर से प्रतिवर्ष तीन दिवसीय पतंगबाजी प्रतियोगिता होती है जिसमें जाने-माने पतंगबाज भाग लेते हैं। इसके अतिरिक्त दिल्ली और लखनऊ में भी पतंगबाजी के प्रति आकर्षण है। दीपावली के अगले दिन जमघट के दौरान तो आसमान में पतंगों की कलाबाजियां देखते ही बनती हैं। दिल्ली में स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर भी पतंग उडा़ने का चलन है। यद्यपि आज के भागमभाग पूर्ण जीवन में खाली समय की कमी के कारण यह शौक कम होता जा रहा है, लेकिन यदि अतीत पर दृष्टि डालें तो हम पाएँगे कि इस साधारण सी पतंग का भी मानव सभ्यता के विकास में कितना महत्वपूर्ण योगदान है।
आसमान में उड़ने की मनुष्य की आकांक्षा को तुष्ट करने और डोर थामने वाले की उमंगों को उड़ान देने वाली पतंग भारत मे पतंग के बारे १३वी सदी से १९वी सदी के संतो और कवियों के पदों मे उल्लेख तथा १८वी सदी से १९वी सदी मे लघु चित्रों मे पतंग उड़यन के चित्र मिलते है। संत नामदेव ने पतंग के लिए ' गुड्डी ' शब्द प्रयोग किया, तो मराठी कवि संत एकनाथ ने एवं तुकाराम ने ' वावडी' शब्द प्रयोग किया था। कवि मंझन ने पहली बार पतंग के लिए पतंग शब्द का प्रयोग किया था। जापान के एक शब्दकोश मे पतंग के लिए ' शिरोशी ' शब्द मिलता है। जिसमे 'शि' का अर्थ कागज तथा 'रोशी' का अर्थ पक्षी होता है अर्थात कागज का पक्षी। 1२८२ मे मार्को पोलो ने मानव सहित पतंग उडाने के जोखिम और पतंग उडाने की पद्घति का सचोट वर्णन किया है। 
१७४७ में एलेक्जाइनडर ने पतंग उडा कर अलग-अलग ऊंचाई पर तापमान नापने का प्रयोग किया। तो बेंजामीन फ्रेंकलीन ने पतंग उडा कर यह सिद्ध किया कि यांत्रिक रूप से पैदा बिजली और आकाश में चमकती बिजली एक ही है। इस प्रयोग के बाद फ्रांस, जर्मन, इटली और अमेरिका में सिन्गलिंग युद्ध में, टेलीग्राफी, युद्धविराम और जीवनरक्षा के लिए पतंग का उपयोग किया गया। जयपुर के महाराजा खास पर्व पर पतंग उडाते थे, जिसमे ढाई तोले की सोने या चांदी की घुघरी बांधते और पतंगो के पेच लगाते थे। सोने की घुघरी वाली कटी पतंग जिसके हाथ में आती उसके साल भर का खुराकी निकल जाती थी। रामचरित मानस में महाकवि तुलसीदास ने ऐसे प्रसंगों का उल्लेख किया है, जब श्रीराम ने अपने भाइयों के साथ पतंग उड़ाई थी। इस संदर्भ में बाल कांड में उल्लेख मिलता है 'राम इक दिन चंग उड़ाई। इंद्रलोक में पहुँची जाई॥'
'जासु चंग अस सुन्दरताई।सो पुरुष जग में अधिकाई॥'

पतंगें उडती हैं हमारे सपनों से भी उंची और इससे डोर बंधी होती है हमारी इच्‍छाओं, आकांक्षाओं से भी से भी ज्‍यादा मजबूत...आपकी इच्‍छाएं और सपने हकीकत में तब्‍दील हों, बहुत उंचाइयों तक नाम पहुंचे...हमारी कामना....इस मकरसंक्रांति‍ पर आपके लि‍ये......

