Tuesday, December 28, 2010

मेंहदी

श्रृंगार का स्त्री से अटूट संबंध है। आदिकाल से ही स्त्री अपने आप को सुंदर बनाने के लिये तरह तरह के श्रंगार करती आ रही है। रंभा, उर्वशी और मेनका के श्रृंगार आज भी आधुनिक स्त्री के लिये मार्गदर्शक बने हुए हैं। अपनी सुंदरता में चार चांद लगाने के लिये हर स्त्री तरह तरह के सौंदर्य प्रसाधन उपयोग में लाती है और मेंहदी उनमें से एक है। बात हो शादी ब्याह की या तीज त्योहार की या सुंदरता निखारने की मेंहदी आज हर घर की पसंद हो गई है। वैवाहिक या किसी मांगलिक अवसर पर मेंहदी की रस्म सहज रूप से हमारे संस्कारों में शामिल हो जाती है। कलात्मक रूप से मेंहदी रचे हाथ हर किसी के आकर्षण का केन्द्र बन जाते हैं। ऐसे अवसरों पर देने को तो कई नज़राने होते हैं ....कोई आभूषण लाता है, कोई ज़रीदार कपड़े और भी न जाने क्य क्या....पर आपके लिये आज हमने चुना है मेंहदी को। और अगर आपके घर में ऐसा ही कोई खुशी का अवसर है, ढोल ताशे बज रहे है तो फिर क्या कहने....ये तोहफा कबूल कीजिये।



प्रचलित लोकगीतों में वर्णन आता है कि मेहदी की झाड़ी सुमेर पर्वत पर उगी। वासुदेव ने इस झाड़ी को दूध से सींचा, बलराम ने इसकी देखभाल की। एक वर्णन ये भी है कि मेहदी स्वर्ग से आई इसीलिये इसमें इतनी महक और सुगंध है जो भी हो आजकल मेंहदी बहुतायत में पायी जाती है और घर घर में इसे लगाया जाता है। राजस्थान को मेंहदी का घर कहते हैं। गुजरात, म.प्र., उ.प्र., छत्तीसगढ़, हरियाणा, पंजाब में भी ये पाई्र जाती है पर हर जगह इसे अलग अलग नामों से जाना जाता है। संस्कृत में तो मेंहदी के अनेक नाम हैं जैसे मेदिका, मदयन्ती, नखपत्रिका, नखरंजन। दक्षिण में इसे महिलांची कहते हैं। बंगाल में नागदाना, पश्चिम  उत्तर भारत में मेंहदी को कटीला और पारसी में एकटा के नाम से और उर्दू में इसे हिना के नाम से जाना जाता है। मेंहदी ज़्यादातर रात में लगाई जाती है इसलिये इसे रजनी भी कहते हैं।  भारतीय संस्कृति में मेंहदी का एक महत्वपूर्ण स्थान है। शुभ कार्यों के समय मेंहदी रचाना भारतीय नारियों में पुरानी परंपरा है। मेंहदी भाईचारे का प्रतीक मानी जाती है। इसलिये ये रिसती है, रचती है, निखरती है, खिलती है और अपनी रंग और महक सब जगह बिखेरती है तभी तो इसे खुशरंग हिना कहा जाता है।

अजब रसा ए किस्मत ऐ हिना तेरी,
चमन से छूट के दस्त-ए-नाज़नीं में रही।
भीगे से तेरा रंग-ए-हिना और भी चमका,
पानी में निगार-ओ-कफ ऐ पा और भी चमका।।

बंद मुट्ठी में दिल को छुपाए बैठे हैं।
है बहाना कि मेंहदी लगाए बैठे हैं।।

मेंहदी का वैज्ञानिक नाम है लासोनिया इनर्मिस। मध्यम आकार का ये पौधा होता है और शुष्क स्थानों में लगाया जाता है। हेज के लिये भी इसका उपयोग किया जाता है। इसकी छाल को यूनानी औषधियों के रूप में प्रयोग में लाते हैं। मेंहदी का रंग हमारे जीवन के रंगों के साथ पूरी तरह घुला मिला है इसीलिये कोई भी त्योहार, उत्सव, संस्कार ऐसा नहीं है जिस पर मेंहदी न लगाई जाती हो। जन्म हो या विवाह इसका अपना एक अलग स्थान है। मेंहदी उत्तर भारत में करवाचैथ और तीज में लगाई जाती है और बहुत ही श्ुाभ मानी जाती है। भारतीय सुहागन  नारी की कल्पना मात्र से मस्तिष्क में जो तस्वीर उभर कर आती है वो होती मांग में सिंदूर, माथे पर बिंदिया, हाथें में मेंहदी और लाल चूड़ियाँ। सौभाग्यवती स्त्री की यही निशानी मानी जाती है। शादी-ब्याह के अवसर पर दुल्हन के साथ साथ दुल्हन को भी मेंहदी लगाई जाती है। इसे शुभ और मंगलमय माना जाता है। हाथ की मेंहदी देखकर मीिलाएँ वर-वधू के प्रेम का अंदाज़ा लगाती हैं। कहते हैं कि जितना मेंहदी का रंग गाढ़ा होता है उतना ही पति पत्नी का प्रेम भी गाढ़ा होता है। शादी में लड़कों को बहन, भाभी और बहनें मिलकर मेंहदी लगाती हैं जहाँ तक दुल्हन को मेंहदी लगाने की बात है तो जिन जातियों में, संस्कारों में जैसे बंगालियों मे ये रिवाज़ नहीं होते हुए भी आजकल श्रृंगार में चार चाँद लगाने के लिये या यूँ कहिये कि श्रृंगार को पूरा करने के लिये मेंहदी लगाई जाने लगी है। इसलिये चाहे किसी भी प्रांत के रहने वाले हों, कोई भी भाषा-भाषी लोग हों, मेंहदी अपनी रंग और सुगंध बिखेरने लगी है।

अक्ल आती है बशर को ठोकरें खाने के बाद।
रंग लाती है हिना पत्थर पर पिस जाने के बाद।।
मेंहदी केवल श्रृंगार का साधन ही नहीं यानि ये सिर्फ हाथों की सुंदरता ही नहीं बढ़ाती बल्कि इस वनस्पति में बहुत सारे चिकित्सकीय गुण भी हैं। इसके प्रयोग से चिड़चिड़ापन, आँखों की जलन और सिर दर्द जैसे विकार दूर हो जाते हैं। जले हुउ अंगों पर शहद के साथ मेंहदी लगाने से ठंडक मिलती है। खाँसी, कफ और ज़ुकाम के लिये मेंहदी के पत्तों के रस को शहद या मिश्री के साथ लेने से काफी हद तक राहत मिलती है। मेंहदी के काढ़े से गरारे करने से मुँह के छाले ठीक हो जाते हैं और चर्म रागों में भी इसका इस्तेमाल किया जाता है। बालों में मेंहदी लगाने का तो आजकल खूब चलन है। इससे सिर्फ सफेद बालों को ही रंग नहीं मिलता बल्कि मेंहदी एक अच्छी कंडीशनर का काम भी करती है। ये सिर को ठंडक पहुँचाती है साथ ही साथ बालों में चमक लाती है। कहते हैं कम उम्र में जिनके बाल पकने लगते हैं उन्हें रंगने से या मेंहदी लगाते रहने से बालों का पकना रुक जाता है। मेंहदी में सबसे अच्छी बात ये है कि इसका कोई भी विपरीत प्रभाव शरीर पर नहीं पड़ता। यूं तो बाजार में मेंहदी आसानी से मिल जाती है लेकिन यदि आप स्वयं मेंहदी के पौधे को लगाएँ तो ये ज्यादा अच्छी बात है। इससे आपको बिना मिलावट की मेंहदी घर पर ही मिल जाएगी और आपके बगीचे में हरियाली भी बनी रहेगी। ताजा पत्तियों से रंग भी अच्छा चढ़ता है। हम तो यही कहेंगे कि ये पूरी तरह सुरक्षित है बाजार में मिलने वाली हर्बल हिना के पैक से भी ज्यादा। अब ये बात अलग है कि आप अपनी बगिया में या घर-आंगन में कितना संवार कर रखते हैं इस बहुउपयोगी पौधे को।

कटी कुचली गई, पिस कर छनी भीगी गुंथी मेंहदी।
जब इतने दुख सहे तब उनके कदमों में बगी मेंहदी।।
मेंहदी लगाना एक कला है। आजकल ब्यूटी पार्लर या मेंहदी लगाने की क्लासेस में ये सिखाया जाता है कि मेंहदी किस तरह से लगाई जाती है किस तरह से घोली जाती है। वाकई ये एक आर्ट हैं लेकिन अब तो ऐसा है कि बने बनाए कोन बाजार में उपलब्ध होते हैं खरीद कर लाओ  और हाथों में रचाओ क्योंकि ये भी सच है कि कला भी व्यापार के अधीन हो गई है लेकिन क्या हुआ इससे संस्कृति पीछे तो नहीं छूट जाएगी। आज समय की कमी भले ही हो, हर रूपसी तक  मेंहदी के पत्ते न पहुंच पाते हों लेकिन बाजार में मिलने वाले ये रेडीमेड कोन घर घर तक अपनी पहुंच बना चुके हैं। इन्हीं माध्यमों से ही सही दुल्हन की हथेली में सजी मेंहदी दूल्हे को आज भी लुभाती ही है इसमें कोई शक नहीं।

कुछ भी को ऊपर से हरी और अंदर से लाल रंग समेटे इस वनस्पति का मानव जीवन से बहुत गहरा संबंध है, पर हमारी मेंहदी रचने के संबंध में कुछ अप्रिय धारणाएं हैं कि जितन रंग गाढ़ा चढ़ेगा....ये मात्र एक अंधविश्वास है। प्रेम के बारे में तो कहा जाता है कि आप जितना प्रेम लुटाएंगे उससे कहीं अधिक आप पाएंगे। इसलिये तो मेंहदी को प्रेम रस राचणी कहा जाता है।

पाडकास्ट में प्रयुक्त गीत
1. मेंहदी, मेहदी...टूट के डाल से हाथों में बिखर जाती है
2. मैं हूँ खुशरंग हिना
3. मेंहदी है रचने वाली
4. मेंहदी से लिख दे मेरे तू मेरे बलमा का नाम
5. महबूब की मेंहदी हाथों में