पॉडकास्‍ट में में प्रयुक्‍त गीत - 
चली चली रे पतंग - भाभी
ये दुनि‍या पतंग- पतंग
पि‍या मैं पतंग हू तू डोर- रागि‍नी
अरी छोड दे पतंग मेरी छोड दे - नागि‍न 
ना कोई उमंग है -कटी पतंग
पतग जैसा हवा में लहराए
पतंग वारगी - पंजाबी लोकधुन 
मेरी प्‍यारी पतंग चली बादल के संग - दि‍ल्‍लगी
ढील दे दे रे भैया - हम दि‍ल दे चुके सनम
प्‍यार की पतंग की डोर - 5 राइफल्‍स





बोलते शब्‍द 2


आमतौर पर हम एक समान अर्थों वाले या समान दीखने वाले शब्‍दों को समझने में कठि‍नाई महसूस करते हैं। भाषावैज्ञानि‍क दष्‍ि‍ट से उनके सूक्ष्‍म अंतरों का वि‍श्‍लेषण शब्‍दों के जोडों के रूप  'बोलते शब्‍द' (लेबल) के अंतर्गत  पॉडकास्‍ट के रूप क्रमश: प्रस्‍तुत कि‍ये जा रहे हैं.........

आलेख -  डॉ.रमेश चंद्र महरोत्रा
वाचक स्‍वर- संज्ञा

3. गि‍रना और ढहना



4. अधि‍कांश और अधि‍कतर

Thursday, January 13, 2011

बोलते शब्‍द - डॉ.रमेश चंद्र महरोत्रा

जन्म -
17.8.1934, मुरादाबाद (उ.प्र.), शि‍क्षा - एम.ए. (हिंदी, भाषाविज्ञान)
पी-एच.डी.व डी.लिट् (भाषाविज्ञान)
विश्‍ववि‍द्यालयीन सेवा-
असिस्टेंट प्रोफेसर (भाषाविज्ञान) सागर  (17.11.1959 से 19.7.1966)
रीडर (भाषाविज्ञान) रायपुर  (20.7.1966 से 12.8.1978)
 प्रोफेसर (भाषाविज्ञान) रायपुर  (13.8.1978 से 31.7.1994)
 सेवानिवृत्ति के बाद से अवैतनिक मानसेवी प्रोफसर, रायपुर
प्रकाशि‍त पुस्तकें- लगभग 50             कुछ खास
हिंदी में अशद्धियाँ, हिंदी का नवीनतम बीज व्याकरण, मानक हिंदी का शद्धिपरक व्याकरण, हिंदी का शुद्ध प्रयोग
मानक हिंदी लेखन-नियमावली (पुस्तिका), मानक हिंदी का (व्यवहारपरक) व्याकरण, मानक हिंदी के शुद्ध प्रयोग-खंड 1, खंड-2, खंड-3, खंड-4, खंड-5, खंड-6, भाषिकी के दस लेख, भाषाविज्ञान का सामान्य ज्ञानछत्तीसगढ़ी- संदर्भ-निदर्शनी, छत्तीसगढ़ी-मुहावरा-कोष, छत्तीसगढ़ी: परिचय और प्रतिमान, छत्तीसगढ़ी को शासकीय मान्यता, छत्तीसगढ़ी-हिन्दी-शब्दकोष (संपादन-सहयोग), छत्तीसगढ़ी मुहावरे और लोकोक्तियाँ छत्तीसगढ़ी लेखन का मानकीकरण, मानक छत्तीसगढ़ी का सुलभ व्याकरण।आड़ी-टेढ़ी बात, लवशाला, अच्छा बनने की चाह, खंड-1, खंड-2, सुख की राहें, सफलता के रहस्य
प्रकाशि‍त लेख एवं संदर्भिका
हिंदी भाषा और भाषाविज्ञान विषयक 1065, अन्य विषयों पर  512, आकाशवाणी से 144 वार्ताओं आदि का प्रसारण, शोधपत्रिकाओं, अन्य पत्र-प़िकाओं, संकलनों, विषेषांकों और अन्य ग्रंथों में छपे लेखों की संख्या   154
निर्देशन में पूर्ण करवाए गए शोधकार्य और उपाधिधारी
डी.लिट्  05, पी-एच.डी. 39, एम.फिल. 24, परियोजनाएँ    6
प्राप्त अलंकरण और सम्मान    लगभग 15 सम्मान
Linguistics and Linguistics : Studies in Honour of Ramesh Chandra Mehrotra  
Linguistic Sosiety of India, Poona, SEAL OF HONOUR, XXth All India Conference of Linguists, Lucknow

भारत सरकार की हिंदी साहित्यकार विवरणी में छत्तीसगढ़ के केवल दो लेखकों और हिंदी प्रचारकों में से एक
नगर राजभाषा कार्यान्वयन समिति (उपक्रम) कोलकाता सम्मान
पंडित सुंदरलाल शर्मा सम्मान, छत्तीसगढ़ राज्य शासन व अन्य 11 सम्मान
विद्वज्जनोचित संस्थाओं से विविधस्तरीय न्यूनाधिक संबद्धता
विश्‍ववि‍द्यालय अनुदान आयोग, संघ लोकसेवा आयोग, केन्द्रीय हिंदी निदेशालय, वैज्ञानिक तकनीकी शब्दावली का स्थायी आयोग -परामर्शदात्री समिति, राष्ट्रीय शैक्षणिक अनुसंधान एवं प्रशि‍क्षण केन्द्र परिषद्, केन्द्रीय हिंदी शि‍क्षण मंडल, पर्यावरण एवं वन मंत्रालय,मानव संसाधन विकास मंत्रालय, भारतीय सामाजिक विज्ञान अनुसंधान परिषद्, लिंग्विस्टिक सोसायटी आफ इंडिया, हिंदी साहित्य सम्मेलन, उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान, भारत सरकार कर्मचारी चयन आयोग (मध्य क्षेत्र), भारतीय भाषा परिषद, हरियाणा साहित्य अकादमी, बिहार राज्य सहायक सेवा चयन मंडल, राजस्थान लोक सेवा आयोग, मध्य प्रदेश उच्च शि‍क्षा अनुदान आयोग, मध्य प्रदेश लोक सेवा आयोग, मध्य प्रदेश हिंदी ग्रंथ अकादमी-प्रबंधक मंडल एवं कार्यसमिति, मध्य प्रदेश साहित्य परिषद्, मध्य प्रदेश पाठ्य पुस्तक निगम, मध्य प्रदेश भाषाविज्ञान परिषद्, आकाशवाणी परामर्शदात्री समिति, 22 विश्‍ववि‍द्यालयों के शोध-अनुभाग!


Saturday, January 8, 2011

सपने



हर मन में बसे होते हैं सपने, हर रात में हमारी आँखों में बसते हैं सपने। लेकिन आज चलिये सब कुछ भूलकर आपको हम ऐसी रूमानी दुनिया में जाएँ जिसे हम सपनों की दुनिया कहते हैं....ख्वाबों की दुनिया कहते हैं... जहाँ न कुछ खोने को रहता है न कुछ पाने को। तो चलिये सपनों की सतरंगी दुनिया में चलें।