Monday, December 20, 2010

शिशु स्वास्थ्य, मातृत्व कल्याण एवं पोषण पर आधारित आडियो श्रृंखला - रचना

रचना (9 एपिसोड हिन्दी पाडकास्ट)
धारावाहिक रचना प्रजनन एवं शिशु स्वास्थ्य, मातृत्व कल्याण एवं पोषण पर आधारित 9 एपिसोड की एक धारावाहिक श्रृंखला है।जिसके लेखक डा.आर.के.टंडन हैं। इसका निर्माण केयर इंडिया द्वारा लिब्रा मीडिया ग्रुप बिलासपुर द्वारा करवाया गया था। प्रसारण जून-जुलाई 2006 में आकाशवाणी के बिलासपुर केन्द्र से हुआ था। 
प्रतिभागी कलाकार हैं- संध्या, हर्षिता पाण्डेय, नम्रता बाजपेयी, पद्मामणि, संज्ञा, श्वेता पाण्डेय, ऐश्वर्यलक्ष्मी बाजपेयी, कंचन, निशा, रचिता, विवेक पाण्डेय, राजेश, रमेश चंद्र, उमा महरोत्रा, शाकम्बरी टंडन, स्वरित, रीतेश दुबे, बेबी रूपल रस्तोगी। 
हमारे पाडकास्ट सीजीस्वर के माध्यम से ये आप तक पहुँचा। विभिन्न एपिसोड के आलेख एवं आडियो इसी ब्लाग में हैं। आखिरी एपिसोड के पश्चात् हम सारे अंकों के आडियो एक साथ इस ब्लाग में आपके लिये प्रस्तुत कर रहे हैं।

रचना लिब्रा मीडिया ग्रुप द्वारा निर्मित एक ऐसा धारावाहिक था जिसके हर एपिसोड के प्रथम भाग में एक पारिवारिक ड्रामा था। इसको एक कहानी के रूप में प्रस्तुत किया गया था ‘रचना’ नामक लड़की की कहानी उसकी किशोरावस्था से लेकर उसके बच्चे के अन्नप्राशन तक धारावाहिक के रूप में प्रस्तुत की थी। इस कहानी में अधिक से अधिक संदेश एवं जानकारियाँ देने का प्रयास किया गया था। प्रथम भाग की मुख्य पात्र रचना के अलावा एपिसोड में दो महिला कंपीयर्स थीं, जो इस कहानी से मिलने वाले संदेशों के अलावा अन्य जानकारियाँ तो देती ही थीं, साथ ही कार्यक्रम को जोड़कर रखने का काम करती थीं। एपिसोड के दूसरे भाग में किसी डाक्टर या रिसोर्स पर्सन से उस विषय पर, समस्याओं पर बातचीत की जाती थी।
हम इस धारावाहिक में से 9 कड़ियों के सिर्फ पहले भाग को ही आपके लिये पाडकास्ट बनाकर सुनवाने के लिये लाए हैं। नाटक के रूप में यह प्रस्तुतियाँ संदेषात्मक भी हैं।

एपिसोड क्रमांक 1 - किशोरावस्था


एपिसोड क्रमांक 2 - शादी की उम्र


एपिसोड क्रमांक 3 - गर्भावस्था के शुरूवाती 6 महीने


एपिसोड क्रमांक 4 - गर्भावस्था के अंतिम 3 महीने


एपिसोड क्रमांक 5 - प्रसव


एपिसोड क्रमांक 6 - 1 माह


एपिसोड क्रमांक 7 - 2-6 माह


एपिसोड क्रमांक 8 - अन्नप्राशन


एपिसोड क्रमांक 9 - संक्षिप्तिका

रेडियो धारावाहिक रचना - 9

एपिसोड नंबर 9
संक्षिप्तिका
सूत्रधार 1-  रचना को हमने पिछले अंको में किशोरी बालिका के रूप में, दुल्हन के रूप में, बहू के रूप में, और फिर अच्छी माता के रूप में देखा लेकिन आज रचना कहां है?
सूत्रधार 2- जानना चाहोगी।
सूत्रधार 1- हाँ
सूत्रधार 2- बिलासपुर जिले में आज जिला स्तर स्वस्थ शिशु प्रतियोगिता हो रही है। हमारी रचना को पूरी ग्राम पंचायत और सभी सहमति से अपने ग्राम पंचायत के प्रतिनिधित्व करने के लिए भेजा गया है।
सूत्रधार 1- वहां पर क्या हुआ है।
सूत्रधार 2- वहां जो हुआ है, सरला वहां चल कर सुनते है।
सूत्रधार 1- चलो।


संचालक -  भाइयों और बहनों स्वस्थ माता और स्वस्थ बालक प्रतियोगिता में आपका स्वागत है। नतीजे बताने का समय आ चुका है और मैं आपको ये बता दूँ कि इस बार के नतीजे बेहद चौंकाने वाले हैं। हमारी संस्था के और इस प्रतियोगिता के इतिहास में ये पहला अवसर होगा जब स्वस्थ माता और स्वस्थ शिशु का ये पहला इनाम शहर से बाहर जायेगा। जी हाँ अब अंदाज लगाइये, बिल्कुल भी नहीं लगा सकते। तो चलिये मैं ही बता दूँ, हमारे पाँच जजों के पैनल ने जिसमें जिलाधीश महोदय, केयर की अधिकारी और महिला बाल विकास अधिकरी के साथ शिशु रोग विशेषज्ञ भी हैं। इन सबका एकमत निर्णय है कि ग्राम धरदेई जो शहर से 35 किलामीटर दूर है वहाँ की रचना और उनके बेटे गोलू को जाता है। (तालियाँ)
रचना -    चल बेटा।
गोलू  -    माँ ये सब क्या हो रहा है?
रचना -    तुमको इनाम मिल रहा है ना।
गोलू -     क्यो माँ?
रचना -    तुम अच्छे बच्चे हो।
गोलू -     मैं तुम्हारी बात मानता हूँ और अच्छे से खाना खाता हूँ इसलिये!
संचालक -  आइये आइये रचना जी।
रचना -    धन्यवाद।
संचालक -  आपको स्वस्थ माता का इनाम हमारी संस्था से मिलने पर बहुत बहुत बधाइयाँ और आइये मास्टर गोलू आपको स्वस्थ बालक का इनाम बहुत मुबारक हो।
गोलू  -    थैंक्यू।
संचालक -  आइये आप दोनों जिलाधीश महोदय से अपना इनाम प्राप्त कीजिये।  (तालियाँ)
संचालक -  तो मास्टर गोलू आप बड़े होकर क्या करोगे?
गोलू -     मैं पापा, मम्मी और दादी के पास रहूँगा।
संचालक -  लेकिन तुम बनोगे क्या?
गोलू -     मैं डॉक्टर बनूँगा और सब लोग की बीमारी दूर करूँगा।  (तालियाँ)
संचालक -  रचना जी आपने शहरी क्षेत्र के इतने सारे दावेदारों को पीछे छोड़कर स्वस्थ माता का पुरस्कार प्राप्त किया है और आपके ही बेटे ने स्वस्थ शिशु का। कैसे हो पाया ये सब।
रचना   -  जी!
संचालक -  मतलब ये .....सब कैसे हुआ।    
रचना -    जी...जी...मैं क्या बताऊँ।
संचालक -  अच्छा हमें इतना बता दीजिये कि इसका श्रेय आप किसको देंगी।
रचना -    जी इसका श्रेय मैं अपने पति, अपनी सास, आंगनबाड़ी दीदी कमला, नर्स सुलेखा और गांव की मितानिन दीदी को देती हूँ।
संचालक -  ओ हो.....इतने सारे लोगों को आप श्रेय देंगी।
रचना -    जी हाँ, दरअसल इन सबके मिले जुले प्रयासों के कारण ही ये संभव हो पाया है।
संचालक -  आपकी बातें बड़ी रोचक लग रही हैं। रचना जी निश्चित ही आपके मन में बहुत सारी बातें होंगी। हमारा आपसे निवेदन है कि आप अपनी बातें हमें विस्तार से बताइये। क्यो साहबान सुनना चाहेंगे रचना जी की कहानी उन्हीं की जुबानी।    (तालियाँ)

रचना -    मैं...मैं...कहाँ से शुरू करूँ.....
संचालक -  हाँ हाँ...कहिये कहिये...
रचना -    .......थोड़ा पहले से शुरू करूँ........हाँ....तब जब मैं अल्हड़ सी रचना गाँव में दौड़ती भागती लोगों को हैरान-परेशान कर दिया करती थी

फ्लैश बैक.......
माँ -     क्यों रचना, ये चुन्नी में क्या बांध रख है तूने और तू आ कहाँ से रही है? ये...ये चोट कोहनी में कैसे लगी?
रचना -   आम हैं माँ, कच्चे आम। वो गंगू चाचा की बाड़ी में इत्ते आम लगे हैं, इत्ते आम लगे है एक पत्थर मारो, चार गिरते हैं...खूब सारे आम तोड़े।
माँ-       तू अकेले गंगू की बाड़ी में आम....
रचना -    अकेले नहीं माँ रामू था...घासी था...जमना थी...शांति थी...फजल और सुरेश और राधे भी था।
                         
रचना -    फिर सही उम्र में मेरी शादी की गई। माता पिता की जिद थी कि 18 साल से पहले मेरी शादी नहीं करेंगे और मेरी खुशनसीबी थी कि मुझे एक सुलझे हुये पति मिले।

फ्लैश बैक......
(शहनाई...., मंत्रोच्चार आदि की आवाजें)
पति-     जानती हो रचना मैं खुद स्वास्थ्य केन्द्र गया था और बर्थ स्पेसिंग याने बच्चों में अंतर आदि के बारे में सारी जानकारी और उसके उपाय सब समझे हैं मैंने। तुम बिल्कुल चिंता मत करो।
                          
रचना -  जब गोलू पेट में था मेरी सासू माँ, यानि सबकी गौरी काकी, मेरी बहुत देखभाल करती थीं। जो जो आंगनबाड़ी दीदी, मितानिन या नर्स दीदी कहतीं वो सब करती थी और मुझसे करवाती थीं।