स्वप्न और स्वप्नावस्था से हम सभी कुछ समय के लिये वशीभूत से हो जाते हैं। दूसरी मज़ेदार बात ये है कि सपनों की फिल्म के हम स्वयं दर्शक और अभिनेता दोनों होते हैं। कभी कभी बड़ा आश्चर्य होता है कि जो घटनाएँ हमारे साथ कभी भूत या भविष्य में घटित नहीं हुई होती हैं वे भी हमें सपनों में दीखती हैं। हमारी सोच से भी अलग। शायद ऐसा इसलिये होता है कि कल्पना पर आधारित होने पर भी सपने स्पष्ट, भावनामय और नियंत्रण से परे होते हैं। वे प्रतिदिन के जीवन की तरह वास्तविक न होते हुए भी कभी कभी विचित्र रूप से वास्तविक व सच सिद्ध होते हैं। कहते हैं कि अधिकतर सपने अपने में कुछ न कुछ सार्थक बातें या अर्थ छिपाए रहते हैं। सपनों में अपने प्रियजनों, दुश्मनों किसी घटना या दुर्घटना, किसी की मृत्यु ऐसे न जाने कितने अच्छे-बुरे, सुखद या दुखद सपने हमें दिखाई देते हैं। सुखद सपनों की अनुभूति कुछ और ही होती है जिसे सिर्फ उस पल महसूस किया जा सकता है, वहीं दुर्घटना, मृत्यु या डरावने सपनों से हम सिहर से जाते हैं। ऐसे ही रंगबिरंगे सपने जो जीवन के उजियारे हैं जो तनहाई के सहारे हैं जो कभी सच और कभी झूठे होते हैं। ये हमारे बस की बात तो है नहीं कि हम मनचाहे सपनों का सौदा कर सकें।
अंधियारे के ये मोती जो भोर होते ही टूट जाते हैं आखिर क्यूं आते हैं हमारी नींदों में खलल डालने। आप भी सोचते हैं ना कि आखिर क्यों दीखते हैं हमें सपने। मनोवैज्ञानिक पहलू कहते हैं कि कोई भी व्यक्ति बिना सपना देखे एक भी पल नहीं सोता। जागृत स्थिति में आँखें कुछ न कुछ देखती रहती हैं। मन में कई तरह के विचार और कल्पनाएँ घुमड़ते रहते हैं और न जाने कितने ही तरह के चित्र-विचित्र दृश्य दिखाते रहते हैं। नींद की अवस्था में सिर्फ हमारा शरीर सोता है और मन-मस्तिष्क के क्रियाकलाप, चिंतन, विचारो की कल्पनाओं की उड़ान चलती ही रहती है। मन-मस्तिष्क के यही क्रियाकलाप हमें सपनों के रूप में दिखाई देते हैं। सपने  बहुधा रचनात्मक होते हैं इसके प्रमाण आज भी मिलते हैं। कितने ही कवियों ने काव्य पंक्तियाँ सपनों में देखीं, लेखकों को कथानक मिले, संगीतकारों को सपनों में संगीत की लय सुनाई दी....इस तरह के कई प्रमाण हैं। एक प्रमाण अंग्रेजी साहित्य के प्रसिद्ध जानेमाने कवि सैमुअल टेलर कालरिज का है, जिन्होंने तीसरे पहर सोने के पहले अंतिम शब्द कहे थे, ‘‘यहाँ कुबला खान ने एक महल बनाने का आदेश दिया था’’, तीन घंठे की नींद के बाद जब वे जागे तो उनके मस्तिष्क में कविता की 300 पक्तियाँ अंकित थीं और जागते ही उन्होंने कुबला खान नामक ये प्रसिद्ध कविता लिखनी शुरू कर दी। उन्होंने सिर्फ 54 पंक्तियाँ ही लिखी थीं कि उनके घर में कोई मिलने वाला आ गया। एक घंटे बाद जब वो गया और वे फिर से लिखने बैठे तो सारी कविता उनके दिमाग से लुप्त हो गई थी और लाख कोशिशों के बाद भी उन्हें आगे की पंक्तियां याद नहीं आईं।