फ्लैशबैक-
सुलेखा -   गौरी काकी-गौरी काकी...अपने कुलदेवता को प्रसाद चढ़ा दो। रचना माँ बनने वाली है।
सास -    सच...हे भगवान...मेरी बरसों की इच्छा पूरी हो गई...........................
कमला -   आओ तुम्हारा पंजीयन कर दें।
सास -    पंजीयन.....? वो क्यों?
कमला -   पहली तिमाही में प्रत्येक गर्भवती का आंगनबाड़ी में पंजीयन करवाने से माँ के स्वास्थ्य की लगातार जाँच भी होती है और जरूरी दवाएँ और सलाह मिलती रहती है। .......................
कमला -   रचना को डाँट के बोलना कि दोपहर में दो घंटा आराम करे।
सास -    ऐसा...ठीक है मैं उसे दो घंटे बिस्तर से उठने ही नहीं दूंगी।
कमला -   और गौरी काकी, उसे एक अतिरिक्त भोजन भी करवाना - वो मना करेगी पर जिद करके उसे एक बार एक्सट्रा खाना खाने को कहना।
सास -     क्यों वो क्यों।
कमला -   बच्चा क्या खायेगा जो पेट में और आपको दादी दादी कह कर बुलाने वाला है, उसे भी तो कुछ चाहिये, वो भूखा रहेगा क्या।
सास -    ऐसा...रचना को को तो मैं एक डाँट लगाऊँगी तो वो दो बार एक्स्ट्रा खायेगी।
                    
रचना -    दलिया तो मुझे खाना ही पड़ता था और आयरन की गोलियाँ भी । बीच बीच में नर्स दीदी  से परीक्षण भी होता रहा और प्रसव की तैयारी भी।

फ्लैशबैक-
कमला-    ये अपनी दाई है ना - प्रशिक्षित भी है और अनुभवी भी। ये सब संभाल लेगी, क्यों कुन्ती। बस मुझे जगह याने कमरा दिखाओ, प्रसव का सारा समान दिखाओ और बाद में फिर रचना  बहू से मिलवा देना। आप आइये - 
दाई -   वाह कमरा तो बढ़िया है -रोशनी अच्छी है -हवादार है -और बाकी क्या व्यवस्था कर रखी है आपने ।
सास-    ये नया बढ़िया साबुन है - बहुत मंहगा है 14 रूपये का- और नया धागा-ये सफेद ही लिया दीनू ने मैने तो - कोई रंगीन धागा और ब्लेड

रचना- फिर अपने साथ ढ़ेर सारी खुशियाँ ले के गोलू इस दुनिया में आया।

फ्लैशबैक-
(बच्चे की रोने की आवाज)
                          
और मेरी सास और गौरी काकी तो बस उसी की होकर रह गई उन्होंने गोलू के देखभाल में कोई कसर नहीं छोड़ी सारे टीके समय पर लगवायें और मुझे नियमित रूप से सम्पूर्ण आहार देती रहीं है।                           

फ्लेश बैक
सास-    रचना गोलू की मालिश हो गई
रचना-   जी माँ जी
सास-    उसे नहला दिया
रचना-   जी माँ जी
सास-    और उसे दूध पिलाया
रचना-   जी माँ जी
सास-    तूने खाना खाया
रचना-   जी माँ जी।
सास-    वो अतिरिक्त वाला खाना खाया थोड़ा और ज्यादा खाया तुझे अपने और गोलू दोनों का ख्याल रखना है।
रचना-   जी माँ जी।
सास-    फल वगैरह खाया।
रचना-   जी माँ जी।
सास-    जी माँ जी, जी माँ जी, ला गोलू को मुझे दे।
रचना-   जी माँ जी।
सास-    अले गोलू जा तैयार हो।
रचना-   वो क्यों माँ जी।
सास-    अरे आज कौन सा दिन हैं।
रचना-   मंगलवार।
सास-    तो आंगनबाड़ी केन्द्र नहीं जाना है.........आज तो तुझे बुलाया गया है ना वहां गोलू को टीका लगाना है।
                      
सुलेखा -    हाँ गौरी काकी और बच्चों को जो भी खिलाना चाहो वो माँ को खिलाओ। बच्चा दूध से उन पौष्टिक और अच्छी चीजों को ले लेगा।
सास -    ऐसा-चल रचना तू घर चल और आम खा। मुझे गोलू को आम खिलाने की इच्छा हो रही है। चल, जल्दी चल।
                         
रचना-    सासु माँ यानि सब से प्यारी गौरी काकी जुबान की थोड़ी तेज जरूर थी पर हम माँ बेटे का बहुत ख्याल रखती थी। थोड़ी डाँटती जरूर थी लेकिन मेरी और गोलू की सारी जरूरतें नर्स दीदी या आंगनबाड़ी दीदी से पूछ-पूछ कर करती थी।

फ्लैशबैक-
सास-      दलिया नहीं दवाई है, दूध की मलाई है
मितानिन-  सच में दलिया दवाई है जो बच्चों के लिए और स्तनपान कराने वाली महिलाओं के लिए जरूरी है।
कमला-     इसमें प्रोटीन होता है और धात्री के कमजोरी को भी दूर करता है उसके लिए आवश्यक दूध बनाने में भी सहायक होता है।
सास-    हाँ रे,
कमला-   हाँ लेकिन आप अपने बहू के लिए दलिया जरूर ले जाना और पहले की तरह इसे बराबर
सास-     बराबर -बराबर हिस्सों में बाँट कर रोज रचना को खिलाना ठीक
कमला,सास-  हा.....हा..हा...हा..हा
मितानिन-    कहाँ चली गौरी काकी
सास-        रचना की दवाई या यूँ कहो मलाई लेने।
                           
रचना-     फिर गोलू बढ़ता गया, गौरी काकी यानि मेरी प्यारी माँ जी आंगनदीदी मितानिन, सुलेखा नर्स और गोलू के पापा सब का लगातार सहयोग और स्नेह, मुझे और गोलू को मिलता रहा और आज मैं ये इनाम इन सबको समर्पित करती हूँ।  (तालियाँ)

संचालक-    रचना जी आपकी कहानी ने दिल को छू लिया आप की कहानी ये सिद्ध करती है कि थोड़ी सी समझदारी और देखभाल जानकार लोगों का सलाह और योजनाओं का लाभ हर माता और शिशु को स्वस्थ भविष्य दे सकती है, हम उम्मीद करते है कि हर गांव में रचना जी जैसी स्वस्थ माता हो और गोलू जैसे स्वस्थ शिशु हो, रचना जी आपके और आपके गोलू को एक बार फिर बहुत-बहुत बधाईयाँ और शुभकामनाएँ।

Saturday, December 18, 2010

कूडियाट्टम - केरल की प्राचीनतम नाट्यकला से रूबरू हुआ हमारा शहर




छत्तीसगढ़ के बिलासपुर में स्पिक मैके के सौजन्य से केरल की एक प्राचीन कला देखने का 17 दिसंबर को मौका मिला। इस विरासत को कूडियाट्टम के नाम से जाना जाता है। अद्वितीय, अप्रतिम, बेमिसाल, अनोखी जितने भी विशेषण इसके लिये इस्तेमाल किये जाएँ, कम हैं। युवाओं को सांस्कृतिक रूप से शिक्षित करने का उद्देश्य लिये ये संस्था भारतीय पारंपरिक संस्कृति को अपने मूल रूप में प्रस्तुत करने का कार्य देश भर में करती है। जिसके तहत विभिन्न कलाओं के कला गुरु अलग अलग स्थानों में जाकर इसका प्रदर्शन करते हैं और बिलासपुर में केरल से आए कलाकार मारगी मधु ने अपने सहयोगी कलाकारों के साथ ये प्रस्तुति स्थानीय देवकीनंदन सभागृह में दी।
हमारा देश सांस्कृतिक रूप से बेहद समृद्ध है। देश के विभिन्न हिस्सों की विरासत देखने समझने के लिये एक जीवन भी कम पड़ जाए ऐसा महसूस होता है। हालांकि प्रसार के साधनों के विकसित होने के कारण जानकारियाँ उपलब्ध हो जाती हैं लेकिन प्रशिक्षित कलाकारों द्वारा क्षेत्र विशेष की खास प्रस्तुति देखना अपने आप में एक अनुभव से गुजर जाना होता है।
कूडियाट्टम केरल की प्राचीनतम संस्कृत नाट्यकला मानी जाती है जो मूलतः रामायण के प्रसंगों पर आधारित होती है और केरल के हिंदू मंदिरों में प्रस्तुत की जाने वाली कला रही है। लगभग 2000 साल पुरानी इस कला में महान नाटककारों मास, कालिदास, शक्तिभद्रा, कुलशेखर, नीलकंठ आदि के नाटकों को आधार बनाकर अभिनय प्रस्तुत किया जाता है। नाटक के एक अंग की प्रस्तुति के लिये 12 से 41 दिन लग जाते हैं। यह केरल की पारंपरिक कला व विरासत है जिसे यूनेस्को ने 2001 में ‘संरक्षणीय मानवीय सांस्कृतिक कला’ घोषित किया है। केरल के एक पुराने राजा कुलशेखर वर्मा चेरामन पेरूमल को इस कला का जनक माना जाता है। पारंपरिक तौर पर केरल की एक प्रजाति चक्यार लोगों द्वारा इस नृत्य-नाट्य को प्रस्तुत किया जाता रहा है। भरत मुनि के नाट्यशास्त्र में लिखी गई प्राचीन व्याकरण को आधार मानकर ही आज तक इस नाट्य की प्रस्तुति की जाती है।
हमारी नजरों के समक्ष प्रस्तुत इस कला मे मारगी मधु जी ने ‘सुग्रीव राममिलाप, बाली वध प्रसंग’ प्रस्तुत किया। भारी भरकम पोशाक, चेहरे पर प्राकृतिक तत्वों से तैयार मुखौटे सा लगता लाल, काला व सफेद रंग का मेकअप और लगभग एक घंटे में से 50 मिनट तक एक स्थान पर बैठकर सिर्फ हस्त मुद्राओं, आँखों व चेहरे से भावों की अभिव्यक्ति करके समस्त दर्शकों को लगातार शांति पूर्वक, एकटक देखने को मजबूर कर दिया मात्र एक कलाकार ने। लेकिन उनके अभिनय के साथ वाद्य यंत्रों का समन्वय बेजोड़ था। मिजबाबू, कुजीरातम, इटाअक्का, कुरूम कुजुहल, संकायु वाद्ययंत्रो के आल्हादित करने वाले स्वर अद्भुत थे। ये यंत्र हमारी भाषा में तबले, ढोल व मंजीरे के समान थे लेकिन बिल्कुल भिन्न भी थे जिनसे तेज, मध्यम व मंद ध्वनियों का निकाला जाना और समस्त वाद्यों का आपसी समन्वय बेहतरीन था।
अपने देश के एक हिस्से की पारंपरिक कला से रूबरू होने का बिलासपुर वासियों का अनुभव यही कह रहा था कि देश के हर हिस्से की विरासत को दूसरे क्षेत्रों में प्रदर्शन के अवसर देना बेहद जरूरी है तभी हम पूरी तरह समझ सकेंगे अपने देश की वास्तविक विरासत।