कभी कभी हम सभी के साथ ऐसा ही होता है कि आँख खुली या सुबह उठे तो हम सपना भूल चुके होते हैं मगर तकलीफ तो तब होती है जब हम कोई सुखद सपना हम भूल जाएँ।
सुख दुख देने को आता है, सपने मिटने को बनते हैं।
आने-जाने, बनने-मिटने का ही नाम जगत ये सुंदर।
अरे क्या हुआ यदि तेरा सुख,
स्वप्न, स्वर्ग ढह गया अचानक।
करने को निर्माण मगर, जग में वीरान अभी बाकी है।
स्वप्न मिटे सब लेकिन
सपनों का अभिमान अभी बाकी है।
जगाने, चुटकियाँ लेने, सताने कौन आता है,
                                                                                    ये छुपकर ख़्वाब में अल्लाह जाने कौन आता है।
सपने टेलीपैथी के रूप में संदेशवाहक का भी कार्य करते हैं। सपने भविष्यसूचक होते हैं। कभी कभी सपने हमें अपनी भविष्यवाणी से घबरा भी देते हैं। प्रायः मौत संबंधी सपने ऐसे ही होते हैं। इस तरह के अनेक सपने हैं जो सच हुए। नेपोलियन वाटरलू का युद्ध हार गए थे और इस युद्ध के ठीक पहले उन्होंने एक सपना देखा था कि एक काली बिल्ली उनकी सेना के बीच एक एक करके सभी दोस्तों के बीच घुस रही है। इस तरह की कई घटनाएँ हैं जिनमें लोगों ने सपने द्वारा  किसी सुदूर स्थान में घट रही घटनाओं का आभास प्राप्त किया और हजारों मील दूर स्थित अपने प्रियजनों के हाल जाने। इस तरह के सैकड़ों प्रयोग अब विश्वविख्यात हो चुके हैं जिनकी वैज्ञानिक पुष्टि कियक जाने के बाद उन्हें सही भी पाया गया। पूर्वाभास कराने वाले सपनों को वैज्ञानिक अतेन्द्रिय सपने कहते हैं और विज्ञान ऐसे सपनों को दूसरे टाइम जोन, समानान्तर संसार या पृथक आयाम की संज्ञा देता है।
 नींद के आगोश में दीखने वाले सपने जो भले ही हमारे लिये साधारण हों या जिन्हें हम भूल जाना चाहते हैं या भूल जाते हैं, पर वैज्ञानिकों ने इन्हें साधारण नहीं समझा है। आइंस्टीन ने जब सापेक्षतावाद का सिद्धांत प्रतिपादित किया और विश्व के रूप और उसकी क्रियाओं को गणित के आधार पर सिद्ध किया तब से विज्ञान जगत में ये चर्चा उठ खड़ी हुई कि भूतकाल की घटनाओं को फिर से असली रूप में देख जाना संभव है क्या? आइंस्टीन ने पहली बार इस संदर्भ में एक नवीन तथ्य प्रतिपादित किया कि घटनाक्रम भले ही समाप्त हो चुके हों पर उनकी तरंगें विश्व ब्रम्हांड में फिर भी रहती हैं। आउटर टेन नामक अपने ग्रंथ में बुल्क लिखते हैं कि भूत और भविष्य के सपने उतने स्पष्ट नहीं होते क्योंकि ये अति सूक्ष्म अवस्था में रहते हैं जो हमारी स्थूल आँखों की जीवन सीमा से परे होता है ठीक उसी प्रकार जिस प्रकार कठपुतली के नृत्य में पुतलों से बँधे धागों के न दीखने से दर्शकों को ये भ्रम हो जाता है कि निर्जीव काठ के पुतले अपने आप ही नाच रहे हों। पतंग का धागा पतंगबाज़ के हाथों में होता है, पर दूर से देखने पर पतंग निराधार उड़ती हुई दिखाई देती है। यही बात भूत और भविष्य की है। मनोवैज्ञानिक और वैज्ञानिक दोनों ही ये मानते हैं कि सपने यथार्थ की अभिव्यक्ति करा सकते हैं।
ख़ैर ये तो रही भूत और भविष्य की बातें....फिलहाल वर्तमान की बातें करें आखिर सपने तो सपने ही होते हैं....नींद खुली और टूट गए। नीरज ने सपनों के बारे में लिखा है.....
कुछ नहीं ख्वाब था सिर्फ एक रंगीनी का,
धरती की ठोकर खाते ही जो टूट गया।
मैं अमृत भरा समझे था स्वर्ण कलश जिसका,
कुछ नहीं एक विषघट था गिरकर फूट गया।
सपनों का ये सफर तो हम यहीं ख़तम कर रहे हैं, सपने तो सपने होते हैं पर इन सपनों को जागी आँखों से देखने पर, हिम्मत संजोकर पूरा कर लें तो सपनों की दुनिया को हकीकत की दुनिया में हम स्वयं ही बदल सकते हैं। बस इतना ज़रूर कहेंगे कि अगर आपने जागी आँखें से कोई सपना देखा है तो उसे पूरा करने के लिये तुरंत जुट जाइये.....हमारी दुआएँ आपके साथ हैं।


पाडकास्ट में प्रयुक्त गीत
1. सपनों का सौदागर आया ले लो ये सपने लेलो - सपनों का सौदागर
2. सपने है सपने, कब हुए अपने....आँख खुली और टूट गए.......
3. सपने.....अपने.....
4. मैंने तेरे लिये ही सात रंग के सपने चुने - आराधना
5. सच हुए सपने तेरे - काला बाजार