नोट: यदि इस जानकारी का कोई उपयोग करना चाहे तो हमें आपत्ति नहीं है, लेकिन प्रयोग करने की जानकारी से अवगत करा दें तो हमें अच्छा लगेगा।

























Wednesday, December 15, 2010

रेडियो धारावाहिक रचना - 8

एपिसोड नंबर 8
अन्नप्राशन
रचना नाटिका के सातवें एपिसोड में आपने सुना कि चना के बच्चे गोलू को डी.पी.टी. के तीनों टीके, बी.सी.जी. का टीका लग गया और खसरे का टीका नवमें महिने में लगेगा। लेकिन गोलू हुआ है अभी 6 महीने का और अब तक सिर्फ माँ का दूध पी रहा है। और आज हो रहा है गोलू का अन्नप्राशन और आज से गोलू का अन्न खाना शुरू होगा। गोलू के जीवन में एक नयापन और एक नया एहसास, अब उसको नये-नये स्वाद मिलेंगे और ढ़र सारे पोषक तत्व जो उसके विकास के लिए अब बेहद जरूरी है, तो चलें गोलू के अन्नप्राशन पर।

Get this widget | Track details | eSnips Social DNA

सास -    रचना, दीनू अभी तक दीदी को लेकर नहीं आया - बस तो आ चुकी होगी।
रचना -   आते होंगे, बस कभी कभी लेट भी तो हो जाती है।
सास -    सुसरी बस को आज ही लेट होना था। एक तो तेरी शादी के बाद अब आ रही है मेरी दीदी, तेरी मौसी सास, उनसे मिलने की बहुत इच्छा हो रही है। कुछ आवाज आई.....देख तो आ गये क्या?
रचना -    आते ही होंगे माँजी, थोड़ा इंतजार ही तो करना है।
सास -    अरे इस इंतजार ने तो परेशान कर दिया । दीनू को गये इतनी देर हो गई, ला गोलू को दे टाइम पास हो जायेगा।
रचना -   गोलू अभी सो रहा है माँ आप आप मुझे डाँट कर टाईम पास लीजिये, गोलू को अभी सोने देते है ।
सास -    अभी मेरा मूड अच्छा नहीं है तुझे डाँटने की इच्छा नहीं हो रही है -वैसे तू ठीक कह रही है रचना गोलू को सोने दे। अन्नप्राशन के समय इसे काफी देर तक लोग जगा के रखेंगें-पर देख तू इसे बीच-बीच मे समय पर दूध पिलाते रहना बहुत जरूरी है ।
रचना -    जी माँ जी -अब आ गए शायद -हाँ - वही है माँजी आपकी दीदी आ गई -मासी सास आ गई।
सास-      आओ -दीदी -कब से इंतजार कर रही हूँ आपका -रचना चल पैर छू इसके बहुत इंतजार करवाया -
रचना-    पाँव लागू मासी
सास की दीदी -क्या बताऊँ गौरी -बस पंच्चर हो गई थी।
सास-       ये मुई बस भी तभी खराब होती है जब उसमें मेरा कोई रिश्तेदार आ रहा होता है। ये सब छोड़ो पहले ये बताओ कि दीदी को पानी वानी पिलाओगी कि नहीं।
सास-       क्यों नहीं दीदी - रामू रामू ए रामू
रामू -       जी -
सास-       अरे दीदी को शर्बत पिलाओ -जल्दी अरे शर्बत नहीं सिर्फ पानी - और रामू ।
मासी -      मटके का पानी मत देना - वैसे ही गला कुछ ठीक नहीं है और गोलू कहाँ है उसको जी भर के देख तो लूँ ।
सास -   उसकी पैदाइश मे तो तुम नही आ पाई थी ।
रामू -    लाजिए पानी
मासी-    लाओ बेटा जुग जुग जियो ,,,,,,,,,,,,,,,,,वाह,,,,,,,, अपना गोलू तो बहुत संुदर है, बिल्कुल दीनू पर गया है ।
सास -   मुझे तो रचना के समान दिखता है हो सकता पर नाक तो दीनू की ही है।
सासी -  अच्छा ये बताओ कार्यक्रम क्या है......मैं तो गोलू के अन्नप्राशन के लिये चाँदी की कटोरी 
और चम्मच लाई हूँ ।
सास-       ऐसा - वैसे कार्यक्रम कुछ खास नहीं रखा है....इसकी छठी मे तो गाँव भर को बुलाया था मुँह जुठाई में हम घर वाले ही हैं......और वो आंगनबाड़ी वाली कमला मितानिन और दो-चार लोग ही रहेंगे।
मासी -    दीदी - तैयारियाँ पूरी हो गई हो गईं ?
सास -    हो गई तैयारियाँ पूरी हैं....गोलू के 6 महीने पूरे होने का इंतजार था सो खत्म हुआ।
दीनू -     इस पाँच तारीख को ही 6 महीने पूरे हुये हैं गोलू के और आज का मुहूर्त निकला है और मासी जी आप का सामान ऊपर के कमरे मे रख दिया है। अरे रामू मासी जी को चाय पानी करवाया।
रामू -     चाय चढ़ गई है बस ला रहा हूँ ।
पति -     हाँ जल्दी ला ।
मासी -     कोई जल्दी नहीं है - गोलू को नहला धुला कर तैयार करो -मैं भी स्नान ध्यान कर लू चाय बाद में ले लूँगी - चल रामू मुझे मेरे कमरे मे ले चल ।
-    -    -    -    -    -    -    -    -    -    -    -    -    -    -    -    -

कमला -     हाँ गौरी काकी - खीर ही खिला ही खिलाओ गोलू को पर अच्छी तरह मथी मसली हो
और बस एक चम्मच ही उसके लिये.....................
मितानिन - और जिनसे खिलाओगे गोलू को वो बर्तन अच्छे साफ होने चाहिए..........
सास-     हाँ .............हाँ.............गोलू तो चाँदी के बर्तन में खाना खाने वाला है.......मेरी दीदी उसके लिये चाँदी की कटोरी और चम्मच लाई हैं............बहुत महंगे होते है चाँदी के बर्तन
मितानिन-     बस उन्हे अच्छे से साफ करवा लीजियेगा।
रचना -     लीजिये मासी गोलू को - नहला घुला कर तैयार कर दिया है ।
मासी -     अरे इसे नजर ना लगे - कितना प्यारा और स्वस्थ है ।
कमला -     ये सब गौरी काकी के कारण है - उन्होने गोलू को सभी टीके समय पर लगवाए उसक खूब ख्याल रखा रचना को पौष्टिक आहार दिया जिससे गोलू को पौष्टिक दूध सही मात्रा में लगातार मिलता रहा ..............
मितानिन - इसलिये गोलू सुन्दर होने के साथ-साथ स्वस्थ और मस्त है।
कमला -     हाँ- और बेचारी फुलकुँवर को देखो ।
मितानिन - काहे की बेचारी......... बेवकूफ है वो................
सास -     क्यों क्या हुआ उसको
कमला -     उसे कुछ नहीं हुआ उसके बच्चे को हुआ है ।
रचना -     क्या हुआ छोटू को ?
कमला -     ढेर सारी बीमारियाँ हो गई हैं उसे सीरियस है...............अस्पाताल ले गए हैं वैसे रचना मुश्किल है
रचना -      हे भगवान...................
मासी  -     कितना बड़ा है छोटू
रचना -     गोलू के बराबर ही है करीब- करीब 8-10 दिन का अंतर है......पर वो थोड़ा कमजोर था
मासी -     क्यों माँ ने खान-पान पर ध्यान नहीं दिया क्या।
कमला -     खान-पान पे ध्यान - अरे उसने उस समय आयरन गोलियाँ तक नहीं खाई - माँ और
               सुलेखा नर्स इतना उसको बोलते रहे पर नहीं मानी ।
मासी -     घर वालों ने उसे समझाया नहीं।
कमला -    अरे घर में हमारी गौरी काकी जैसी सास कहाँ होती है-भले ऊपर से कठोर हो पर रचना
           का पूरा ख्याल इन्होने रखा सब चीजे समय पर करवाती रहीं।
मितानिन -  फुलकुंवर ने तो डी.टी.पी. वाले टीके भी छोटू को अभी तक नहीं लगवाए।
मासी -     तभी - तभी वो बच्चा बीमार हुआ टीके तो बहुत जरूरी हैं बच्चे के लिये इससे बहुत से
बीमारियों की रोकथाम होती है टीके तो बच्चे को लगवाने थे, फुलकुंवर ने गलत किया ।
कमला -     ऊपर से पैसे जोड़े नहीं थे - अब जरूरत पड़ी तो महाजन से ऊँचे ब्याज पर पैसे उठा लिये - वो कर्जा चढ़ा सो अलग ,,,,,
मासी -     क्यों महाजन से पैसे ब्याज पर क्यों लिये यहाँ स्वसहायता समूह नहीं है क्या
मितानिन -     है -- बिल्कुल हैं
मासी -     तो वहाँ से क्यों सहायता नहीं ली ।
कमला -    वो सदस्य ही नहीं बनी कितना समझाया उसे पर नहीं मानी ।
मासी -     क्यों गौरी तू तो स्व सहायता समूह में है ना ।
सास -     हाँ, शुरू से सदस्य हूँ , हम बारह महिलाओ का समूह है हर महीने 40 रूपये जमा करते
हैं हम ।
मितानिन - लोग पैसे जोड़ कर बैंक में जमा करवा रहे है और जब किसी सदस्य को जरूरत हो तो उसे कम ब्याज पर उधार दे देते है 13000 जमा हो चुके है इनके ।
मासी -     ये तो बहुत अच्छा है गौरी और रचना को इससे जोड़ा कि नही ।
सास -     अब तो फुर्सत मिली है बेचारी को - गोलू का अन्नप्राशन आज हुआ और कल रचना को
इसका सदस्य बनवाती हूँ ।
रामू-      ये रही कटोरी और ये रही चम्मच, और ये है मथी, मसली खीर।
मासी -    लाओ भई लाओ - गोलू को माँ की गोद मे बिठाओ और गौरी तुम अपने हाथों से गोलू
को मुँह जूठा कराओ ।
कमला -   लो आज गोलू ने पहली बार अन्न चखा 6 माह बाद, पूरे सातवें महीने में ।
सास -     कितना खुश हो रहा है, और चाहिये ले.......थोड़ा और ले......बढ़िया .......बहुत बढ़िया।
रामू -     सब तैयार है - ये रही कटोरी और ये चम्मच और ये रही मथी मसली खीर ।
दीनू -    मेरे पास आ - अरे - वाह ये तो मुस्कुरा रहा है - शायद समझ गया कि ऐ-ऐ फिर सू 
         सू कर दिया ।
सास -   हाँ- समझ गया कि तेरी गोद में है - दीदी पता नहीं ये अपने बाप की गोद को क्या
         समझता है - दीनू के पास गया नहीं कि सूसू कर देता है - रचना सूखी-साफ लंगोटी
         ला - लंगोटी बदल दे इसकी ।
कमला -  अब से रोज गोलू को ऊपरी आहार देना - लेकिन पहले रचना दूध पिलाए - फिर उससे
बाद अच्छे से हाथ धोकर कटोरी चम्मच से केला -चावल दाल कुछ भी अच्छे से मथ कर मसल कर गोलू को खिलाना ।
मितानिन - और उसको एक चम्मच तेल डालना मत भूलना ।
कमला -  हाँ - चिकनाई भी जरूरी है अब गोलू के लिये और याद रहे अब उसका वजन अगले महीने तक 500 ग्राम बढ़ जाना चाहिये ।
मासी -   और भगवान ना करे अगर हल्का - फुल्का बीमार पड जाए गोलू तो, स्तनपान जारी
         रखना - तरल भोजन देते रहना और बीमारी के बाद ज्यादा दूध पिलवाना ।
दीनू -   और भी क्या हाल है रचना सब समझ ले, यहाँ कई अच्छे सलाहकार बैठे है सारी बातें अच्छे से समझ ले......।
सास -  और तू भी अच्छे से एक बात समझ ले ।
दीनू -  क्या ?
सास -  तू इसे बड़ा होने तक गोद मे मत लेना ।
दीनू -  क्यों
सास -  ये तेरी गोद का.............समझता है - उठाएगा तो तेरी गोद मे सुसु कर देगा ।

ek purani post

गुज़रा हुआ जमाना आता नहीं दुबारा.........



Ashok bajaj ke saathRadio celone ke announcers
50-60 के दषक में श्रीलंका ब्रॉडकास्टिंग कार्पोरेषन का बोलबाला घर घर में था। सीलोन से बजने वाले कार्यक्रम बिनाका गीतमाला, मराठा दरबार की महकती बातें और भी ढेर सारे कार्यक्रम लोगों को ज़बानी याद थे और इन कार्यक्रमों को प्रस्तुत करने वाले उद्घोषकों की आवाज़ें आज भी लोगों के ज़ेहन में मौजूद हैं। अमीन सयानी, मनोहर महाजन, विजयलक्ष्मी, रिपूसूदन ऐलावादी, कुमार आदि के नामों से रेडियो के पुराने श्रोता आज भी जुड़े हुए हैं। बल्कि इन आवाज़ों से फोन पर सीधे बातचीत करके सुनते भी रहते हैं। लेकिन इनमें से कई आवाज़ जब एक साथ मंच पर आज की तारीख में जमा हो जाएँ तो यही कहा जाएगा न कि गुज़रा हुआ ज़माना लौट आया है दुबारा।
Ripusudan Alawadi
20 अगस्त 2010, रायपुर के चैम्बर ऑफ कॉमर्स का हॉल और मंच पर अंबिकापुर, रायपुर, बिलासपुर के आकाशवाणी केन्द्रों के उद्घोषकों के साथ मौजूद थे मनहर महालन, रिपुसूदन ऐलावादी वॉयस ऑफ अमेरिका की विजयलक्ष्मी डी सेरम और हिन्दी फिल्मी गीतों के गीतकोष क लेखक हरमिन्दर सिंह ‘हमराज़’। श्रोता दिवस पर आयोजित इस कार्यक्रम में चाईबासा बिहार, झारखंड, महाराष्ट्र, बिहार, दिल्ली, इंदौर, कटनी व छत्तीसगढ़ के हर क्षेत्र से तकरीबन 350 श्रोताओं ने अपनी उपस्थिति दर्ज़ करवाई। अषोक बजाज के नेतृत्व में इस आयोजन में छ.ग. के संस्कृति मंत्री बृजमोहन अग्रवाल ने भी अपने विचार रखे और कहा कि रेडियो का आज भी अलग महत्व है। श्रोता सबसे बड़ा सरौता होता है यानि सबसे बड़ा समीक्षक श्रोता ही है। आयोजन की सबसे महत्वपूर्ण बात थी 1200 घंटे अपनी आवाज डिस्कवरी चैनल को देने वाले, फैषन षो में हिन्दी को स्थान दिलाने व बरकरार रखने वाले, अपनी जिंदगी के अनेक वर्ष सीलोन से देष भर में अपनी वाक्कला का जादू बिखेरने वाले मनोहर महाजन ने देष के हर हिस्से को छोड़कर रायपुर को चुना अपनी किताब ‘यादें सीलोन की’ के विमोचन के लिये। षायद इससे भी बड़ी बात थी 14 वर्ष सीलोन और 24 साल वॉयस ऑफ अमेरिका में अपनी मधुर आवाज की तरंगें फैलाने वाली विजयलक्ष्मी जी वाषिंगटन से यहाँ इस कार्यक्रम के लिये, अपने पुराने श्रोताओं से मिलने के लिये आईं। इन दोनों से कम समय सीलोन में व्यतीत करने वाले रिपुसूदन ऐलावादी जो कुमार के नाम से लोकप्रिय रहे हैं भी आज तक मुबई में आवाज के जरिये ही अपना नाम कमा रहे हैं, 4 वर्षों के कोलबो के सफर की यादें अब भी ताजा हैं उनके जेहन में जिसे श्रोताओं के साथ बाँटने में उन्होंने कोई कंजूसी नहीं की।
Manohar Mahajan ki book 'yaden celone ki' ka vimochan
रेडियो सीलोन का दो घंटों के लिये पुनः प्रसारण शुरू होना एक उपलब्धि है, लेकिन इस प्रसारण समय में वृद्धि कराना एक चुनौती बन चुका है। रेडियो सीलोन के प्रषंसकों का जमावाड़ा, पुराने उद्घोषकों के प्रति लगाव व श्रद्धा का जज़्बा और गुज़रे ज़माने को वापस लौटाने का श्रोताओं का जुनून सफलता पाकर रहेगा।

Tuesday, December 14, 2010

एक उद्घोषक की नज़र से श्रोता सम्मेलन

विगत 12 दिसंबर को 981 किलोहर्ट्ज़ पर आकाशवाणी का रायपुर केन्द्र और 103.2 मेगाहर्टज़ पर आकाशवाणी का बिलासपुर केन्द्र एकत्र हुआ दोनों शहरों के मध्य स्थित सिमगा में। अवसर था छ.ग.रेडियो श्रोता संघ का सम्मेलन। तकरीबन 250 श्रोताओं का जमावाड़ा था यहाँ पर जो म.प्र. व छ.ग के विभिन्न क्षेत्रों से यहाँ उपस्थित हुआ था। रायपुर, बिलासपुर भाटापारा, बिल्हा, तिल्दा, दुर्ग, कवर्धा बलौदाबाजार, सरगांव के अलावा रतलाम, कटनी, रीवा, शहडोल, कोरबा, अंबिकापुर, भटगाँव जैसे स्थानों के श्रोताओं का प्रतिनिधित्व रहा इस सम्मेलन में।



मीडिया का कोई भी क्षेत्र हो जब तक लेखक या प्रस्तुतकर्ता को पाठक, श्रोता या दर्शक उपलब्ध न हों तब तक मीडिया का वह क्षेत्र पूर्ण नहीं माना जा सकता। प्रशंसकों और आलाचकों के बगैर प्रस्तुति अधूरी रह जाती है। रेडियो....एक पुराना माध्यम जिससे श्रोता बरसों से लगातार जुड़े रहे हैं। आज के युग में ये माना जाता है कि अब ये माध्यम पिछड़ने सा लगा है, लेकिन श्रोताओं का जोश, उत्साह और अपने प्रस्तोताओं के प्रति समर्पण का भाव यूं तो केन्द्रों में आने वाले पत्रों के माध्यम से दीखता है, फोन काल्स पर उनके भाव अभिव्यक्त होते हैं लेकिन श्रोता सम्मेलन में उनसे रूबरू मिलना, उनके भावों को पढ़ना, उन्हें समझ पाना हम ब्राडकास्टर्स के लिये भी एक ऐसी अनुभूति होता है जिसको बयां कर पाना असंभव सा है।
 
रायपुर के पूर्व जिला पंचायत अध्यक्ष श्री अशोक बजाज के मुख्य आतिथ्य में संपन्न हुआ ये श्रोता सम्मेलन। जो खुद एक वरिष्ठ रेडियो श्रोता व प्रशंसक भी हैं। वरिष्ठ श्रोताओं में बचकामल, धरमदास वाधवानी, उद्धव श्याम केसरी, डा,प्रदीप जैन, आर.एस.कामड़े, संतोष देवांगन, परसराम साहू, ईश्वर चंद साहू आदि के आपसी सामंजस्य ने विभिन्न श्रोता संघों को जोड़कर इस तरह के आयोजन करवाने पुनः आरंभ किये है। जिसमें झावेन्द्र धु्रव, संतोष वैष्णव, नसीब मोहम्मद, हीरामणि वर्मा और अनेक युवा श्रोता अपनी पूरी शक्ति और ऊर्जा के साथ जुड़े हुए हैं। इस अवसर पर वरिष्ठ श्रोताओं और उद्घोषकों का सम्मान हुआ, डीएक्स-अंजलि नामक एक पत्रिका का विमोचन किया गया जिसमें रेडियो की विभिन्न जानकारियों के साथ ही देश भर के रेडियो केन्द्रों से जुड़े लोगों के साक्षात्कार, कार्यक्रम व श्रोताओं की जानकारियां भी शामिल हैं। श्रोताओं का रेडियो से जुड़ाव व लगाव, जोश और जुनून इसमें साफ नज़र आता है। सरगुजा क्षेत्र के 17 युवा श्रोता साथियों की उपस्थिति ये अहसास करा गई कि रेडियो आज भी जन जन में बसा हुआ है।

सिमगा में आयोजित इस रेडियो सम्मेलन में आकाशवाणी रायपुर के कार्यक्रम अधिशासी डा,समीर शुक्ला, उद्घोषक दीपक हटवार, श्याम वर्मा और अनिल सालोमन एवं बिलासपुर आकाशवाणी के वरिष्ठ उद्घोषक हरीशचंद्र वाद्यकार के साथ आकस्मिक उद्घोषक सुनील चिपड़े व संज्ञा टंडन का सम्मान किया गया।
           एक उदघोषक की हैसियत से हम तो यही कहेंगे कि हमारे श्रोता हैं तो हम हैं।

Monday, December 13, 2010

रेडियो धारावाहिक रचना - 7

एपिसोड नंबर 7
बच्चे का 2 से 6 महीने तक का होना

सूत्रधार 1 -  रचना धारावाहिक में आगे क्या हुआ होगा तो चलो सुनते है रचना के परिवार में क्या हो रहा है।

Get this widget | Track details | eSnips Social DNA

सास -     रचना
रचना -    जी माँ जी
सास -     गोलू की मालिश हो गई
रचना -    जी माँ जी
सास -     उसे नहला दिया
रचना -    जी माँ जी
सास -     उसे दूध पिलाया
रचना -    जी माँ जी
सास -     तूने खाना खाया
रचना -    जी माँ जी
सास -     वो अतिरिक्त वाला खाना खाया। थोड़ा अधिक खाया कर तुझे अपने और गोलू दोनों का
          ख्याल रखना है।
रचना -    जी माँ जी
सास  -    फल वगैरह
रचना -    जी माँ जी
सास -     जी माँ जी, जी माँ जी - हैं - ला गोलू को मुझे दे।
रचना -    जी माँ जी
सास -     अले ले गोलू - मेरा गोलू - और तू यहाँ खड़े खड़े क्या कर रही है। जा तैयार हो, .. 
          और जल्दी तैयार हो।
रचना -    जी माँ जी...वो क्यों माँ जी।
सास -     क्यों माँजी ? अरे आज कौन सा दिन है।
रचना -    मंगलवार।
सास -     तो आंगनबाड़ी केन्द्र नहीं जाना है - हैं - आज तो बुलाया गया है ना वहाँ - गोलू को           टीका लगना है।
रचना -    जी माँ जी
सास -     जी माँ जी - सारी बातों का ध्यान मैं ही रखूँ। तुम लोग तो बस..जा जल्दी तैयार होजा।
रचना -    जी माँ जी।
            --        --        --        --        --
कमला -    आओ गौरी काकी, कैसी हो और हमारा गोलू.....वाह वजन तो बढ़ा है इसका।
सास -    बढ़ेगा क्यो नहीं - तुमने जो जो बोला था वही किया मैंने ....दिन में 7-8 बार दूध पिलवाती हूँ इसे रचना से और रचना को जो जो तुमने बोला था सब खिलवाती हूँ।
कमला -    ऐसा - तो सब खा रही है रचना।
सास -     अरे खायेगी कैसे नहीं - एक डाँट लगाऊँगी तो इसका पति भी खायेगा, क्यों रचना।
रचना -    जी माँ जी।
सास -     तुम तो कमला बस बताती जाओ क्या क्या करना है। बाकी मैं सब संभाल लूंगी।
सुलेखा -   आज तो अभी इसे डी.पी.टी. का पहला टीका लगवाना है। गोलू तो डेढ़ माह हो गया है।
रचना -    हाँ परसों ही डेढ़ माह पूरे हुये हैं।
कमला -   बहुत अच्छा - लाओ गोलू को दो। सुलेखा इसका वजन तो करो और टीका निकालो।
रचना -    गोलू को तकलीफ तो नहीं होगी ना - बहुत छोटा है अभी।
सुलेखा -   अरे इसे तो पता भी नहीं चलेगा। थोड़ा सा रोएगा जरूर पर परेशानी की बात नहीं है। रही बात इसके छोटे होने की तो सभी बच्चों को डी.पी.टी. का पहला टीका डेढ़ माह की उम्र में ही लगता है। सभी बच्चों को लगता है और सभी को लगवाना भी चाहिये।
सास -    लेकिन क्यो इससे क्या होगा।
कमला -   इससे गोलू की गलघोंटू, काली खाँसी और टिटनेस की रोकथाम होगी। बहुत जरूरी है ये टीका।
रचना -    अच्छा लेकिन बाकी दो टीके कब लगेंगे।
सुलेखा -    दूसरा टीका इसे एक माह बाद डाई माह की उम्र में लगेगा और तीसरा टीका तब जब गोलू साढ़े तीन माह का हो जायेगा।
कमला -    और रचना भूलना मत, ये टीके बच्चे के स्वास्थ्य के लिये बहुत जरूरी हैं। इसे एक माह बाद ले ही आना।
सास -     भूलेगी कैसे-हैं-क्यों रचना भूलेगी तू।
कमला -   नहीं माँ जी।
सास -     तो कमला - इसे एक महीने बाद - ठीक एक महीने बाद - ढाई माह के गोलू को टीका           लगवाने मैं खुद आऊँगी। चलो रचना।
कमला -   ठीक है माँ जी । पर इसे सिर्फ दूध ही देना - रचना को अच्छे से खिलाना पिलाना और           गोलू को सिर्फ माँ का दूध देना। माँ के दूध में विटामिन ए, प्रोटीन और दूसरी पौष्टिक चीजें होती हैं जो बच्चे को स्वस्थ और मजबूत बनाती हैं।
सुलेखा -    हाँ गौरी काकी और बच्चों को जो भी खिलाना चाहो वो माँ को खिलाओ। बच्चा दूध से उन पौष्टिक और अच्छी चीजों को ले लेगा।
सास -    ऐसा-चल रचना तू घर चल और आम खा। मुझे गोलू को आम खिलाने की इच्छा हो रही है। चल, जल्दी चल।
रचना -    जी मां जी।
                    --        --        --        --
दीनू -    कैसा सिर दर्द है माँ।
सास -    ठीक है अभी तो हल्का हल्का दर्द है।
दीनू -    ये लो दवाई - सुलेखा नर्स ने भेजी है।
सास -    अरे मुझे इन गोलियों की जरूरत नहीं है। मैं ऐसे ही ठीक हो जाऊँगी।
दीनू -    ऐसा कैसे चलेगा - लो ये गोलियाँ खाओ।
सास -    बहुत जिद करता है रे तू - ला दे - पर पहले ये तो बताओ गोलू को वो दूसरा टीका लगा कि नहीं।
दीनू -    हाँ लग गया - पर माँ तुम भी - अरे गोलू-रचना का ही ख्याल रखती रहोगी - थोड़ा     अपना भी ख्याल करो, आराम किया करो।
रचना -    माँ जी आपके पैर दबा दूँ।
सास -    पैर में दर्द नहीं है, सर में दर्द है। सर दबा।
रचना -    जी।
सास -    गोलू रोया तो नहीं टीका लगवाते समय।
रचना -    थोड़ा सा रोया था, पर तुरंत ही चुप हो गया था।
सास -    हाँ - अब टीके लगाना बहुत जरूरी है। नहीं तो मैं गोलू को जरा भी रोते हुये नहीं देख  सकती।
रचना -    हाँ माँ जी, नर्स दीदी बता रही थीं कि ये टीके गोलू के लिये बहुत जरूरी हैं।
सास -    हाँ - और तू तीसरे टीके का दिन भूलना मत। एक महीने बाद पहले मंगलवार को गोलू  को ले जाना। हाँ थोड़ा ऊपर की तरफ दबा - आधे सिर में दर्द है और गोलू कहाँ...है
रचना -    अपने पापा के पास।
सास -    तो फिर दीनू की आवाज आती ही होगी।
दीनू -    रचना ...ए रचना.....गोलू ने फिर मेरे ऊपर सू सू कर दी। जल्दी आओ।
सास -    देखा - मैंने कहा था ना आवाज आती होगी। अब पता नहीं गोलू अपने पापा की गोद को क्या समझता है। जा तू जा और सुन- अपना खाना पूरा खाना - वो...अतिरिक्त भोजन.. और फल भी....और मेरे पास वो रामू को भेज दे।
रचना -    जी माँ जी...और आप दवाई खा लीजियेगा।
                    --        --        --        --
दीनू -    गोलू ......
रचना -   अब निकलिये ना आप को देर हो जायेगी।
दीनू -    बस एक मिनट - ऐ गोलू...गोलू......गोलू मैं जाऊँ काम पे। वैसे तू बोलेगा नहीं जाऊँ तो          नहीं जाऊँगा।
रचना -   वो क्या बोलेगा साढ़े तीन महीने का बच्चा। गोलू को मुझे दीजिये और आप काम पर          जाइये। काम का नुकसान नहीं होना चाहिये।
दीनू -    जा रहा हूँ भई जा रहा हूँ, एक बार और गोलू को..
रचना -   बस का समय निकला जा रहा है। आप जाइये ना।
दीनू -    बड़ी बेदर्दी से भगा देती हो भई।
रचना -   आऽऽऽप जाइये। जाइये ना। माँ आती होगी आज मंगलवार है और गोलू को तीसरा  डी..पी.टी का टीका लगवाना है। आती ही होगी माँ जी, आप जाइये ना।
दीनू -    जा रहा हूँ - भई जा रहा हूँ - एक बार।
सास -    बहू तैयार हो हो गई।
रचना -   बस एक मिनट माँ जी।
दीनू -    मैं चला।
सास -    घंटे भर से तैयार हो रही है। कितना सजेगी संवरेगी। अरे सिनमा विनेमा नहीं चलना है।
आंगनबाड़ी केन्द्र चलना है समझी, जल्दी आ।
रचना -    चलिये माँ जी।
सास -    चलो....और गोलू  को मुझे दे...मैं पाऊँगी उसे....
रचना -    जी....माँ जी....लीजिये।
                --                --            --
सास -     और मितानिन कैसी हो।
मितानिन - आओ गौरी काकी आओ बिल्कुल समय पर आ गई।
सास -     गोलू की सेहत की बात है ना मितानिन।
सुलेखा -    ये तो बहुत अच्छी बात है और रचना इस बीच गोलू को कोई परेशानी तो नहीं हुई।
रचना -     नहीं नर्स दीदी।
सुलेखा -    तब ठीक है - आओ पहले गोलू का वजन कर लें।
रचना -     अब की बार तो आखिरी टीका लगेगा ना।
सुलेखा -    डी.पी.टी. का आखिरी टीका है साथ में इसे पोलियो से बचने के लिये दवा की खुराक भी लेकिन आओ एक टीका इसे 9 माह की उम्र में और लगेगा।
सास -    वो किस चीज के लिये।
सुलेखा -   खसरा - खसरे से बचाव का टीका - जो इसे करीब साढ़े पाँच महीने बाद 9 महीने के  बाद लगेगा। चलो अंदर चलो इसे डी.पी.टी. का आखिरी टीका और पोलियो की खुराक दे दें।
मितानिन - और सुनाओ गौरी काकी गोलू ने तो आपको व्यस्त कर दिया होगा।
सास -    हाँ पूरे घर को दौड़ा रखा है गोलू ने - दीनू तो काम पर जाने से बचता है सिर्फ गोलू के साथ खेलने के लिए और मैं मैं तो....................
कमला -  नमस्ते गौरी काकी कब आई
सास -    अभी थोड़ी देर हुई है
कमला -  गोलू को तीसरा टीका लग रहा है... अच्छा है
सास -    हाँ देखो हमने बराबर समय पर गोलू को टीका लगवाया
कमला -  ठीक किया- आपने सुना है फूलकुंवर ने अपने बच्चे को टीका लगवाने से मना कर दिया- न जाने किसने कान भर दिए वैसे मैं जाऊँगी उसके पास समझाने-खैर तुम्हारा गोलू तो गलाघोंटू,  कालीखाँसी और टिटनस से सुरक्षित रहेगा ( बच्चे के रोने की आवाज़)
सुलेखा -  अले ले ले चलो ठीक हो जाएगा बस बस............
सास -    लो लग गया टीका गोलू को
मितानिन - हाँ बहुत सी बीमारियों से सुरक्षित हो गया आप का गोलू
कमला -   आओ रचना - तुम्हारे क्या हाल है खाना खुद से खा लेती हो कि गौरी काकी की डाँट सुन के खाती हो
रचना -    जी जी
सास -    नहीं अब डाँट खाए बिना भी अच्छे से खा लेती है। मैं भी सोच रही थी डाँट ज्यादा खा लेगी तो खाना ज्यादा नही खा पाएगी सो मैंने भी इसे डाँटना कम कर दिया है - बस मन बहलाव के लिए डाँट लेती हूँ इसे
कमला -    अच्छा रचना दलिया तो रोज़ खा रही हो ना
रचना -    जी दीदी
मितानिन - हाँ दलिया बिल्कुल बंद मत करना और गौरी काकी आप ध्यान रखना कि दलिया सिर्फ रचना ही खाए और कोई इसे ना खाए।
सास -    हाँ हाँ कमला पहले बता चुकी है घर में और कोई दलिया नहीं खाता सिर्फ रचना के लिए ही दलिया बनता है
कमला -    ये जरुरी भी है गौरी काकी - तुमने तो वो नारा सुना ही होगा
सास-    कौन सा नारा,
कमला-     दलिया नहीं दवाई है, दूध की मलाई है।
सास-    हाँ-हाँ
मितानिन-    सच में दलिया दवाई है जो बच्चों के लिए और स्तनपान कराने वाली महिलाओं के लिए जरूरी है।
कमला-     इसमें प्रोटीन होता है और धात्री के कमजोरी को भी दूर करता है उसके लिए आवश्यक
दूध बनाने में भी सहायक होता है।
सास-    हाँ रे, यहाँ सिर्फ रचना को ही दूध खिलाया जाता है।
मितानिन-    ये तो अच्छी बात है पर यहाँ तो सभी परिवार इसका उपयोग करते है कुछ लोग तो इसे आटा बनवा लेते है।
कमला-     अब ये नहीं चलेगा मितानिन, क्योंकि अब दलिया पिसा कर आटा बनवानें पर दण्ड का
प्रावधान किया जा रहा है, पिसाने वाले और पिसने वाले दोनों ही दण्डित होंगे।
मितानिन-    ऐसा
कमला-     हाँ, 150 सौ से लेकर 200 तक जुर्माना भी हो सकता है। ग्राम पंचायत में ये प्रस्ताव करवाया जा रहा है,
सास-    जिसके लिए जो चीज जरूरी है, वही खाये बाकी कोई क्यूं खाये।
कमला-     हाँ लेकिन आप अपने बहू के लिए दलिया जरूर ले जाना और पहले की तरह इसे बराबर
सास-    बराबर -बराबर हिस्सों में बाँट कर रोज रचना को खिलाना ठीक
कमला,सास-    हा.....हा..हा...हा..हा
मितानिन-    कहाँ चली गौरी काकी
सास-    रचना की दवाई या यूँ कहो मलाई लेने।

Saturday, December 11, 2010

रे‍डि‍यो धारावाहिक रचना-6

एपिसोड नंबर 6
बच्चे का 1 महीने तक का होना

सूत्रधार-1    रेडियो धारावाहिक रचना के 5 एपिसोड़ आप सुन चुके हैं जिसमें रचना कि कहानी उसकी  किशोरावस्था से शुरू हुई थी, और पिछले एपिसोड में वह एक स्वस्थ शिशु कि माँ भी बन चुकी है। पहले एपिसोड में आपने जाना कि किशोरावस्था और उम्र का नाजुक दौर किस तरह से खतरनाक हो सकता है, और कम उम्र में शादी के क्या दुष्परिणाम हो सकते है। दूसरा एपिसोड रचना कि शादी की सही उम्र से जुड़ा हुआ था, जिसमें गांव की आंगनबाड़ी और महत्वपूर्ण सुविधाओं के साथ, बच्चों के बीच अंतर रखने की जानकारी से भी आप अवगत हुए। तीसरे एपिसोड में गर्भावस्था के दौरान कौन-कौन सी सावधानियाँ रखनी चाहिएँ और गांव तथा आंगनबाड़ी की दीदी, नर्स, अन्य रिश्तेदारों की महत्ता को समझाया गया, चौथे एपिसोड में गर्भावस्था के अंतिम चरण की सावधानियां, खतरे की पूर्व जानकारी, गर्भावस्था के पूर्व तैयारियों के बारे में रचना की कहानी में आप ने सुन, और पांचवे एपिसोड  में प्रसव के दौरान आने वाली समस्या, जानकारी और रचना की एक स्वस्थ शिशु की माँ बनने की कहानी, रोचक प्रंसगों के साथ आपके द्वारा सराही गई। आज रचना के घर छठी मनाई जा रही है, तो चलें हम और आप वहाँ मिठाई खाने।



(महिलाओं की भीड़नुमा आवाज़ें, रामू की आवाज़ नाश्ते के लिए, म्यूज़िक लाउडस्पीकर से गाने की)
1 -        सुना है रचना का लड़का बहुत सुंदर है
2 -        तूने देख लिया क्या
1 -        आज तो छठी है - इंतज़ाम तो अच्छा किया है दीनू ने
3 -        वैसे दीनू है अच्छा लड़का
1 -        और रचना क्या बुरी है - वो भी दीनू से कहीं भी कम नहीं
3 -        सबसे बढ़िया तो ये लगा कि रचना के आने के बाद अपनी गौरी काकी बदल गई
1 -        हाँ नहीं तो इतना खर्चा वो करतीं
2 -        अरी वो कहाँ खर्च कर रही है दीनू ने काफी पैसे जोड़ लिए हैं
3 -        लगता है गाँव भर को न्योता दिया है
2 -        चलो हम भी चले अंदर
3 -        अरे अभी अंदर ज्यादा लोग है, कुछ कम हो जाए तो चलें
1 -        लो फूलकंवर आ रही है - लगता है वो बच्चे को देख आई
2 -        आओ फूलकंवर कैसा है बच्चा
फूल-       बच्चा तो अच्छा है - बिल्कुल रचना के नैन नक्शे हैं उसके
1 -        अच्छा और वजन कैसा है
फूल-       वो तो पता नही देखने में तो अच्छा स्वस्थ है -बता रहे थे कि 3 किलो वज़न है उसका
2 -        क्यों तूने उसे गोद में उठा के नहीं देखा।
फूल-        कहाँ -बच्चे को तो मच्छरदानी से ढँक दिया है। गौरी काकी किसी को भी बच्चे को हाथ नहीं लगाने दे रही -बोलती है - दूर से ही देखो ......गोदी मे लेने से प्यार से संक्रमण हो सकता
है- अब बाहर से ही बच्चे को देखा और चलो।
2-        ऐसा तो क्या मतलब - चलो नाश्ता पानी करो और चलो।
1-        अरे नहीं -गौरी काकी तो बहुत समझदारी का काम कर रही हैं।
2-        क्यों -इसमें क्या समझदारी -हम उसे गोदी पा लेंगे तो क्या उसे कुछ हो जाएगा।
नर्स -     हाँ - हो भी सकता है, अगर हाथ साफ न हो।
1-        अरे नर्स दीदी आप, नमस्ते --
नर्स -     नमस्ते - हाँ फूलकुँवर, संतोषी ठीक कह रही है -अगर बच्चे को सब लोग गोदी लेकर प्यार करेंगे तो उसे तकलीफ भी होगी और संक्रमण का खतरा कई गुना बढ़ जाएगा - इसलिए    बहन बुरा मानने की बात नहीं है -बच्चे को जरूर देखो आशीर्वाद दो और क्योंकि खुशी की बात है तो मिठाई भी खाओ।
1-        बिल्कुल ठीक कह रही हैं आप नर्स दीदी -आप भी छठी में आई हैं।
नर्स-      छठी में भी आना हो गया और बच्चे की जाँच भी कर लूँगी।
2-        ये बहुत अच्छा है वैसे उसका वजन बता रहे हैं कि
नर्स-      करीब 3 किलो है - ठीक है बच्चे का वजन ढाई किलो से ऊपर होना चाहिये 2 किलो से कम होने पर खतरा हो सकता है। पर अपनी रचना का बेटा वजन मे बिल्कुल ठीक है।
2 -       2 किलो से कम वजन में खतरा रहता है?
नर्स-      हाँ -ऐसे में बच्चे को तंरत अस्पताल ले जाना चाहिये।
1-        वैसे गौरी काकी को आपने ही बताया होगा बच्चे को मच्छरदानी में रखना और दूसरों से संक्रमण लगने वाली बात
नर्स-      हाँ क्यों...
फुलकुँवर-  तभी -मै कहूँ ।
2-        कि गौरी काकी इतनी समझदार कैसे हो गई ......................
-    -    -    -    -    -    -    -    -    -    -    -    -    -    -    -    -
रामू-      चलो सब लोग गये, अब जाके फुरसत मिली,
रचना-     तुझ पर बहुत बोझ पड़ गया है ना काम का।
रामू-      अरे नहीं, काहे का बोझ, वो अपने गोली को देखते ही सब काम हो गया,
रचना-     थक गये होंगे, थोड़ा आराम कर लो।
रामू-      आराम तो आप को करना है, गौरी काकी ने पपीता भेजा है इसे खाँ कर आपको सोना है इसे खाइये और थोड़ी देर तक आराम कीजिए। और तब तक गोलू के पास मुझे बैठना है।
रचना-     ऐसा माँ जी ने कहां है।
रामू-      हाँ, अगर उनकी बात नहीं मानेगी तो तगड़ी सी डाँट के लिये तैयार रहना।
रचना-     बाबा रे बाबा, ला पपीता, देख आधा तू खा ले, आधा मैं खा लूंगी
रामू-      और गौरी काकी को पता चल गया तो.....
रचना-     अरे कैसे पता चल जायेगा।
रामू-      उन्हें सब पता चल जाता है, अगर ऐसा हुआ तो आप गई काम से
रचना-     अरे, लेकिन पूरा पपीता मैं कैसे खाऊँ..
रामू-      चलिये थोड़ा सा बचा लीजिएगा, गोलू को दे देंगे,
रचना-     हैय....गोलू को... अरे रामू अभी गोलू कुछ नहीं खा सकता,
रामू-      क्यूं
रचना-     उसके मुहँ में दाँत है क्या
रामू-       नहीं।
रचना-     तो कैसे खायेगा,
रामू-      उसे पपीता मसल कर देगें।
रचना-     नहीं रे रामू अभी 6 महीने तक गोलू को कुछ नहीं देना है। सिर्फ दूध पीना है उसे दूध के अलावा कुछ भी नहीं देना।
रामू-      लेकिन उसे भूख लगे, प्यास लगे, तभी नहीं।
रचना-     नहीं, कमला दीदी बताई थी की 6 महीने तक गोलू को कुछ भी नहीं देना है।
रामू-      और आप तो लीजिए।
रचना-     क्या
रामू-      पपीता
रचना-     अरे, फिर तू पीछे पड़ गया दोनों आधा-आधा
रामू-      कोई आधा नहीं, गौरी काकी बोली थी कि ये आप के लिए बहुत जरूरी है, आप खाइये तब तक मैं गोलू का ख्याल रखूँगा,
रचना-    इतनी बड़ी-बड़ी बातें करता है तू रे,
रामू-     बड़ा तो हो गया हूँ तो बड़ी-बड़ी बातें नहीं करूँगा।
रचना-    चल हट, बड़ा हो गया। तू जा और आराम कर मैं भी खा कर आराम कर लूंगी।
रामू-     और गोलू
रचना-    वो मैं देख लूंगी, वैसे भी वो अभी सो रहा है, 
-    -    -    -    -    -    -    -    -    -    -    -    -    -    -    -    -
पति -   अले लेले - क्या देख रहा है -ए गोलू - रचना देख ये हंस रहा है, तू तो बड़ी तैयार दिख
        रही है कहीं जा रही है क्या।
रचना-    हँस नहीं रहा मुस्कुरा रहा है।
पति-     वैसे इसकी मुस्कुराहट बिलकुल तुम्हारी तरह है कितना अच्छा लगता है मुस्कुराते हुए।
रचना-    हाँ, बहुत अच्छा लगता है लेकिन सुबह से 5 दस्त हो चुके है, दिन भर रो रहा है।
पति-     अरे तो नर्स दीदी को दिखाया।
रचना-    वहीं जा रहे है, माँ जी आती होगी।
पति-     बोलो तो यही बुला दूँ नर्स दीदी को।
रचना-    नहीं पास में ही तो जाना है कितनी दूर है, और वैसे भी वो आते-जाते खुद हमारे बच्चे को देख जाती हैं।
सास-    रचना ये रचना चल, अभी तो हमारा गोलू ठीक है।
रचना-    हाँ, माँ जी चलिये।  हम लोग इसे दिखाकर आते हैं। चलिये मां जी।
-    -    -    -    -    -    -    -    -    -    -    -    -    -    -    -    -
नर्स-     कब से हो रहे है दस्त इसे
रचना-    अभी चार-पाँच घण्टे से
नर्स-     और कितने दस्त हो चुके हैं?
रचना-    वैसे 4-5
नर्स-     वैसे घबराने की जरूरत नहीं है इसे सिर्फ माँ का दूध पिलाओं बाहर का दूध बिलकुल नहीं
रचना-    और दवाई वगैरह
नर्स-     अभी इसकी कोई जरूरत नहीं है अभी इसे सिर्फ माँ का दूध पिलाओ दिन में 7-8 बार और रात में 3-4 बार।
सास-     ऐसा, लेकिन इस से रचना का..
नर्स-      कुछ नहीं अरे काकी माँ जितना दूध पिलागी उसे उतना ही दूध बनेगा। गर्मी में केवल माँ का ही दूध देना है समझी काकी।
सास-     हाँ लेकिन इसे बीमारी वगैरह थोड़ी ना है।
नर्स-      नहीं इसे बी.सी.जी. का टीका भी लग चुका है वजन भी ठीक है वैसे वजन हर महीने कराना है आपको इसका। बाकी कोई परेशानी नजर नहीं आती है। हाँ बस इसे 6 माह तक माँ का ही दूध देना।
सास-    ठीक तो सुलेखा ड़रने की कोई बात तो नहीं
नर्स-     हाँ बिलकुल
सास-     तो चलो रचना चले........................................
- - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - -
सास -    आओ कमला आओ
कमला -   कैसा है अपना गोलू।
सास -    मस्त है। ऐसे हाथ पाँव चलाता है कि पूछो मत।
कमला -  ऐसा।
सास -    हाँ और जब अपनी गोल गोल आँखों के देखता हुआ मुस्कुराता है तो बस क्या बताऊँ    कमला मैं तो धन्य हो गई, उसे तो छोड़ने का मन ही नहीं करता।
रचना -    सुबह से रात तक माँ जी गोलू गोलू करते घूमती रहती है जब इसका दूध का समय होता है तभी बस मुझे मिलता है।
सास -    क्यों पूरी रात भी तो तेरे पास रहता है।
कमला -  चलो अच्छा हुआ गौरी काकी आपका समय आप बढ़िया गुजरेगा।
सास -    मेरे बेटे बहू ने मेरी मुराद पूरी कर दी है।
-    -    -    -    -    -    -    -    -    -    -    -    -    -    -    -    -
पति -    रचना.....रचना देख गोलू ने मेरे ऊपर फिर सू सू कर दी। मेरे ऊपर ही करता है ये हमेशा           सूसू।
रचना -    आई।
सास -    गोलू की लंगोटियाँ आँगन में सूख रही हैं।
रचना -    ठीक है माँ जी।
कमला -   गौरी काकी एक बात बताओ।
सास -     पूछो।
कमला -   जितना ख्याल आप गोलू का रखती हैं, उतना रचना का भी रखती हैंं या नहीं।
सास -    रखती हूँ, क्यों नहीं रखूँगी। आखिर उसने अपनी कोख से मुझे इतना बड़ा सुख दिया है।
कमला -   ये तो बहुत अच्छी बात है, लेकिन उसके खान पान पे ज्यादा ध्यान रखना। स्तनपान कराने वाली माँ के आहार में अभी भी एक अतिरिक्त भोजन देना जरूरी है। तेल दलिया देते ही     रहना और दलिया तो सिर्फ बहू को ही देना है बाकी कोई दूसरा ना खाए।
सास -    अच्छा - वैसे बाकी खाना तो ठीक ही खाती है।
कमला -  मैं तो कहती हूँ उसे तिरंगा भोजन दो।
सास -    तिरंगा भोजन....माने.....
कमला -  केसरिया, सफेद और हरे खाद्य पदार्थ...केसरिया गाजर, सेव, पपीता, संतरा, दालें आदि,
सफेद में चावल, मूली, मछली, अंडा, दूध, दही, घी वगैरह और हरे में सारी हरी सब्जियाँ।
सास -    ये तो तुमने बहुत बढ़िया बताया तिरंगा भोजन।
कमला -    हाँ -ये संपूर्ण पौष्टिक आहार है जो स्तनपान कराने वाली माताओं के लिये बहुत जरूरी है। इतनी दफे माँ अपना दूध बच्चों को पिलाती है तो उसे भी तो पौष्टिक आहार की जरूरत होगी।
सास -    समझ गई, मैं सब समझ गई। रामू ...ओ रामू....
रामू -    जी,  बताइये।
सास -    ये ले पैसे, थैला ले, बाजार जा और गाजर, सेव, संतरा, घी, भाजियाँ सब ले आ।
रामू -    पर इतनी सारी चीजें कैसे लाऊँ।
सास -    अपने सिर पर लाद के ला। कैसे भी ला पर तुरंत लो।.......और सुन.....